नालंदा दर्पण डेस्क। इस व्यवस्था में सरकारी जबान में वो उस लकीर के नीचे के बाशिन्दे हैं, जिसे गरीबी रेखा कहते हैं। हुकूमत कहती है ग्रामीण भारत में 32 रूपये और शहरी भारत में 47 रूपये वाला गरीब है। लेकिन सरकार सफेद झूठ बोलती है।
हकीकत में इस देश में गरीब या गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोग वो नहीं है जो सरकारी फाइले बताती है। इस देश में असल गरीब वो है जो रॉयल इनफील्ड और लाखों की गाड़ी से सरकारी राशन उठाने आते हैं। अमीर वो है जिन्हें इन योजनाओं का लाभ नहीं मिलता है।
असल में देश एवं समाज के असली गरीब यही लोग हैं, जो निर्धनता का जीवन जीने को अभिशप्त है। सरकारी राशन दुकानों से अनाज उठाने के असली हकदार यही लोग हैं। इसलिए सब जगह ऐसे ही रॉयल इनफील्ड या ग्लैमर या फिर पैशन प्रो पर अनाज ले जाते लोग आपको आसानी से दिख जाएंगे।
जब सरकार के अफसर सर्वे करते हैं तो देखते हैं टीवी है बाइक हैं ,मकान हैं इन्हें बीपीएल सूची में शामिल नहीं करना है। झोपड़ी वालों ही हकदार है।लेकिन जब यह सरकारी कागज ब्लॉक पहुँचता है तस्वीर और तकदीर बदल जाती है। झोपड़ी वाले एपीएल में महल वाले बीपीएल श्रेणी में आ जाते है। कुछ यही हाल चंडी प्रखंड में भी देखने को मिलता है। यहाँ भी गरीबों की योजना का लाभ अमीर उठा रहे हैं।
कहते हैं कि सरकार द्वारा गरीब को राहत पहुँचाना उस चुबंक की तरह हैं जो लोहे के टुकड़े को फेंकने का प्रयास कर रहा हो।सरकार की मूल प्रवृत्ति चूसने तथा उत्पीड़न की होती है। देना उसकी प्रवृत्ति के विरूद्ध है । अतः जब सरकार गरीब को सहयोग पहुँचाने का प्रयास करती है तो परिणाम बिलकुल विपरीत होता है। वह सहायता राजतंत्र तथा स्थानीय संभ्रांत वर्ग द्वारा हथिया ली जाती है और गरीबों के लिए सिर्फ लीपा पोती रह जाती है। यही सर्वविदित सत्य है।जिसे कोई झूठला नहीं सकता।
सरकार कहने को भले ही खाध सुरक्षा कानून लागू कर चुकी है। इसके तहत दो रूपया किलो गेहूँ और तीन रूपये किलो चावल दे रही है।इसके पहले सरकार बीपीएल परिवार को महीने में एक बार 25 किलो राशन देती थी। खाध सुरक्षा योजना की शुरुआत होने से पहले सरकार के आर्थिक सर्वे के दायरे में जो लोग आये उन्हें राशन मिला लेकिन हकीकत यही है कि आज भी ये सुविधा से दूर है।इससे गरीबों का अनाज अमीरों के घर पहुचने लगा।कई सरकारी फाइलो में गड़बड़ी कर अमीर गरीब बन गये।
प्रखंड कार्यालय में ऐसे कई लोग हैं जो बीपीएल सूची में नाम रजिस्टर करवाने के लिए हांफते रहें लेकिन उनकी सांसो की आहट मुलाजिम के कानों तक नहीं पहुँची।
सूत्र बताते हैं कि एक ही फोटो पर पांच-पांच राशन कार्ड के लिए आवेदन अनुमंडल कार्यालय पहुँच गया।प्रखंड में महल वाले बदस्तूर अनाज उठाव कर रहें कई ऐसे परिवार भी है जो नौकरी के नाम पर दूसरे शहरों में सपरिवार रहते हैं फिर भी उनके नाम भी दूसरे लाभ उठा रहे है।
चंडी प्रखंड में हजारों ऐसे लाभुक है जिनके पास आलीशान मकान है दस से बीस बीघे की जमीन है, बच्चों को नौकरी है। फिर भी पांच किलो अनाज के लिए फर्जी तरीके से राशनकार्ड बनवाकर इसका लाभ उठा रहे हैं।
सूत्र बताते हैं कि राशन कार्ड के लिए दो हजार रुपए खर्च करने पर यह आसानी से बन जाता है। वैसे भी एक समय देश में 22 करोड़ लोगों को सरकार अनाज दे रही थी, लेकिन पिछले आठ सालों में यह आंकड़ा 82 करोड़ पहुंच गया। उसी तरह चंडी प्रखंड में भी फर्जी तरीके से कई हजार फर्जी कार्डधारक पिछले आठ साल में तैयार हो गए हैं।
चंडी प्रखंड कार्यालय को भी इस फर्जीवाड़े का पता है। फिर भी पदाधिकारी जानते हुए भी अनजान बनें हुए हैं। जिससे प्रखंड के फर्जी लाभुकों के हौंसले बुलंद है। सरकार की इन योजनाओं में भ्रष्टाचार भी इतना है कि यहाँ पीडीएस दुकानदार से लेकर उपभोक्ता तक इसमें शामिल है।
पीडीएस वाले तो कालाबाजारी करते ही है उपभोक्ता भी किसी से कम नहीं है।जिस कारण राष्ट्रीय खाध सुरक्षा अधिनियम और पीएम गरीब कल्याण योजना फेल होती दिख रही है। डीलर से मिले अनाज खुले बाजार में बिक रहा है।
कहा जाता है कि इस योजना के तहत उपभोक्ताओं को अरवा चावल दिया जाता है जो इस प्रखंड के लोग खाना पसंद नहीं करते हैं। इसके अलावा इन दुकानों में मिलने वाली चावल कभी-कभी इतना खराब होता है कि लोग खा भी नहीं सकते हैं।इसलिए औने-पौने दामों में बाजार में बेच देते है।
किसी ने सही कहा है-“किसी की अनाज की कोठरी भरी है,किसी का पेट तक खाली क्यों हैं” सवाल है पर शायद जवाब नहीं ?
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