
राजगीर (नालंदा दर्पण डेस्क)। विधानसभा चुनाव 2025 की धूम-धाम और आदर्श आचार संहिता की सख्ती खत्म होते ही प्रशासनिक अफसरों की नींद खुलनी चाहिए थी, लेकिन राजगीर की सड़कों पर तो अभी भी वही पुराना महाजाम जारी हैं। पटना से लेकर गया तक का पर्यटक जब राजगीर पहुंचता हैं तो बौद्ध स्थल और हॉट एयर बलून का सपना लेकर आता हैं, लेकिन पटेल चौक, जेपी चौक, हनुमान चौक और वीरायतन मोड़ पर घंटों जाम में फंसकर उसका सारा उत्साह काफूर हो जाता हैं।
स्थिति इतनी विकट हो चुकी हैं कि अस्पताल मोड़ पर एम्बुलेंस तक फंस जाती हैं। छबिलापुर और रेलवे स्टेशन के आसपास तो दिन के उजाले में भी गाड़ियां रेंगती नजर आती हैं। कुंड क्षेत्र में जहां देश-विदेश के श्रद्धालु शांति की तलाश में आते हैं, वहां भी ऑटो-ई-रिक्शा और ठेले वालों ने सड़क पर कब्जा जमा रखा हैं।
सबसे बड़ी विडंबना यह हैं कि आजादी के 78 साल बाद भी राजगीर में सवारी वाहनों के लिए एक भी स्थायी पार्किंग स्टैंड नहीं हैं। ऑटो और ई-रिक्शा चालक मजबूरन मुख्य सड़क पर ही गाड़ियां खड़ी कर देते हैं। नगर परिषद जुर्माना तो तुरंत ठोक देती हैं, लेकिन खड़ी करने की जगह नहीं बताती।
पिछले 10-12 सालों में दर्जनों बैठकें हुईं। करोड़ों रुपये के प्रस्ताव बने। फुटपाथ खाली करने के अभियान चले। लेकिन जमीनी हकीकत वही ढाक के तीन पात। 70-80 के दशक में जब शहर की आबादी कम थी और गाड़ियां कम थीं, तब भी हर चौक पर ट्रैफिक पुलिस का जवान खड़ा रहता था।
आज 2025 में भी कोई प्रमुख चौक पर ट्रैफिक पुलिस नहीं दिखती। स्थानीय थाने के जवान आते हैं, देखते हैं और चले जाते हैं। नियमों की धज्जियां पुलिस के सामने ही उड़ाई जाती हैं। राजगीर अब सिर्फ बिहार का नहीं, विश्व स्तर का पर्यटन स्थल बन चुका हैं। यहां अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन होते हैं, लाखों श्रद्धालु आते हैं, लेकिन यातायात व्यवस्था अभी भी ग्राम पंचायत स्तर की हैं।
चुनावी व्यस्तता का बहाना अब खत्म हो चुका हैं। नगर परिषद, यातायात पुलिस और अनुमंडल प्रशासन अगर अभी भी नहीं जागे तो आने वाला पर्यटन सीजन राजगीर की छवि को हमेशा के लिए धूमिल कर देगा। स्थानीय लोग और पर्यटक एक ही सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर कब तक चलेगा यह जाम का खेल? कब बनेगी एक भी पार्किंग? कब खाली होंगे फुटपाथ? कब दिखेगा चौक-चौराहों पर ट्रैफिक पुलिस का डंडा?









