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बौद्ध परंपरा से प्रेरित नालंदा की खान-पान संस्कृति एक स्वादिष्ट यात्रा

बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। मगधांचल का नालंदा जिला अपनी प्राचीन सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत के लिए विश्वविख्यात है, लेकिन इसका खान-पान भी उतना ही अनूठा और समृद्ध है। बौद्ध परंपरा से गहरे जुड़े इस क्षेत्र की भोजन संस्कृति में सादगी, संयम और पौष्टिकता का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।

Nalanda's food culture inspired by Buddhist tradition: a delicious journey
Nalanda’s food culture inspired by Buddhist tradition: a delicious journey

क्या आपने कभी सोचा है कि एक क्षेत्र का खान-पान उसकी सांस्कृतिक और धार्मिक जड़ों से कैसे जुड़ा हो सकता है? आइए, मगध की इस स्वादिष्ट यात्रा पर चलें और जानें कि यहां का भोजन केवल पेट ही नहीं, बल्कि मन और आत्मा को भी तृप्त करता है।

मगध का इतिहास बौद्ध धर्म से अटूट रूप से जुड़ा है। बौद्ध भिक्षुओं की संयमित जीवनशैली का प्रभाव यहां के खान-पान पर स्पष्ट दिखाई देता है। प्राचीन काल में लोग दिन में केवल एक बार भोजन करते थे, जो सुपाच्य और पौष्टिक होता था।

सुबह के समय भात (चावल) और शाम को भुंजा, गुड़ और देशी घी का मिश्रण खाया जाता था। यह भोजन न केवल किफायती था, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी माना जाता था।

हालांकि समय के साथ यह एकल भोजन की परंपरा लगभग लुप्त हो चुकी है, लेकिन भुंजा आज भी मगध के गाँवों में नाश्ते का अभिन्न हिस्सा है। चना, मटर, चावल, मकई और चूड़ा से तैयार भुंजा स्वाद और स्वास्थ्य का अनोखा मेल है।

विशेष रूप से चने का भुंजा, जिससे चना चूर भी बनाया जाता है। स्थानीय लोगों के बीच बेहद लोकप्रिय है। बाजारों में मिलने वाला मसालेदार भुंजा, जिसमें सरसों का तेल, टमाटर, प्याज, हरी मिर्च और नींबू का रस मिलाया जाता है, हर उम्र के लोगों को लुभाता है।

एक रोचक मान्यता यह भी है कि शनिवार को भुंजा खाने से शनि ग्रह की दशा में सुधार होता है। मगध का खान-पान केवल भुंजा तक सीमित नहीं है। यहां के पारंपरिक व्यंजनों में विविधता और पौष्टिकता का खजाना छिपा है। लिट्टी-चोखा, सत्तू पराठा, दाल पीठा, घुघनी और खाजा जैसे व्यंजन मगध की पहचान हैं।

सर्दियों में बनने वाला पूस पिट्ठा एक विशेष व्यंजन है, जो चावल के आटे से तैयार किया जाता है। इसमें गुड़, तीसी या खोआ की भराई की जाती है, जो न केवल स्वादिष्ट होता है, बल्कि शरीर को गर्मी भी प्रदान करता है।

मगध की मिठाइयाँ अपने अनूठे स्वाद और विविधता के लिए प्रसिद्ध हैं। बिहारशरीफ की झिल्ली (या लट्ठो) मिठाई, जो मैदा और बेसन से बनाई जाती है, अपनी टेढ़ी-मेढ़ी आकृति के कारण अलग पहचान रखती है।

दुधौरी जो नई धान की फसल के बाद बनाई जाती है, चावल, दूध और घी का स्वादिष्ट मेल है। वहीं जहानाबाद की बिरंज मिठाई, जो चावल, मसाले, सूखे मेवे और मावा से तैयार होती है, मगध की सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाती है।

गया का तिलकुट, अनरसा, लाई, केसरिया पेड़ा, और लड्डु मगध की मिठाइयों की श्रृंखला को और भी आकर्षक बनाते हैं। ये मिठाइयाँ न केवल त्योहारों, बल्कि रोजमर्रा के जीवन में भी मिठास घोलती हैं।

मोरा तालाब का पेड़ा, गिरियक की रस मलाई, पकरीबरावां का बारा, परवल की मिठाई, सिलाव का खाजा, भूरा, रेवड़ी और बालूशाही भी मगध की मिठाइयों की सूची में शामिल हैं।

विशेष रूप से रेवड़ी सर्दियों में अक्टूबर से जनवरी तक बाजारों में उपलब्ध होती है और इसे खाने का अपना अलग आनंद है। आज के दौर में मगध का खान-पान आधुनिकता के रंग में रंगने लगा है। फास्ट फूड और पैकेज्ड खाद्य पदार्थों ने पारंपरिक व्यंजनों को कुछ हद तक पीछे धकेल दिया है। फिर भी, गाँवों और छोटे शहरों में ये व्यंजन आज भी जीवित हैं।

वेशक मगध की खान-पान संस्कृति केवल भोजन नहीं, बल्कि एक जीवनशैली है, जो बौद्ध परंपरा, प्रकृति और सादगी से प्रेरित है। यह संस्कृति हमें सिखाती है कि भोजन केवल शरीर के लिए नहीं, बल्कि मन और आत्मा के लिए भी पोषण है। मगध के व्यंजन और मिठाइयाँ न केवल स्वाद में अनूठे हैं, बल्कि इस क्षेत्र की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को भी जीवित रखते हैं।

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