
चंडी (नालंदा दर्पण)। चंडी प्रखंड के भासिन विगहा मध्य विद्यालय के छात्रों ने एक बार फिर सड़क पर उतरकर अपने गुस्से और निराशा का इजहार किया। स्कूल जाने के रास्ते में कमर तक पानी और कीचड़ की समस्या से त्रस्त होकर दस दिन के भीतर दूसरी बार छात्रों ने चिलचिलाती धूप में राष्ट्रीय राजमार्ग को जाम कर दिया।
उनकी मांग है कि स्कूल तक जाने वाला रास्ता सुगम और सुरक्षित बनाया जाए। लेकिन अफसोस, न तो प्रशासन और न ही जनप्रतिनिधि इस समस्या का कोई ठोस समाधान निकाल पा रहे हैं। सभी एक-दूसरे पर दोषारोपण कर रहे हैं, जबकि बच्चों का भविष्य दांव पर लगा है।
इस मानसून में बारिश ने भासिन विगहा मध्य विद्यालय के छात्रों और शिक्षकों की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। स्कूल तक पहुंचने का एकमात्र रास्ता कीचड़ और पानी से लबालब है।
बच्चे बताते हैं कि उन्हें जूते-चप्पल हाथ में लेकर कीचड़ भरे रास्ते से गुजरना पड़ता है। कई बार तो वे गिर जाते हैं, जिसके चलते कुछ बच्चे आधे रास्ते से ही लौट जाते हैं। शिक्षकों की स्थिति भी अलग नहीं है। वे भी पैंट ऊपर चढ़ाकर स्कूल जाने को मजबूर हैं।
अभिभावकों का डर और भी गंभीर है। वे अपने बच्चों को स्कूल भेजने से कतराते हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि बच्चे गहरे पानी में डूब सकते हैं। एक अभिभावक ने बताया कि हम अपने बच्चों को स्कूल भेजना चाहते हैं, लेकिन रास्ते की हालत इतनी खराब है कि डर बना रहता है। स्कूल तक वैकल्पिक रास्ता न होने के कारण बच्चों और अभिभावकों के पास कोई दूसरा विकल्प भी नहीं है।
यह पहली बार नहीं है, जब छात्रों ने इस समस्या को लेकर आवाज उठाई है। दस दिन पहले भी इन्हीं मुद्दों को लेकर छात्रों ने सड़क जाम कर प्रदर्शन किया था। तब पुलिस प्रशासन ने समझा-बुझाकर जाम हटवा लिया था, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। नतीजतन शुक्रवार को छात्रों का धैर्य फिर जवाब दे गया। जैतीपुर-हरनौत मार्ग पर सैकड़ों छात्र अपने सहपाठियों के साथ सड़क पर उतरे और स्कूल के रास्ते में मिट्टी डालकर अस्थायी समाधान की मांग की।
छात्र आशुतोष कुमार, संजना कुमारी, शिवानी, शबनम, अंजली, आदित्य, गोलू, कोमल, ब्यूटी, रानी, प्रिंस, रुली, पल्लवी और दीपा जैसे कई बच्चों ने अपनी पीड़ा साझा की।
आशुतोष ने कहा कि हम बस्ते की जगह जूते-चप्पल हाथ में लेकर स्कूल जाते हैं। कई बार गिर जाते हैं, कपड़े गंदे हो जाते हैं। स्कूल जाने का और कोई रास्ता नहीं है। संजना ने जोड़ा कि बरसात में हालत और खराब हो जाती है। कई बार तो स्कूल पहुंच ही नहीं पाते।
छात्रों के इस प्रदर्शन को ग्रामीणों और अभिभावकों का भी पूरा समर्थन मिला। वे भी सड़क पर उतरे और बच्चों की मांग को जायज ठहराया। एक ग्रामीण ने कहा कि हमारे बच्चे पढ़ना चाहते हैं, लेकिन रास्ते की हालत ऐसी है कि उनकी जान जोखिम में पड़ रही है। प्रशासन को तुरंत इस पर ध्यान देना चाहिए।”
लगभग डेढ़ घंटे तक चले इस प्रदर्शन के बाद तुलसीगढ़ पंचायत के मुखिया मणिकांत मनीष ने छात्रों को समझाने की कोशिश की। उन्होंने बताया कि स्कूल तक लिंक पथ बनाने में जमीन की अड़चन आ रही है। कुछ लोग अपनी जमीन देने को तैयार हैं, लेकिन कुछ अन्य सहमत नहीं हैं।
मुखिया ने आश्वासन दिया कि वे इस समस्या का समाधान निकालने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन छात्रों और ग्रामीणों का कहना है कि यह जवाब उन्हें लंबे समय से मिल रहा है।
प्रदर्शन के बाद पुलिस ने एक बार फिर छात्रों को समझा-बुझाकर जाम हटवाया, लेकिन इस बार भी कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला। ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के कारण यह समस्या बनी हुई है।
छात्रों और ग्रामीणों की मांग साफ है कि स्कूल तक एक सुरक्षित और सुगम रास्ता। लेकिन सवाल यह है कि आखिर कब तक ये बच्चे अपनी पढ़ाई के लिए सड़क पर उतरने को मजबूर होंगे? क्या प्रशासन और जनप्रतिनिधि इस बार उनकी पुकार सुनेंगे या यह सिलसिला यूं ही चलता रहेगा?









