हरनौत के हरिनारायण ने बनाया रिकार्ड, सर्वाधिक चुनाव जीतने वाले देश के पांचवें नेता बने!
बतौर जनप्रतिनिधि हरिनारायण सिंह का ऐसा कोई भी कार्य प्रदर्शन नहीं रहा है, जिसे क्षेत्र के लिए उल्लेखनीय कहा जा सके। 1990 के बाद वे लालू की नाव पर सवार थे और उसके बाद नीतीश की छांव में आराम फरमाते आ रहे हैं। वे दो टूक कहते भी रहे हैं कि लोग उन्हें वोट थोड़े देते हैं, 1990 के बाद लालू जी और 2000 के बाद नीतीश जी को वोट देते आ रहे हैं। ऐसे से काम करने के मायने क्या होते हैं...

हरनौत (नालंदा दर्पण)। राजनीति में बहुत कम ऐसे नेता हुए हैं जो राजनीतिक के फलक पर सूर्य की भांति चमकते रहें हैं,इसके पीछे उनके व्यक्तित्व का जलवा कहें या जनता का प्यार। नालंदा के हरनौत निर्वाचन से अपराजेय योद्धा हरिनारायण सिंह अपने जीवन के दसवीं विधानसभा चुनाव जीतने वाले बिहार के पहले और देश के पांचवें विधायक बनने का कीर्तिमान स्थापित किया है। इससे पहले वें नालंदा में सर्वाधिक चुनाव जीतने का रिकॉर्ड अपने नाम कर चुके हैं। नालंदा में श्रवण कुमार आठ बार चुनाव जीतने वाले तीसरे नेता हैं।
बिहार में इससे पहले जीतनराम मांझी और सुरेंद्र यादव आठ बार चुनाव जीत चुके हैं। वहीं सुपौल से विजेंद्र प्रसाद यादव और गया से प्रेम कुमार नौ बार चुनाव जीत चुके हैं। वहीं अभी तक देश में सर्वाधिक 13 बार विधानसभा चुनाव जीतने का रिकॉर्ड तमिलनाडु के के एम करुणानिधि के नाम है। जबकि महाराष्ट्र के गणपत राव देशमुख और केरल के ओमान चांडी 11-11 बार तथा राजस्थान के हरिदेव जोशी 10 बार चुनाव जीतने में सफल रहे हैं।
हरनौत से अपने जीवन की 10वीं जीत हासिल करने वाले हरिनारायण सिंह ने कांग्रेस के अरूण बिंद को लगभग 48 हजार मतों से हरा दिया है। हालांकि उन्होंने पहले ही दावा किया था कि वें इस बार लगभग पचास हजार मतों से चुनाव जीतेंगे। यह जीत सिर्फ उनके लिए ही नहीं बल्कि नालंदा एवं बिहार के लिए गौरव का क्षण है। यह जीत दर्शाती है कि जनता का भरोसा लगातार जीतने वाले नेता आज भी राजनीति में अपनी जगह बनाए रखते हैं।
नालंदा की राजनीति में 1965 से सक्रिय अपराजेय योद्धा बनें हुए हरनौत के निर्वतमान विधायक हरिनारायण सिंह लगातार चौथी बार जीत का स्वाद चखा है। इससे पहले वें छह बार विलोपित चंडी विधानसभा क्षेत्र से जीत चुके हैं। हरनौत विधानसभा हमेशा से नीतीश कुमार के लिए प्रतिष्ठा का सीट बना हुआ रहा है। लेकिन यहां से राजनीतिक चाणक्य नीतिश कुमार और नालंदा की राजनीति का भीष्म पितामह हरिनारायण सिंह का गठजोड़ बेजोड़ है।
इस बार सभी आकलन कर रहे थे कि नीतीश कुमार इनका पता साफ कर देंगे। किसी नये चेहरों को टिकट मिलेगा। इसलिए हरनौत विधानसभा से मुखिया से लेकर छुट्भैय्ये नेता तक टिकट के लिए सीएम हाउस मंडराने लगे थे। कुछ विरोधी भी इनके पुत्र को टिकट देने का विरोध करने लगें थे। फिर भी वे राजनीति के फीनिक्स साबित हुए।
राजनीति में दिखावे से दूर रहने वाले निवर्तमान विधायक की यही छवि उनके लिए वरदान साबित हुई। उनका विकल्प अभी हरनौत में नहीं दिखता है। सीएम नीतीश कुमार ने आखिरी बार उनकी उम्र की परवाह नहीं करते हुए भी जो भरोसा जताया था, यह उनकी राजनीति में सम्मानजनक जीत से विदाई इससे बेहतर नहीं हो सकती थी।
नालंदा की राजनीति के दो पुराने क्षत्रप में सत्यदेव नारायण आर्य के बाद पहले ऐसे नेता हैं जो राजनीति में अभी भी सक्रिय हैं। दोनों ने वर्ष 1977 से अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत की। जहां सत्यदेव नारायण आर्य आठ बार विधायक और मंत्री रहे।जबकि हरिनारायण सिंह पिछले विधानसभा चुनाव में जीत हासिल कर उनका रिकॉर्ड तोड़ चुके हैं।
हरिनारायण सिंह का राजनीतिक सफर
कहते हैं यहां कोई अजर-अमर होकर नहीं आया है,न राजनीति और न ही कोई व्यक्ति। अगर बात राजनीति की हो तो बहुत कम ऐसे लोग मिलेंगे जो अपराजेय रहें। अपने 85 साल के जीवन में 48 साल से विधायक पूर्व कृषि राज्यमंत्री और शिक्षा मंत्री रह चुके हरिनारायण सिंह 1977 से चंडी और हरनौत निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते आ रहें हैं। वे राजनीति की कड़ी धूप में गहरी छांव की तरह रहें हैं। हरनौत जहां से सीएम नीतीश कुमार 1977,1980,1985 और 1995 में चुनाव लड़ चुके हैं। जहां उन्हें सिर्फ दो बार जीत मिली थी।
हरनौत से लगातार चौथी जीत हासिल कर चुके हरिनारायण सिंह 1990 में लालू प्रसाद यादव मंत्रिमंडल में कृषि राज्यमंत्री बने और 2005 में नीतीश सरकार में शिक्षा मंत्री बनें। 85 वर्षीय हरिनारायण सिंह ने 1977 में चंडी विधानसभा से पहली बार जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े और जीतकर बीबीसी हिंदी सेवा की खबर में भी आएं।
फिर लोकदल से 1983 विधानसभा उपचुनाव,1990 में जनता दल, 2000 में समता पार्टी फिर 2005 (फरवरी), 2005 (नबबंर) विधानसभा चुनाव में जदयू से चुनाव जीतने में सफल रहें। जब परिसीमन में चंडी विधानसभा का अस्तित्व खत्म हुआ तो लगा मानों हरिनारायण सिंह सहित कई राजनीतिक नेताओं की राजनीतिक कैरियर खत्म हुआ। लेकिन 2010 के विधानसभा चुनाव में सीएम नीतीश कुमार ने हरिनारायण सिंह पर विश्वास करते हुए उन्हे हरनौत से टिकट दिया। जहाँ से वह चुनाव आसानी से जीत गयें।
2015 में फिर उनकी उम्मीदवारी की चर्चा हुई तो हरनौत के स्थानीय नेताओं ने उनका विरोध शुरू कर दिया।फिर भी सीएम नीतीश का वरदहस्त उनपर रहा। जहाँ फिर से जीत हासिल की। अपने राजनीतिक जीवन में वे छह बार चंडी विधानसभा से और चार बार हरनौत विधानसभा से विधायक है। दो बार मंत्रीपद पर रहने के अलावा कई बार संसदीय पदों पर भी रहें। सरल और सहज व्यक्तित्व के धनी हरिनारायण सिंह का सम्मान स्वंय सीएम नीतीश कुमार करते हैं।
नालंदा के नगरनौसा प्रखंड के महमदपुर गांव में जन्मे हरिनारायण सिंह, स्नातक की पढ़ाई के साथ ही 1965 से राजनीतिक समाजसेवा में सक्रिय हो चुके थे।1974 में जेपी आंदोलन में 15 दिन बिहारशरीफ कारा और 21 महीने भागलपुर जेल में रहें। जब आपातकाल हटा और 1977 में लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई तो हरिनारायण सिंह को लोकसभा चुनाव लड़ने का आफर मिला जिसे उन्होंने ठुकरा दिया।
पांच महीने बाद जब विधानसभा चुनाव की घोषणा हुई तो हरिनारायण सिंह को जनता पार्टी से टिकट मिला और वे पहली बार जीत हासिल कर बीबीसी की खबर में भी आएं। साथ ही उन्होंने 1962 से चली आ रही डॉ. रामराज सिंह की एकछत्र राज को खत्म किया। 1980 के विधानसभा चुनाव में उन्हें डॉ. रामराज सिंह से हार का सामना करना पड़ा। 1982 में जब पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ रामराज सिंह का निधन हुआ तो 1983 में उपचुनाव की घोषणा हुई। इस बार फिर से उन्हें वापसी का मौका मिला।
इस बार उनके सामने डॉ. रामराज सिंह के पुत्र अनिल कुमार से हुआ। हालांकि अनिल कुमार के पास जनता की सहानुभूति वोट था। लेकिन हरिनारायण सिंह ने अपने बाजी अपने हाथ में कर ली। 1983 का चंडी विधानसभा उपचुनाव इतिहास के पन्ने में दर्ज है। बिहार में सबसे पहले ईवीएम का प्रयोग इसी विधानसभा क्षेत्र में किया गया था। हालांकि हरिनारायण सिंह ईवीएम से जीतने वाले देश के दूसरे और बिहार के पहले विधायक बनने का कीर्तिमान भी उनके नाम है।
1985 विधानसभा चुनाव में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश की जनता की सहानुभूति कांग्रेस के साथ हो गई। जिसमें अनिल कुमार ने हरिनारायण सिंह को पटखनी दे पहली बार विधानसभा पहुंचे। फिर 1990 का चुनाव लालू प्रसाद यादव की लहर बिहार में थी। जनता दल के टिकट पर हरिनारायण सिंह भी चुनाव मैदान में आएं और तीसरी बार जीत हासिल कर लालू प्रसाद मंत्रिमंडल में कृषि राज्यमंत्री बन गए।
1994 में समता पार्टी का गठन हुआ और अनिल कुमार कांग्रेस छोड़कर समता पार्टी में आ गए। समता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहें अनिल कुमार ने कांटे के मुकाबले में जनता दल के हरिनारायण सिंह को फिर हरा दिया। संयोग ऐसा हुआ कि हरिनारायण सिंह ने जनता दल छोड़ दी और समता पार्टी में 1998 में शामिल हो गए।
2000 विधानसभा का चुनाव समता पार्टी (आज का जनता दल यू) के टिकट पर भाग्य आजमाया और उन्होंने जनता दल के प्रो उषा सिन्हा को हराने में सफलता प्राप्त की। फिर 2005 के फरवरी और फिर नवंबर में हुए चुनाव में भी जीत हासिल की। 2009 में परिसीमन में चंडी विधानसभा का विलोपन हो गया। जब परिसीमन में चंडी विधानसभा का अस्तित्व खत्म हुआ तो लगा मानो हरिनारायण सिंह सहित कई राजनीतिक नेताओं की राजनीतिक कैरियर खत्म हो गया। लेकिन 2010 के विधानसभा चुनाव में सीएम नीतीश कुमार ने हरिनारायण सिंह पर विश्वास करते हुए उन्हे हरनौत से टिकट दिया। जहाँ से वह चुनाव आसानी से जीत गयें।
2015 में फिर उनकी उम्मीदवारी की चर्चा हुई तो हरनौत के स्थानीय नेताओं ने उनका विरोध शुरू कर दिया। फिर भी सीएम नीतीश का वरदहस्त उनपर रहा। जहाँ फिर से जीत हासिल की। 2020 का विधानसभा चुनाव के चर्चा जोरों पर थी कि हरिनारायण सिंह 80 साल के हो चुके हैं ऐसे नीतीश कुमार उनको टिकट नहीं दें सकते हैं। लेकिन नीतीश कुमार की कृपा उन पर बरसी और और नौंवी बार जीतकर विधानसभा पहुंचे। नालंदा में नौ बार चुनाव जीतने का रिकॉर्ड इनके नाम पर हैं।
हरनौत विधानसभा क्षेत्र से विधायक हरिनारायण सिंह की एक शानदार और उल्लेखनीय यात्रा में एक साथ कई कीर्तिमान गढ़ चुके हैं। हालांकि य़ह भी उल्लेखनीय है कि पहले चंडी विधानसभा हो या फिर उसके विलोपन के बाद हरनौत विधानसभा, बतौर जनप्रतिनिधि हरिनारायण सिंह का ऐसा कोई भी कार्य प्रदर्शन नहीं रहा है, जिसे क्षेत्र के लिए उल्लेखनीय कहा जा सके। 1990 के बाद वे लालू की नाव पर सवार थे और उसके बाद नीतीश की छांव में आराम फरमाते आ रहे हैं। वे दो टूक कहते भी रहे हैं कि लोग उन्हें वोट थोड़े देते हैं, 1990 के बाद लालू जी और 2000 के बाद नीतीश जी को वोट देते आ रहे हैं। ऐसे से काम करने के मायने क्या होते हैं।









