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अब चुनाव नहीं लड़ेंगे EVM से जीतने वाले देश के पहले MLA हरिनारायण सिंह

नालंदा दर्पण/राजनीतिक डेस्क। कहते हैं इस धरती पर कोई अजर-अमर होकर नहीं आया। न राजनीति, न ही कोई व्यक्ति। लेकिन कुछ लोग (MLA) अपने कर्म और व्यक्तित्व से इतिहास के पन्नों पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। नालंदा की राजनीति के भीष्म पितामह हरिनारायण सिंह ऐसे ही एक व्यक्तित्व हैं। 47 वर्षों तक विधायक और मंत्री के रूप में जनसेवा करने वाले 85 वर्षीय हरिनारायण सिंह ने हाल ही में राजनीति से संन्यास की घोषणा कर एक युग का अंत कर दिया। उनकी यह यात्रा न केवल नालंदा की, बल्कि भारतीय राजनीति की भी एक अनमोल धरोहर है। विशेष रूप से वे देश के पहले विधायक थे, जिन्होंने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) से चुनाव जीता।

Harinarayan Singh, the country's first MLA to win using EVM, will not contest elections now
Harinarayan Singh, the country’s first MLA to win using EVM, will not contest elections now

एक शानदार राजनीतिक सफरः

हरिनारायण सिंह का जन्म नालंदा के नगरनौसा प्रखंड के महमदपुर गांव में हुआ। 1974 में जेपी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाते हुए उन्होंने बिहारशरीफ कारा में 15 दिन और भागलपुर जेल में 21 महीने बिताए। आपातकाल के बाद 1977 में जब लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई तो उन्हें जनता पार्टी से लोकसभा का टिकट ऑफर किया गया, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया। लेकिन उसी वर्ष विधानसभा चुनाव में चंडी विधानसभा से जनता पार्टी के टिकट पर उन्होंने पहली बार जीत हासिल की और बीबीसी हिंदी सेवा की सुर्खियों में आए। इस जीत ने 1962 से चली आ रही डॉ. रामराज सिंह की एकछत्र सत्ता को समाप्त किया।

हरिनारायण सिंह ने अपने राजनीतिक जीवन में नौ बार विधानसभा चुनाव जीता। छह बार चंडी और तीन बार हरनौत से परचम लहराया। उन्होंने जनता पार्टी, लोकदल, जनता दल, समता पार्टी और जदयू जैसे विभिन्न दलों के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीता। लालू प्रसाद यादव के मंत्रिमंडल में कृषि राज्यमंत्री और नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल में शिक्षा मंत्री के रूप में उन्होंने अपनी प्रशासनिक क्षमता का परिचय दिया। इसके अलावा  वे कई संसदीय पदों पर भी रहे।

ईवीएम से जीत का ऐतिहासिक रिकॉर्डः

1983 का चंडी विधानसभा उपचुनाव भारतीय निर्वाचन इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। यह पहला अवसर था, जब बिहार में ईवीएम का उपयोग किया गया। हरिनारायण सिंह ने इस चुनाव में जीत हासिल की और देश के पहले विधायक बने, जिन्होंने ईवीएम के माध्यम से जीत दर्ज की। हालांकि केरल के परवूर निर्वाचन क्षेत्र में भी उसी समय ईवीएम का उपयोग हुआ था, जहां सीपीआई के सिवन पिल्लई ने जीत हासिल की थी। लेकिन वहां बाद में कोर्ट के आदेश पर बैलेट पेपर से दोबारा मतदान हुआ। जिसके कारण हरिनारायण सिंह को यह गौरव प्राप्त हुआ।

हरनौत: नीतीश का गढ़, हरिनारायण की कर्मभूमिः

वर्तमान में हरनौत विधानसभा सीट बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृह क्षेत्र है, जो एक हॉट सीट मानी जाती है। नीतीश कुमार स्वयं यहां से तीन बार चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन उन्हें आखिरी बार में ही जीत मिली। दूसरी ओर हरिनारायण सिंह ने 2010, 2015 और 2020 में इस सीट से लगातार जीत हासिल की। 2009 में परिसीमन के बाद जब चंडी विधानसभा का अस्तित्व समाप्त हुआ, तब लगा कि उनका राजनीतिक करियर खत्म हो जाएगा। लेकिन नीतीश कुमार ने उन पर भरोसा जताया और 2010 में हरनौत से टिकट दिया, जिसे उन्होंने जीत में बदला।

2015 में स्थानीय नेताओं ने उनकी उम्मीदवारी का विरोध किया, लेकिन नीतीश कुमार का समर्थन उनके साथ रहा। 2020 में 80 वर्ष की आयु में भी नीतीश ने उन्हें टिकट दिया और उन्होंने नौवीं बार विधानसभा में प्रवेश किया। नालंदा में नौ बार विधानसभा चुनाव जीतने का रिकॉर्ड उनके नाम है।

सरल व्यक्तित्व, नीतीश का सम्मानः

हरिनारायण सिंह का व्यक्तित्व अत्यंत सरल और सहज है। स्वयं नीतीश कुमार उनका सम्मान करते हैं। उनकी जिंदादिली और जनसेवा के प्रति समर्पण ने उन्हें नालंदा की जनता का चहेता बनाया। उनके सामने उम्र का बंधन आ खड़ा हुआ, जिसके कारण उन्होंने राजनीति से संन्यास लेने का निर्णय लिया। पिछले महीने नगरनौसा और हाल ही में चंडी में आयोजित सभाओं में उन्होंने इसकी औपचारिक घोषणा की।

राजनीतिक संन्यास और विरासत की चर्चाः

हरिनारायण सिंह ने भले ही राजनीति से संन्यास ले लिया हो लेकिन वे एक कार्यकर्ता के रूप में मार्गदर्शन करते रहेंगे। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि वे अपनी विरासत अपने पुत्र अनिल कुमार को सौंपना चाहते हैं। 2020 के चुनाव में भी ऐसी अटकलें थीं, लेकिन तब नीतीश कुमार ने हरिनारायण सिंह को ही प्राथमिकता दी। अब उनके संन्यास के बाद हरनौत में जदयू के लिए उम्मीदवार चयन आसान नहीं होगा। नीतीश कुमार, जो स्वयं परिवारवाद से दूरी बनाए रखते हैं। उनके लिए यह निर्णय कठिन हो सकता है। सवाल यह है कि क्या वे हरिनारायण सिंह के पुत्र को टिकट देंगे या कोई नया चेहरा सामने आएगा?

एक युग का अंत, नई शुरुआत की उम्मीदः

हरिनारायण सिंह की राजनीतिक यात्रा न केवल नालंदा, बल्कि पूरे बिहार के लिए प्रेरणादायक है। उन्होंने जीवन को राजनीति से अधिक सार्वजनिक सेवा के रूप में जिया। उनकी जिंदादिली, सादगी और जनता के प्रति समर्पण उन्हें एक आदर्श राजनेता बनाता है। बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और हरनौत की सीट पर सबकी नजरें टिकी हैं। हरिनारायण सिंह का संन्यास भले ही एक युग का अंत हो, लेकिन उनकी विरासत और प्रेरणा नई पीढ़ी को दिशा दिखाती रहेगी।

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