अदालत ने 34 वर्ष पुराने हत्या मामले में दोषी को सुनाई उम्रकैद की सजा

चंडी (नालंदा दर्पण)। हिलसा व्यवहार न्यायालय ने 34 साल पुराने एक हत्या के मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए 85 वर्षीय अभियुक्त किशोर गोप को सश्रम आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। तृतीय अपर जिला सत्र न्यायाधीश दीपक कुमार यादव ने इस मामले में फैसला सुनाया, जबकि साक्ष्य के अभाव में छह अन्य अभियुक्तों को पहले ही बरी किया जा चुका है। इस मामले ने न केवल न्यायिक प्रक्रिया की लंबी यात्रा को उजागर किया है, बल्कि यह भी दर्शाया है कि देर से ही सही, न्याय अपनी गति से जरूर होता है।
अनुमंडल अभियोजन पदाधिकारी पंकज कुमार दास ने बताया कि यह मामला 5 जनवरी 1991 का है, जब हिलसा अनुमंडल के चंडी थाना क्षेत्र के कैसोर गांव में जमीन विवाद को लेकर दो पक्षों में हिंसक झड़प हुई थी। इस विवाद में रामावतार यादव नामक व्यक्ति की गोली लगने से मौत हो गई थी, जबकि दो अन्य लोग राजदेव यादव और सुनीता देवी गोलीबारी में घायल हो गए थे।
मृतक रामावतार यादव के चाचा मुकुंद गोप ने किशोर गोप सहित 11 अन्य लोगों नरेश गोप, सुंदर गोप, श्याम गोप, चंद्रशेखर गोप, सुरेश गोप, अवधेश गोप, जागेश्वर गोप, विद्यासागर गोप, लड्डू गोप, मोहित गोप और अर्जुन गोप के खिलाफ चंडी थाना में कांड संख्या 5/1991 दर्ज कराया था।
आरोप था कि अभियुक्तों ने रामावतार यादव के घर पर हमला किया और गोलीबारी की, जिसमें रामावतार की मृत्यु हो गई। इस मामले में छात्रावास संख्या 19/1992 के तहत अभियोजन की कार्रवाई शुरू हुई।
इस मामले की सुनवाई के दौरान कई अभियुक्तों जागेश्वर गोप, विद्यासागर गोप, लड्डू गोप, मोहित गोप और अर्जुन गोप की मृत्यु हो गई। शेष सात अभियुक्तों किशोर गोप, नरेश गोप, सुंदर गोप, श्याम गोप, चंद्रशेखर गोप, सुरेश गोप और अवधेश गोप के खिलाफ सुनवाई जारी रही। लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद तृतीय अपर जिला सत्र न्यायाधीश दीपक कुमार यादव ने किशोर गोप को भारतीय दंड संहिता (भादवि) की धारा 302 (हत्या) और शस्त्र अधिनियम की धारा 27 के तहत दोषी ठहराया।
न्यायाधीश ने किशोर गोप को भादवि की धारा 302 के तहत सश्रम आजीवन कारावास और 10 हजार रुपये के अर्थदंड की सजा सुनाई। इसके अतिरिक्त शस्त्र अधिनियम की धारा 27 के तहत 5 वर्ष की कारावास और 5 हजार रुपये के अर्थदंड की सजा दी गई। दोनों सजाएं एक साथ चलेंगी। शेष छह अभियुक्तों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया गया।
यह मामला नालंदा जिले में लंबे समय से चल रहे जमीन विवादों और उनसे उत्पन्न होने वाली हिंसा की गंभीरता को दर्शाता है। साथ ही यह न्यायिक प्रणाली की उस विशेषता को भी उजागर करता है, जो दशकों बाद भी दोषियों को सजा दिलाने में सक्षम है। अभियोजन पक्ष के अनुसार, इस फैसले से समाज में यह संदेश जाएगा कि अपराध के लिए सजा से कोई नहीं बच सकता, भले ही उसमें कितना भी समय लग जाए।
बहरहाल, 34 साल बाद आए इस फैसले ने न केवल पीड़ित परिवार को न्याय दिलाया, बल्कि यह भी साबित किया कि कानून की नजर में कोई भी अपराधी समय के साथ छूट नहीं सकता। यह मामला नालंदा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में दर्ज हो गया है, जो भविष्य में जमीन विवादों और हिंसा को रोकने के लिए एक सबक के रूप में काम करेगा।









