
चंडी (नालंदा दर्पण)। बिहार की राजनीतिक दुकानों में हरनौत विधानसभा सीट को अगर कोई अभेद्य किला कहें तो गलत न होगा। नालंदा जिले की यह हॉट सीट मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृह क्षेत्र होने के कारण हमेशा सुर्खियों की मेजबान रही है। इस बार 2025 विधानसभा चुनाव में एक अनोखे रंग में रंगी नजर आ रही है।
यहां एनडीए समर्थित जदयू के दिग्गज योद्धा हरिनारायण सिंह की उम्र 78 बसंत पार कर चुकी है। लेकिन एक बार फिर मैदान में उतरकर इतिहास रचने की ठान चुके हैं। लेकिन उनके सामने महागठबंधन की ओर से कांग्रेस के 42 वर्षीय अरुण कुमार उर्फ अरुण बिंद ने ऐसी चुनौती फेंकी है, मानो किले की दीवारों पर युवा तीरों की बौछार हो रही हो।
जनसुराज पार्टी के कमलेश पासवान जैसे स्थानीय चेहरों ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है तो छोटी पार्टियों के उम्मीदवारों ने भी हवा में हलचल पैदा कर दी है। कुल 11 प्रत्याशियों के बीच मतदान ने हरनौत को एक बार फिर सियासी थ्रिलर का रूप दे दिया।
हरनौत की मिट्टी में राजनीति की जड़ें इतनी गहरी हैं कि यहां हर चुनाव एक महाकाव्य सरीखा लगता है। 2005 से जदयू का यह गढ़ रहा है, जहां हरिनारायण सिंह ने 2010 और 2015 में लगातार जीत हासिल की। 2010 में उन्होंने एलजेपी के अरुण कुमार को 15,042 वोटों के अंतर से हराया था, जबकि 2015 में 71,933 वोटों के साथ फिर से ताज पहन लिया।
कुल 2.96 लाख पंजीकृत मतदाताओं वाले इस क्षेत्र में 2020 के चुनाव में भी जदयू को 65,001 वोट मिले थे। लेकिन इस बार सूरज अलग दिशा से उगने की कोशिश कर रहा है। हरिनारायण सिंह अब तक 12 बार चुनाव लड़ चुके हैं और 9 बार जीत का स्वाद चख चुके हैं। इस बार 13वीं दफा मैदान में हैं।
1977 में चंडी सीट से जनता पार्टी के टिकट पर उन्होंने अपना सफर शुरू किया था, तब से 7 दलों के झंडे तले उतर चुके हैं। पूर्व मंत्री के रूप में उनकी साख है, लेकिन बढ़ती उम्र (78 वर्ष) ने विपक्ष को नया हथियार थमा दिया। मतदान के दौरान ही स्थानीय चाय-पान की दुकानों पर उनकी उम्र की चर्चा गर्म
उनके सामने खड़े अरुण कुमार बिंद कांग्रेस के चेहरे हैं, जो महागठबंधन की उम्मीदों पर सवार हैं। मात्र 42 वर्ष के यह युवा नेता स्थानीय मुद्दों जैसे बाढ़ प्रभावित इलाकों में राहत, किसानों की कर्जमाफी और युवाओं के लिए रोजगार पर जोर दे रहे हैं। विपक्ष का दावा है कि हरिनारायण की ‘पुरानी राजनीति’ से तंग आ चुके मतदाता अब बदलाव चाहते हैं।
वहीं जनसुराज पार्टी से उतरे कमलेश पासवान, जो तीन बार नगर पंचायत सदस्य रह चुके हैं, शहरी वोटों में सेंध लगाने की कोशिश में हैं। उनका फोकस विकास और वंचितों के अधिकार पर है, जो जदयू के वोट बैंक को चीर सकता है। आम आदमी पार्टी के धर्मेंद्र कुमार शिक्षा और स्वास्थ्य सुधार का वादा कर रहे हैं।
वहीं विकास वंचित इंसान पार्टी के धनंजय कुमार और राष्ट्रीय सनातन पार्टी के इंद्रसेन प्रियदर्शी जैसे उम्मीदवार छोटे-मोटे वोटों के लिए संघर्षरत हैं। कुल मिलाकर यह मुकाबला सिर्फ सीट का नहीं, बल्कि अनुभव बनाम युवा ऊर्जा का है।
चुनावी दिन सुबह से ही हरनौत में गहमागहमी का माहौल रहा। सूर्योदय के साथ ही मतदान केंद्रों पर कतारें सज गईं। महिलाएं, युवा, बुजुर्ग सभी उत्साहित नजर आए। प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए थे। हर प्रखंड में पुलिस बल, मजिस्ट्रेट की गश्ती वाहनें और केंद्रीय सुरक्षा बल सक्रिय रहे।
यहां कुल 157,309 वोट पड़े, जो 2020 के मुकाबले बेहतर टर्नआउट दर्शाता है। लेकिन मतदान के बीच ही हरिनारायण सिंह को कड़ा मुकाबला झेलना पड़ा। उनके समर्थकों का दावा है कि गांव-गांव में नीतीश कुमार की योजनाओं जैसे जल-जीवन-हरियाली और सात निश्चय का असर दिखा, लेकिन विपक्ष के कार्यकर्ता युवा वोटरों को लामबंद करने में जुटे रहे। उम्र की चर्चा ने तो जैसे चुनाव को और तीखा बना दिया। सोशल मीडिया पर #HariBabaVsYouth ट्रेंड करने लगा।
बहरहाल हरनौत का चुनावी रंगमंच अब परिणाम की प्रतीक्षा में सांस रोके खड़ा है। क्या हरिनारायण सिंह बिहार के सबसे बुजुर्ग विधायक बनकर इतिहास रचेंगे या अरुण बिंद जैसी नई पीढ़ी किले पर झंडा फहराएगी? जनसुराज का वोट विभाजन एनडीए के लिए चुनौती बनेगा या महागठबंधन को फायदा पहुंचाएगा? मतगणना का इंतजार करिए, क्योंकि यहां की कहानी अभी अधूरी है।
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