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पावापुरी महोत्सव 2025 की रौनक बनी सैंड आर्टिस्ट मधुरेंद्र की कलाकृति

पावापुरी (नालंदा दर्पण)। जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर की निर्वाणस्थली नालंदा जिले के पावापुरी में बिहार सरकार के कला संस्कृति एवं युवा विभाग के सौजन्य से जिला प्रशासन नालंदा द्वारा आयोजित दो दिवसीय पावापुरी महोत्सव 2025 का शुभारंभ रविवार को हुआ।

भगवान महावीर के 2551वें निर्वाण अवसर पर आयोजित इस महोत्सव में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सैंड आर्टिस्ट मधुरेंद्र कुमार ने अपनी अनूठी कला से सभी का मन मोह लिया। उनकी बनाई भगवान महावीर की विशाल रेत की मूर्ति न केवल कला का उत्कृष्ट नमूना बनी, बल्कि यह महोत्सव का मुख्य आकर्षण भी रही।

महोत्सव पंडाल में मुख्य सांस्कृतिक मंच के सामने 15 टन रेत का उपयोग कर मधुरेंद्र ने दो दिनों की कठिन मेहनत के बाद 10 फीट ऊंची भगवान महावीर की आकर्षक कलाकृति उकेरी। इस मूर्ति के माध्यम से उन्होंने जैन धर्म के मूल सिद्धांत “अहिंसा परमो धर्म” का संदेश प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया।

इसके साथ ही कलाकृति के पास “स्वीप” (Systematic Voters’ Education and Electoral Participation) लिखकर उन्होंने मतदाताओं से अधिक से अधिक संख्या में मतदान करने की अपील भी की। यह संदेश न केवल कला प्रेमियों, बल्कि सामाजिक जागरूकता के लिए भी प्रेरणादायी रहा।

मधुरेंद्र की यह कलाकृति देश-विदेश से आए जैन श्रद्धालुओं और स्थानीय नागरिकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी। लोग इस मनमोहक रेत की मूर्ति के साथ सेल्फी लेते नजर आए और इसे अपने कैमरों व स्मार्टफोन्स में कैद कर सोशल मीडिया पर साझा किया। यह तस्वीरें सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही हैं, जिससे पावापुरी महोत्सव और नालंदा की सांस्कृतिक विरासत को वैश्विक स्तर पर पहचान मिल रही है।

महोत्सव के दौरान नालंदा की जिला कला पदाधिकारी शालिनी प्रकाश ने मधुरेंद्र कुमार को उनकी उत्कृष्ट कला प्रस्तुति के लिए मुख्य मंच पर स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। इस अवसर पर उपस्थित जिलाधिकारी कुंदन कुमार सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने भी मधुरेंद्र की कला की जमकर सराहना की और उन्हें बधाई दी।

बता दें कि पावापुरी भगवान महावीर की निर्वाणस्थली के रूप में विश्वविख्यात है। यहां हर साल इस तरह के आयोजनों से अपनी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर को और समृद्ध करता है। मधुरेंद्र की यह सैंड आर्ट कृति न केवल कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, बल्कि यह जैन धर्म के शांतिपूर्ण और अहिंसक संदेश को भी विश्व भर में फैलाने का फिर माध्यम बनी।

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