बड़ी निराशाजनक है स्मार्ट क्लास योजना की जमीनी हकीकत!

बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। नालंदा जिले में शिक्षा को आधुनिक बनाने का सपना दिखाने वाली स्मार्ट क्लास योजना कागजों में तो स्मार्ट दिखती है, लेकिन जमीनी हकीकत निराशाजनक है। जिले के 282 माध्यमिक विद्यालयों में से 261 में स्मार्ट क्लास का संचालन हो रहा है, लेकिन 21 स्कूलों में यह सुविधा पूरी तरह ठप पड़ी है।
स्मार्ट टीवी खराब होने, चोरी होने, बिजली की कमी और वाई-फाई कनेक्टिविटी न होने जैसी समस्याओं ने इस योजना को पंगु बना दिया है। आखिर शिक्षा विभाग की यह महत्वाकांक्षी योजना क्यों लड़खड़ा रही है? क्या यह बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं है?
नालंदा के कई स्कूलों में स्मार्ट क्लास की सुविधा शुरू तो हुई, लेकिन संसाधनों की कमी ने इसे बेकार कर दिया। उदाहरण के लिए, उत्क्रमित विद्यालय (उवि) हरगावां और हवेली बिहारशरीफ में स्मार्ट टीवी उपलब्ध ही नहीं हैं।
उवि खुशहालपुर, कुंडवापर और जमुआवां एकंगरसराय में वाई-फाई की समस्या ने डिजिटल शिक्षा को ठप कर रखा है। उवि दशरथपुर और इसुआ गिरियक में टीवी खराब पड़े हैं, जबकि उवि गोनावां हरनौत में बिजली कनेक्शन की कमी ने स्मार्ट क्लास को निष्क्रिय कर दिया है।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि उवि सोसन्दी, अम्बा, मोरातालाब, मई फरीदा और सोनसा रहुई जैसे स्कूलों में स्मार्ट टीवी चोरी हो चुके हैं। इन समस्याओं ने न केवल शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित किया है, बल्कि अभिभावकों और छात्रों में निराशा भी पैदा की है।
जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ) आनंद विजय का कहना है कि पूर्णिया में चल रहे लाइव क्लास को यू-ट्यूब लिंक के माध्यम से नालंदा के स्मार्ट क्लासरूम में संचालित किया जा रहा है। इसके लिए 43 शिक्षकों की एक टीम दो सप्ताह के शेड्यूल के तहत विभिन्न विषयों के चैप्टर पढ़ा रही है। लेकिन बिना बिजली और वाई-फाई के यह लाइव क्लास कितने स्कूलों तक पहुंच पा रही हैं? कई शिक्षकों का कहना है कि तकनीकी खामियों की शिकायतें बार-बार विभाग को दी गईं, लेकिन समस्याएं जस की तस हैं।
अभिभावकों का भी कहना है कि स्मार्ट क्लास की सुविधा से बच्चों में पढ़ाई के प्रति रुचि बढ़ती है। डिजिटल बोर्ड पर चित्र और वीडियो के जरिए विषय समझने में आसानी होती है। लेकिन जब टीवी खराब हों या बिजली ही न हो, तो बच्चे कैसे सीखेंगे?
छात्रों का कहना है कि सरकार की योजनाएं अच्छी हैं, लेकिन अगर इन्हें लागू करने में लापरवाही बरती जाएगी तो इसका कोई फायदा नहीं। स्मार्ट क्लास के अभाव में उन्हें पुराने तरीके से पढ़ाई करनी पड़ रही है, जिससे जटिल विषयों को समझने में दिक्कत होती है।
हालांकि, शिक्षा विभाग का दावा है कि स्मार्ट क्लास की निगरानी समय-समय पर की जाती है। डीईओ ने सभी ब्लॉक शिक्षा अधिकारियों (बीईओ) को निर्देश दिए हैं कि समस्याओं का तत्काल समाधान कर स्मार्ट क्लास को सुचारू किया जाए। लेकिन कई स्कूलों में महीनों से डिजिटल कक्षाएं बंद पड़ी हैं।
बहरहाल, स्मार्ट क्लास योजना की विफलता नालंदा में शिक्षा के स्तर को बेहतर बनाने के सपने को झटका दे रही है। क्या विभाग इन समस्याओं का स्थायी समाधान ढूंढेगा? क्या स्कूलों में बिजली, वाई-फाई और उपकरणों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी? यह सवाल न केवल शिक्षा विभाग से हैं, बल्कि उन सभी से हैं, जो नालंदा के बच्चों के लिए बेहतर भविष्य चाहते हैं।









