मोंथा का प्रकोप: नालंदा के खेतों पर काली छाया, किसानों की कमर टूटी, फसलें बर्बाद!

बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण संवाददाता)। कल्पना कीजिए, सुबह-सुबह जब किसान अपने खेतों की ओर कदम बढ़ाते हैं तो आंखों के सामने बस एक दृश्य: हवा से गिरते-पड़ते धान के पौधे, मिट्टी में लथपथ फसलें और आसमान से बरसती अटूट बूंदें। बंगाल की खाड़ी से उठा ‘मोंथा’ चक्रवात ने नालंदा जिले को अपनी चपेट में ले लिया। मानो प्रकृति ने किसानों की उम्मीदों पर एक काला पर्दा डाल दिया हो।
जिले में 25.7 मिलीमीटर की झमाझम बारिश ने न सिर्फ खेतों को जलमग्न कर दिया, बल्कि लाखों किसानों के सपनों को भी पानी-पानी कर दिया। धान की पकी-तैयार फसलें अब गिरने की कगार पर हैं, और यदि हवाओं ने रफ्तार पकड़ ली तो नुकसान का आंकड़ा चिंताजनक रूप से बढ़ सकता है।
यह कोई साधारण बारिश नहीं थी। यह एक चक्रवाती तूफान का क्रोध था, जो मंगलवार से ही जिले पर मंडरा रहा था। शुरुआत हल्की-फुल्की लगी। बुधवार को बादल छाए, हल्की बूंदाबांदी हुई और ठंडी हवाओं ने गर्मी की तपिश को थोड़ी राहत दी। लेकिन गुरुवार रात से ही हालात बिगड़ने लगे। रुक-रुक कर बरसती बूंदें शुक्रवार सुबह तूफानी रूप धारण कर चुकी थीं।
पूरे दिन सूरज का नामोनिशान न रहा, और बारिश की रफ्तार ने सबको चौंका दिया। जिले के मौसम विभाग के अनुसार शुक्रवार का अधिकतम तापमान 27 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम 21 डिग्री तक लुढ़क गया। ठंडी हवाओं ने लोगों को चादर-ओढ़नी की याद दिला दी, जबकि सड़कें कीचड़ और पानी से लबालब हो गईं। बच्चे-बुजुर्ग घरों में सिमट गए, और बाहर निकलना किसी साहसिक कार्य जैसा हो गया।
खेतों में बिखरी उम्मीदें: धान की फसल पर मंडराया संकट
नालंदा के किसान इस साल धान की फसल से बेहद उम्मीदें बांधे थे। अनुकूल मौसम ने फसल को भरपूर लहलहाया था। हरे-भरे खेत चावल के दानों से लदे थे और कटाई की घड़ी सिर पर थी। लेकिन मोंथा ने सबकुछ उलट-पुलट कर दिया। खेतों में खड़ी धान की फसलें अब हवा के थपेड़ों से लड़ रही हैं।
किसानों के अनुसार फसल बिल्कुल तैयार है, लेकिन ये लगातार बारिश और हवाएं… अगर रात में तेज हवा चली तो पौधे गिर जाएंगे। बीज खराब हो जाएंगे और बाजार में दाम भी गिरेंगे। हम तो कर्ज चुकाने के सपने देख रहे थे, अब सब धुल गया। यदि हवाओं ने रफ्तार बढ़ाई, तो फसल न सिर्फ गिरेगी, बल्कि उपज में 30-40 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि अधिक नमी से फसलों की गुणवत्ता प्रभावित होगी, जिससे किसानों को मिलने वाला मूल्य भी घटेगा।
अभी भी मौसम पूर्वानुमान और भी निराशाजनक है। अगले दो दिनों तक जिले में बारिश और बादल छाए रहने की संभावना है, बिना किसी विशेष सुधार के। यदि यह सिलसिला जारी रहा तो नुकसान का साइकिल और लंबा हो जाएगा।
किसान संगठनों ने जिलाधिकारी से तत्काल राहत की मांग की है। बीमा क्लेम की सुविधा, क्षतिपूर्ति और वैकल्पिक सिंचाई योजनाओं पर जोर दिया जा रहा है। लेकिन फिलहाल खेतों में खड़ी फसलें चुपचाप अपनी किस्मत का इंतजार कर रही हैं।
जनजीवन अस्त-व्यस्त: कीचड़ भरी सड़कें, ठंड की मार
चक्रवात का असर सिर्फ खेतों तक सीमित नहीं रहा। पूरा जिला हिल गया। सड़कों पर पानी जमा होने से वाहन फिसल रहे हैं, और पैदल चलना जोखिम भरा हो गया। बाजारों में सन्नाटा पसर गया। दुकानें जल्दी बंद हो रही हैं और स्कूल-कॉलेजों में छुट्टियां घोषित कर दी गईं।
बच्चों को ठंड लग रही है, बाहर निकलना ही मुश्किल है वृद्धों को तो और भी परेशानी हो रही है। डॉक्टरों की सलाह है कि घरों में रहें और गर्माहट बनाए रखें। बिजली-पानी की आपूर्ति में भी रुकावटें आ रही हैं, जिससे ग्रामीण इलाकों में हालात और कठिन हो गए हैं।
रबी की बुआई पर संकट का बादल: किसानों की नई चिंता
धान की कटाई का संकट तो है ही, लेकिन मोंथा का असली जख्म रबी फसल की बुआई पर पड़ेगा। अधिक बारिश से खेतों में नमी लंबे समय तक बनी रहेगी, जिससे धान काटने में देरी होगी। इसके बाद आलू, सरसों और गेहूं जैसी रबी फसलों की बुआई भी प्रभावित हो जाएगी।
अभी तो रबी की तैयारी ही रुक गई है। यदि अगले हफ्ते तक मौसम सुधरा नहीं तो उत्पादन में 20-25 प्रतिशत की कमी आ सकती है। किसानों को वैकल्पिक फसल चक्र अपनाने की सलाह दी जा रही है, लेकिन नुकसान तो होगा ही। जिले के 80 प्रतिशत से अधिक किसान धान-रबी पर निर्भर हैं, इसलिए यह देरी उनके परिवारों की आजीविका पर सीधी चोट करेगी।
मोंथा चक्रवात ने नालंदा को एक कड़ा सबक दिया है। प्रकृति के प्रकोप के आगे इंसान कितना लाचार है। लेकिन उम्मीद की किरण बाकी है। यदि जल्दी सुधार हुआ तो किसान फिर से उठ खड़े होंगे। जिला प्रशासन ने राहत कार्य शुरू कर दिए हैं और किसान संगठन एकजुट हो रहे हैं। फिलहाल, किसानों के चेहरों पर मायूसी साफ दिख रही है एक प्रार्थना के साथ कि आसमान अब दया दिखाए।









