बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। बदलते समय के साथ चुनाव प्रचार के तौर-तरीके भी बदल रहे हैं। जीवनशैली को लेकर चुनावी प्रचार में टेक्नोलॉजी हावी हो गयी है। अब शहर की सड़कों से लेकर गांव की गलियों में नेताजी की जयकारे नहीं गूंजती है।
चुनाव की घोषणा के दौरान ही पहले प्रत्याशी अपने-अपने कार्यालय खोलकर कार्यकर्ताओं की सुविधा उपलब्ध कराते थे, लेकिन अब टेक्नोलॉजी युग में नेता जी चुनावी कार्यालय के जगह आईटी पर भरोसा दिखाने लगे हैं।
उम्मीदवार व पार्टी अपने समर्थन बढ़ाने के लिए मोबाइल और सोशल मीडिया के माध्यम से आम लोगों तक अपनी उपस्थिति और वादे पहुंचाने लगे हैं। जीवन शैली में परिवर्तन के साथ टेक्नोलॉजी युग में चुनाव प्रचार के तरीके भी बदल गए।
पहले के दिनों में चुनाव प्रचार में घोड़ा गाड़ी व रिक्शे से बंधे लाउड स्पीकर से पार्टी और प्रत्याशी के समर्थन में बैठकों से लेकर रैलियों की जानकारी देने के अलावा वादों और दावों की घोषणा भी की जाती थी।
यहीं नहीं, पहले उम्मीदवार झंडे, बैनर और पोस्टर का भी इस्तेमाल खूब करते थे। नौंवे दशक से पूर्व सभी दल टिन से बने बिल्ले और बैज के जरिए पार्टी के चुनाव चिह्न और प्रत्याशी की फोटो मतदाताओं तक पहुंचाते थे।
सीमित यातायात साधनों के कारण पोस्टकार्ड पर हाथ से लिखी चिट्ठी के जरिए भी उम्मीदवार अपनी बात को मतदाताओं तक पहुंचाते थे। दीवार लेखन का चलन अभी भी है, लेकिन ये केवल चुनाव की घोषणा से पहले तक ही होता है।
आजादी के बाद के कई चुनाव में गीत-संगीत खासकर नुक्कड़ नाटक किए जाते थे। इसके जरिए लोगों तक सीधे बात पहुंचानी आसान होती थी, पर अब प्रचार में गीत संगीत और नुक्कड़ नाटक का इस्तेमाल नहीं होता।
पहले गीत-संगीत, नुक्कड़ सभाओं के जरिए प्रत्याशी हर वोटर से मिलता था। क्षेत्र के चिन्हित मैदान, स्कूल, कॉलेज आदि में निर्धारित तिथि में नामी नेताओं का रैली होती थी, जहां बड़े- बड़े नेता अपने पार्टी के उम्मीदवार के लिए अधिक लोगों से सीधा संवाद स्थापित किया करते थे। लेकिन अब चुनावी रैली में पार्टी कार्यकर्ता भी रुचि नहीं दिखाते हैं।
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