
राजगीर (नालंदा दर्पण)। आजादी की 79वीं वर्षगांठ के अवसर पर विश्व धरोहर स्थल नालंदा (Nalanda) प्राचीन विश्वविद्यालय का भग्नावशेष तिरंगे की रंग-बिरंगी रोशनी से सराबोर हो उठा। इस ऐतिहासिक स्थल पर स्थित सारिपुत्र स्तूपा को राष्ट्रीय ध्वज के तीन रंगों केसरिया, श्वेत और हरे की रोशनी से सजाया गया, जिसने पूरे परिसर को एक अलौकिक आभा प्रदान की। घने अंधेरे में चमकता यह स्तूपा न केवल दूर-दूर तक अपनी आकर्षक छटा बिखेर रहा था, बल्कि हर भारतीय के हृदय में स्वतंत्रता और गौरव का संदेश भी प्रज्वलित कर रहा था। यह दृश्य आजादी के उत्सव और प्राचीन धरोहर की ऐतिहासिक पहचान का एक अनुपम संगम था।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने इस बार नालंदा विश्वविद्यालय के भग्नावशेष परिसर में विशेष आयोजन किया। परिसर में स्थित मंदिर संख्या-3 के निकट सारिपुत्र स्तूपा को तिरंगे की थीम पर रोशनी से सजाया गया। इस पहल का उद्देश्य न केवल आजादी के उत्सव को भव्यता प्रदान करना था, बल्कि नालंदा की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को भी विश्व पटल पर उजागर करना था।
रात के समय जब तिरंगे की रोशनी स्तूपा पर पड़ी, तो पूरा परिसर एक जीवंत चित्रपट की तरह जीवंत हो उठा। स्थानीय निवासियों और पर्यटकों ने इस दृश्य को निहारते हुए गर्व और उत्साह का अनुभव किया।
नालंदा विश्वविद्यालय को यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल घोषित किया है। प्राचीन भारत की शैक्षिक और सांस्कृतिक उत्कृष्टता का प्रतीक है। पांचवीं सदी में स्थापित यह विश्वविद्यालय कभी विश्व भर के विद्वानों का केंद्र था। जहां बौद्ध दर्शन, गणित, खगोलशास्त्र और चिकित्सा जैसे विषयों पर गहन अध्ययन होता था। सारिपुत्र स्तूपा भगवान बुद्ध के प्रमुख शिष्य सारिपुत्र को समर्पित है, इस परिसर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
इस आयोजन ने न केवल नालंदा की ऐतिहासिक महत्ता को रेखांकित किया, बल्कि यह भी दर्शाया कि कैसे आधुनिक भारत अपनी प्राचीन विरासत को संजोते हुए राष्ट्रवाद के रंग में रंगा जा सकता है।
इस विशेष आयोजन को देखने के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक और स्थानीय लोग नालंदा पहुंचे। देर रात तक लोग इस मनमोहक दृश्य को अपने कैमरों में कैद करते रहे। दिल्ली से आए एक पर्यटक ने कहा, “मैंने कई बार नालंदा का दौरा किया है, लेकिन इस बार का अनुभव बिल्कुल अलग था। तिरंगे की रोशनी में नालंदा का यह रूप देखकर गर्व महसूस हो रहा है।”
वेशक तिरंगे की रोशनी में जगमगाता नालंदा विश्वविद्यालय का यह दृश्य न केवल एक रात का उत्सव था, बल्कि यह भारत की गौरवशाली अतीत और स्वतंत्रता के गर्व का प्रतीक बन गया। यह आयोजन हर भारतीय को यह याद दिलाता है कि हमारी धरोहर और हमारी आजादी दोनों ही अनमोल हैं और इन्हें संजोना हम सभी का कर्तव्य है।









