नालंदा दर्पण डेस्क। जहां कभी भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति हुई थी, वही पावन भूमि आज फिर से एक अलौकिक ऊर्जा से सराबोर हो चली हैं। पिछले नौ दिनों से महाबोधि मंदिर परिसर में गूंज रहे अंतर्राष्ट्रीय त्रिपिटक पाठ कार्यक्रम ने न केवल बौद्ध अनुयायियों को एकजुट किया हैं, बल्कि पूरी दुनिया को शांति और अनुशासन का संदेश दे रहा हैं।

11 दिवसीय 22वें अंतर्राष्ट्रीय त्रिपिटक चैंटिंग समारोह के नौवें दिन श्रीलंका के बौद्ध भिक्षुओं ने विनय पिटक का मधुर पाठ किया, जिससे पूरा कालचक्र मैदान बुद्ध वचनों की दिव्य ध्वनि और लद्दाख की मधुर लोक धुनों से गूंज उठा। सुबह ठीक सात बजे शुरू हुए इस पाठ ने ऐसा जादू बिखेरा कि पर्यटक, श्रद्धालु और स्थानीय निवासी सब एक-दूसरे से बंधे हुए प्रतीत हो रहे थे। जैसे कोई अदृश्य बंधन सबको ध्यान की गहराइयों में ले जा रहा हो।
यह समारोह महाबोधि महाविहार की प्राचीन छांव तले आयोजित हो रहा हैं, जहां हर सुबह सूर्योदय के साथ ही वातावरण में एक पवित्र सन्नाटा छा जाता हैं। कल्पना कीजिए कि महाबोधि वृक्ष की हरी-भरी छांव में सैकड़ों भिक्षु, भिक्षुणियां सफेद वस्त्रों में विराजमान, एक स्वर में विनय पिटक की गाथाओं का उच्चारण कर रहे हैं।
विनय पिटक भगवान बुद्ध द्वारा संघ की शुद्धता, अनुशासन और सदाचार के लिए प्रतिपादित अमर सूत्रों का संग्रह हैं। वह आज भी उतना ही प्रासंगिक लगता हैं, जितना 2500 वर्ष पूर्व था। श्रीलंका के प्रमुख भिक्षु संघ के नेतृत्व में यह पाठ इतना भावपूर्ण था कि हवा में घुली ध्वनि ने पत्तों को भी थरथराने पर मजबूर कर दिया। बोधगया के वरिष्ठ भिक्षु डॉ. भदंत आनंद महाथेरो कहते हैं कि यह पाठ केवल शब्द नहीं, बल्कि बुद्ध की जीवंत ऊर्जा हैं। जब ये वचन गूंजते हैं, तो लगता हैं बुद्ध स्वयं यहां उपस्थित हैं, हमें मार्ग दिखा रहे हैं।
दुनिया भर से जुटे 500 से अधिक भिक्षु-भिक्षुणियों ने इस पाठ में हिस्सा लिया। श्रीलंका के अलावा थाईलैंड, म्यांमार, वियतनाम, कंबोडिया, लाओस और भारत के विभिन्न बौद्ध केंद्रों से आए इन संन्यासियों ने न केवल विनय पिटक की चुनिंदा गाथाओं का सस्वर पाठ किया, बल्कि एक-दूसरे की परंपराओं का आदान-प्रदान भी किया। थाईलैंड की भिक्षुणियों ने ध्यान की विशेष तकनीकों पर चर्चा सत्र आयोजित किया। जबकि म्यांमार के भिक्षुओं ने प्राचीन पाली ग्रंथों की व्याख्या की।
लद्दाख के संगीतकारों द्वारा बजाई गई लोक धुनें जैसे ‘चम डांस’ की लयबद्ध ताल पाठ की पवित्रता को एक नया आयाम दे रही थीं। कालचक्र मैदान, जो सामान्य दिनों में पर्यटकों की चहल-पहल से भरा रहता हैं। आज शांतिपूर्ण ध्यान केंद्र में परिवर्तित हो गया था।
यह समारोह केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि वैश्विक एकता का प्रतीक भी हैं। संयुक्त राष्ट्र की सांस्कृतिक एजेंसी यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित महाबोधि मंदिर ने इस बार बौद्ध जगत को एक मंच प्रदान किया हैं, जहां जलवायु परिवर्तन से लेकर मानसिक स्वास्थ्य तक के मुद्दों पर बौद्ध दृष्टिकोण से चर्चा हो रही हैं।
आयोजकों के अनुसार कार्यक्रम के अंतिम दो दिनों में सूत्र पिटक और अभिधम्म पिटक का पाठ होगा, जिसमें जापान और ताइवान के भिक्षु भी शामिल होंगे। बोधगया के मंदिर प्रबंधन समिति के सचिव बताते हैं कि त्रिपिटक पाठ बौद्ध धर्म का हृदय हैं। यह न केवल आध्यात्मिक पुनरुत्थान का माध्यम हैं, बल्कि आधुनिक दुनिया में शांति की खोज का भी। पिछले नौ दिनों में हमने देखा कि कैसे यह पाठ पर्यावरण की शुद्धता को भी बढ़ावा दे रहा हैं। कोई प्लास्टिक का उपयोग नहीं, केवल प्राकृतिक सामग्री।
जैसे-जैसे सूर्य अस्त होते ही पाठ समाप्त हुआ, महाबोधि मंदिर परिसर में दीप प्रज्वलन का आयोजन हुआ। श्रद्धालु आंसुओं से भरे आंखों से प्रार्थना कर रहे थे। मानो अलौकिक शक्ति ने उनके हृदय को छू लिया हो। यह समारोह न केवल बोधगया को वैश्विक ध्यान का केंद्र बना रहा हैं, बल्कि बौद्ध दर्शन की सार्वभौमिक अपील को भी रेखांकित कर रहा हैं। निश्चित ही बोधगया की यह अलौकिक शांति दुनिया भर में फैल जाएगी, हमें याद दिलाती हुई कि शांति का मार्ग अनुशासन और करुणा से होकर गुजरता हैं।









