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भगवान महावीर का निर्वाण: जैन दीपावली की अमर ज्योति अहिंसा की अनंत गाथा

नालंदा दर्पण डेस्क (मुकेश भारतीय)। दीपों की चमक, पटाखों की गूंज और मिठास भरी मिठाइयों के बीच दीपावली का त्योहार न केवल प्रकाश का उत्सव है, बल्कि प्राचीन सभ्यता की गहन आध्यात्मिकता का प्रतीक भी। हिंदू परंपरा में राम-रावण युद्ध की विजय, सिख इतिहास में गुरु हरगोबिंद की रिहाई, लेकिन जैन समाज के लिए यह दिन कुछ और ही महत्व रखता है- भगवान महावीर के 2551वें निर्वाण दिवस का।

कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को ठीक 2550 वर्ष पूर्व 527 ईसा पूर्व में, पावापुरी के सरोवर में जलमंदिर के प्रांगण में भगवान महावीर ने देह त्याग कर मोक्ष प्राप्त किया। यह वह क्षण था जब अहिंसा, अपरिग्रह और सत्य के प्रतीक ने संसार को ‘जिओ और जीने दो’ का अमर संदेश दे दिया।

जैन अनुयायी इस दिन को दीपावली के रूप में मनाते हैं, जहां दीये न केवल अंधकार मिटाते हैं, बल्कि आत्मा की मुक्ति की ज्योति भी प्रज्ज्वलित करते हैं। लेकिन यह केवल एक तिथि नहीं, बल्कि ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और पारंपरिक तथ्यों से बुनी एक अनुपम गाथा है, जिसमें किस्से-किवदंतियां और गहन धारणाएं जीवन को रोशन करती हैं। आइए, इस अमर कथा को विस्तार से समझें।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: वैशाली के राजकुमार से तीर्थंकर तक का सफर

भगवान महावीर का मूल नाम वर्धमान था। जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर थे। उनका जन्म लगभग 599 ईसा पूर्व वैशाली गणराज्य के कुंडग्राम में हुआ, जो आज बिहार के नालंदा जिले के सिलाव प्रखंड के कुंडलवन गांव के रूप में जाना जाता है। यह स्थानीय कनेक्शन नालंदा को और भी गौरवान्वित बनाता है, क्योंकि यहीं से एक साधारण राजकुमार ने विश्व को अहिंसा का पाठ पढ़ाया।

वज्जि संघ के ज्ञातृक कुल के प्रधान सिद्धार्थ और त्रिशला माता के गर्भ में उनका अवतरण हुआ। जैन ग्रंथों के अनुसार उनके जन्म से पहले ही देवताओं ने भविष्यवाणी की थी कि यह बालक या तो चक्रवर्ती सम्राट बनेगा या मोक्ष प्राप्ति का मार्गदर्शक।

इतिहासकारों के अनुसार उस युग में वैशाली एक समृद्ध गणतंत्र था, जहां बौद्ध और जैन विचारधाराएं एक साथ फल-फूल रही थीं। महावीर का काल वह दौर था जब मगध साम्राज्य के उदय के साथ-साथ आध्यात्मिक क्रांति हो रही थी। बिम्बिसार और अजातशत्रु जैसे राजाओं के दरबार में जैन और बौद्ध संवाद गूंजते थे।

30 वर्ष की आयु में विवाह और पुत्री प्रियदर्शिनी के बाद भी महावीर ने राजसी वैभव त्याग दिया। 12 वर्ष की कठोर तपस्या नग्न अवस्था में भोजन के बिना कीट-पतंगों के काटने की पीड़ा सहते हुए  उन्होंने की। 42 वर्ष की आयु में ऋजुबालिका नदी के तट पर उन्हें कैवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ, जिसके बाद 30 वर्ष तक उन्होंने उपदेश दिए।

उनके अनुयायी 14,000 साधु, 36,000 साध्वियां, 1,59,000 श्रावक और 3,18,000 श्राविकाएं तक पहुंच गए। प्रमुख राजा बिम्बिसार (मगध के संस्थापक), चेटक (वैशाली के शासक, महावीर के मामा) और कुणिक (अजातशत्रु) उनके शिष्य बने।

72 वर्ष की आयु में पावापुरी के अप्पा सरोवर में निर्वाण प्राप्ति के बाद जैन ग्रंथों में वर्णित है कि उनके गणधर गौतम ने अंतिम क्षणों में मोक्ष का ज्ञान प्राप्त किया। यह ऐतिहासिक घटना न केवल जैन धर्म की नींव रखती है, बल्कि अहिंसा को वैश्विक दर्शन बनाती है। महात्मा गांधी ने तो इसे अपनी सत्याग्रह की प्रेरणा बताया।

धार्मिक और पारंपरिक धारणाएं: मोक्ष का प्रकाश और अहिंसा का सूत्र

जैन धर्म में दीपावली को ‘निर्वाण कल्याणक’ कहा जाता है, जो 24 तीर्थंकरों में से महावीर के मोक्ष का स्मरण करता है। पारंपरिक रूप से, जैन परिवार इस दिन उपवास रखते हैं, जैन मंदिरों में अभिषेक करते हैं और ‘अहिंसा परमो धर्म:’ का जाप करते हैं। पावापुरी का जलमंदिर, जहां महावीर ने देहावसान किया, आज भी तीर्थ है।

यहां का सरोवर कांस्य जैन प्रतिमाओं से सुशोभित है और अमावस्या की प्रत्यूष बेला में लाखों जैन भक्त एकत्र होते हैं। धार्मिक धारणा है कि निर्वाण के क्षण स्वर्गीय संगीत और दिव्य ज्योति से गूंज उठा था, जो आज के दीयों में प्रतिबिंबित होता है। जैन कैलेंडर में यह ‘भाव दीपावली’ भी कहलाती है, जहां बाहरी दीपों के साथ आंतरिक आत्म-चिंतन पर जोर दिया जाता है।

महावीर का मूल उपदेश ‘परस्पर परावलंबन’ जिओ और जीने दो अणुव्रत (छोटे व्रत) के रूप में प्रचारित हुआ। जैन परंपरा में यह धारणा है कि अहिंसा न केवल जीव हत्या से परहेज है, बल्कि विचारों में भी। हर वर्ष पावापुरी महोत्सव में जैन समाज शोभायात्राएं निकालता है, जहां हाथियों पर प्रतिमाएं सजाई जाती हैं और ‘महावीर वंदना’ गाई जाती है। यह त्योहार सिखाता है कि मोक्ष व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामूहिक कल्याण का मार्ग है।

रोचक किस्से और किवदंतियां: चमत्कारों से परे आध्यात्मिक परीक्षाएं

महावीर के जीवन की कथा केवल तथ्यों से नहीं, बल्कि लोककथाओं और किवदंतियों से भी रोचक हो जाती है। जैन आगमों जैसे ‘कल्पसूत्र’ और ‘त्रिशष्टिशलाका पुरुष चरित्र’ में वर्णित ये किस्से बताते हैं कि कैसे एक साधारण मनुष्य अलौकिक बन गया।

एक प्रसिद्ध किवदंती है चंदकौशिक नाग का उद्धार। तपस्या के दौरान, क्रूर चंदकौशिक नाग ने महावीर पर आक्रमण किया। लेकिन महावीर की अहिंसा शक्ति ने नाग को शांत कर दिया। नाग ने अपना विष त्याग दिया और मोक्ष की ओर अग्रसर हो गया। यह कथा सिखाती है कि हिंसा का जवाब हिंसा से नहीं, करुणा से दिया जाता है।

एक और रोचक किस्सा है इंद्र की परीक्षा। जन्म के समय, देवराज इंद्र ने बाल वर्धमान की दिव्यता की परीक्षा ली। उन्होंने वर्षा भेजी, लेकिन बालक महावीर ने अविचलित रहकर सिद्ध कर दिया कि वे सांसारिक मोह से परे हैं।

लोक मान्यता है कि उनके जन्म पर सिंह के गर्भ से अवतरण हुआ, जो शक्ति और करुणा का प्रतीक है। बचपन में, जब वैशाली में हाथी दौड़ाया गया तो महावीर ने केवल इशारे से उसे रोक दिया। यह चमत्कार नहीं, अपितु आत्म-शक्ति का प्रमाण था।

गोशाला की घटना भी प्रसिद्ध है। एक चोर गोशाला ने महावीर को लूटने का प्रयास किया, लेकिन उनकी शांति ने गोशाला को परिवर्तित कर दिया। गोशाला बाद में महावीर का शत्रु बना, लेकिन अंततः अहिंसा की विजय हुई।

ये किवदंतियां बताती हैं कि जैन दर्शन में चमत्कार बाहरी नहीं, आंतरिक परिवर्तन हैं। एक धारणा है कि महावीर की तपस्या के दौरान कल्पवृक्ष प्रकट हुए, जो इच्छापूर्ति के वृक्ष थे, लेकिन उन्होंने उन्हें अस्वीकार कर दिया, अपरिग्रह का संदेश देते हुए।

सांस्कृतिक महत्व: नालंदा से विश्व तक अहिंसा का संदेश

नालंदा जिला, जहां कुंडग्राम और पावापुरी स्थित हैं, महावीर की सांस्कृतिक विरासत का केंद्र है। यहां के जैन मंदिर, जैसे पावापुरी का जंबुद्वीप पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। सांस्कृतिक रूप से जैन दीपावली में ‘भाव प्रदीपोत्सव’ होता है, जहां कागज के दीपक जलाए जाते हैं। कोई पटाखे नहीं, क्योंकि अहिंसा पर्यावरण की रक्षा भी करती है।

वैश्विक स्तर पर संयुक्त राष्ट्र ने 2007 में महावीर जयंती को ‘अहिंसा दिवस’ घोषित किया। आज, जब जलवायु परिवर्तन और हिंसा की चुनौतियां हैं, महावीर का संदेश ‘जिओ और जीने दो’ मानवता का कल्याण ही नहीं, पृथ्वी का उद्धार भी करता है।

निष्कर्षतः भगवान महावीर का निर्वाण न केवल एक ऐतिहासिक घटना है, बल्कि सांस्कृतिक ज्योति का स्रोत। इस दीपावली पर नालंदा के इस पुत्र की गाथा को याद करते हुए आइए अहिंसा को अपनाएं। जियो और जीने दो- यही मोक्ष का मार्ग है।

(संदर्भ: जैन आगम ग्रंथ, विकिपीडिया और जैन अध्ययन स्रोत)

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