बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। नालंदा लोकसभा सीट पर जदयू के गढ़ को ध्वस्त करने के लिए इंडिया गठबंधन ने वर्ष 1991 के इतिहास को दोहराने के उद्देश्य से वाम दल को इस चुनाव में आगे किया है। इस सीट पर कब्जा जमाये जदयू को इस बार भाकपा माले शिकस्त देने की जुगाड़ में है। लंबे अंतराल के बाद इस सीट पर वामपंथी दल के प्रत्याशी इस मैदान उतर रहे हैं।
उसके बाद लगातार समता पार्टी और जदयू का ही कब्जा चला आ रहा है। इससे मद्देनजर जदयू के गढ़ को ध्वस्त करने के लिए फिर से 1991 का इतिहास दोहराने के उद्देश्य से इंडिया गठबंधन ने भाकपा माले को आगे किया है।
नालंदा लोकसभा सीट का इतिहास देखा जाए तो यहां करीब 70 वर्षों में सबसे अधिक 25 वर्ष तक कांग्रेस उससे बाद 23 वर्ष तक जदयू और फिर 15 वर्ष सीपीआई का कब्जा रहा है। हालांकि उपचुनाव को देखते हुए सबसे अधिक सात बार जदयू और छह बार कांग्रेस के प्रत्याशी जीत हासिल किये थे।
वर्ष 1991 में सीपीआई को यहां से अंतिम जीत मिली थी। अब तक इस सीट से निर्दलीय और महिला प्रत्याशी सांसद बनकर संसद तक नहीं गये हैं। नालंदा लोकसभा क्षेत्र में 1951 से लेकर 1971 तक का चुनाव यानी छठी लोकसभा तक लगातार कांग्रेस की जीत होती रही थी, इसके बाद यहां के सीट पर 1980 से 1991 तक भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी का दबदबा रहा।
इधर 1996 के चुनाव में जार्ज फार्नाडिंस के समता पार्टी ने सीपीआई के गढ़पर कब्जा जमा लिया। हालांकि पहला आम चुनाव में नालंदा, पटना सेंट्रल संसदीय क्षेत्र का एक भाग रहा था।
लोकसभा क्षेत्र बनने के 14 साल के बाद नालंदा को जिला का दर्ज मिला। वर्ष 1957 में नालंदा को लोकसभा क्षेत्र बनाया गया, लेकिन नालंदा को जिला के रूप में नौ नवंबर 1972 को स्थापित किया गया था, जिसका मुख्यालय बिहारशरीफ है।
इससे पहले यह पटना जिले के बिहारशरीफ अनुमंडल हुआ करता था। 1951 और 1957 में कैलाशपति सिन्हा कांग्रेस के सांसद रहे थे। 1962, 1967 और 1971 में सिद्धेश्वर प्रसाद लगातार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते रहे। इन तीनों चुनाव में उन्होंने क्रमशः 43.30 प्रतिशत, 46.90 प्रतिशत और 57.93 प्रतिशत मत हासिल किया था।
1977 में भारतीय लोक दल के उम्मीदवार के रूप में बिरेंद्र प्रसाद ने 54.06 फीसदी मत प्राप्त कर कांग्रेस के जीत का पहिया रोक दिया और सीपीआई के विजय कुमार उस समय उपविजेता बने थे।
हालांकि नालंदा लोकसभा क्षेत्र बनने यानी 1957 के बाद यहां से कांग्रेस प्रत्याशी लगातार चार बार विजय हुए हैं। कांग्रेस पार्टी प्रत्याशी का सबसे अधिक जीतने, लगातार जीतने और अधिक मतदातों से जीतने का सारे रिकार्ड समता पार्टी व जनता दल नालंदा लोस क्षेत्र से अब तक चयनित सांसद व पार्टी (यूनाइटेड) ने ध्वस्त कर दिया है।
नालंदा लोकसभा सीट बिहार का सबसे बड़ा निर्वाचन क्षेत्र हैं। यहां पहला आम चुनाव 1951-52 में हुआ था। जिसमें पटना सेंट्रल ही वर्तमान का नालंदा लोकसभा क्षेत्र था। उस चुनाव में 55.53 प्रतिशत मतदान हुआ था।
पटना सेंट्रल के नाम से हुए उस चुनाव में कांग्रेस के कैलाशपति सिन्हा ने जीत दर्ज की थी। उन्होंने स्वतंत्र प्रत्याशी चंद्रिका सिंह को 46 हजार 401 मत से हराया था। जबकि चंद्रिका सिंह को 20 हजार 581 वोट यानी 15.65 प्रतिशत वोट आये थे।
उस चुनाव में कुल पांच प्रत्याशी मैदान में थे और एक लाख 31 हजार 506 वोटरों ने मताधिकार का प्रयोग किया था। जबकि दो लाख 36 हजार 799 वोटरों का नाम मतदाता सूची में दर्ज था।
यानि पहला आमचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी को निर्दलीय प्रत्याशी चंद्रिका सिंह से मुकाबला हुआ और उपविजेता निर्दलीय प्रत्याशी चंद्रिका सिंह बने थे। उसके बाद से अब तक नालंदा लोकसभा सीट से उपविजेता तक निर्दलीय और महिला प्रत्याशी नहीं पहुंचे हैं।
बता दें कि भारत में 25 अक्टूबर 1951 और 21 फरवरी 1952 के बीच आम चुनाव हुआ था, जो 1947 में भारत की आजादी के बाद पहला आम चुनाव था।
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