
पावापुरी (नालंदा दर्पण)। बिहार के पावापुरी में स्थित भगवान महावीर स्वामी का पवित्र जल मंदिर को ‘बिहार का ताज’ कहा जाता है। यह अब अपनी खोई हुई संगमरमरी चमक को पुनः प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर है। यह ऐतिहासिक मंदिर सदियों से आस्था, संस्कृति और स्थापत्य कला का अनूठा संगम रहा है। जोकि अब एक विशेष जीर्णोद्धार परियोजना के तहत नए सिरे से अपनी दिव्य आभा बिखेरने को तैयार है।
बता दें कि पावापुरी का जल मंदिर एक मनमोहक सरोवर के मध्य श्वेत संगमरमर से निर्मित है और जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण स्थल के रूप में विश्वविख्यात है। इसकी वास्तुकला की बारीकियां और शिल्प कौशल इसे न केवल जैन समुदाय के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र बनाते हैं, बल्कि देश-विदेश के पर्यटकों के लिए भी एक विशेष आकर्षण का स्थल बनाते हैं। मंदिर की श्वेत संगमरमरी संरचना और सरोवर की शांत जलराशि इसे एक अलौकिक सौंदर्य प्रदान करती है, जिसके कारण इसे ‘बिहार का ताजमहल’ भी कहा जाता है।
हालांकि, बीते वर्षों में प्रदूषण, नमी और प्राकृतिक कारणों ने मंदिर के संगमरमर की चमक को फीका कर दिया था। मंदिर की दीवारों और फर्श पर समय की मार ने अपनी छाप छोड़ी थी, जिससे इसकी दिव्य आभा मद्धिम पड़ गई थी। इस स्थिति को देखते हुए जैन श्वेतांबर मंदिर प्रबंधन समिति ने मंदिर के सौंदर्यीकरण और जीर्णोद्धार की एक महत्वाकांक्षी योजना शुरू की है, जिसने न केवल स्थानीय लोगों बल्कि श्रद्धालुओं और पर्यटकों में भी उत्साह का संचार किया है।
इस परियोजना के तहत मंदिर की संगमरमरी संरचना को उसकी मूल चमक और भव्यता में लौटाने के लिए विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। इसके लिए ओडिशा से 21 कुशल कारीगरों की एक टीम को विशेष रूप से बुलाया गया है, जो पिछले दो महीनों से अधिक समय से अथक परिश्रम में जुटे हुए हैं। अनुभवी ठेकेदार तपन मांझी के नेतृत्व में ये शिल्पकार पारंपरिक विधियों और आधुनिक रासायनिक मिश्रणों का उपयोग करके मंदिर के संगमरमर की एक-एक परत को सावधानीपूर्वक साफ कर रहे हैं।
मंदिर प्रबंधन समिति के सचिव शांतिलाल बोथरा बताते हैं कि यह केवल मंदिर की सफाई का काम नहीं है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर को संरक्षित करने का एक पवित्र प्रयास है। हमारा लक्ष्य है कि भगवान महावीर निर्वाण महोत्सव से पहले यह मंदिर अपनी संपूर्ण उज्ज्वलता और आध्यात्मिक आभा के साथ श्रद्धालुओं के स्वागत के लिए तैयार हो।
मंदिर समिति के ट्रस्टी सुभाष बोथरा ने बताया कि यह कार्य केवल मंदिर की बाहरी संरचना तक सीमित नहीं है। मंदिर परिसर की दीवारों, फर्श और अन्य हिस्सों की भी व्यापक मरम्मत और सौंदर्यीकरण किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि हमारा उद्देश्य श्रद्धालुओं को एक स्वच्छ, सुंदर और आध्यात्मिक वातावरण प्रदान करना है, जहां वे शांति और ध्यान के साथ भगवान महावीर के दर्शन कर सकें। यह स्थान न केवल पूजा का केंद्र है, बल्कि आत्मिक शांति और चिंतन का भी प्रतीक है।”
इस परियोजना में ओडिशा के कारीगरों की विशेषज्ञता को विशेष रूप से रेखांकित किया गया है। ओडिशा के शिल्पकार पत्थर और संगमरमर के काम में अपनी बेजोड़ कारीगरी के लिए जाने जाते हैं। उनकी विशेषज्ञता और अनुभव इस परियोजना की सफलता की कुंजी है। इन कारीगरों ने मंदिर की नाजुक संरचना को बिना किसी नुकसान के साफ करने के लिए विशेष तकनीकों का उपयोग किया है, जो परंपरा और आधुनिकता का एक अनूठा मेल दर्शाता है।
उल्लेखनीय है कि पावापुरी का जल मंदिर जैन धर्म के लिए अत्यंत पवित्र स्थल है। यहीं पर भगवान महावीर स्वामी ने 527 ईसा पूर्व में निर्वाण प्राप्त किया था। यह मंदिर जैन समुदाय के लिए सर्वोच्च तीर्थों में से एक है और हर साल लाखों श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं। मंदिर की श्वेत संगमरमरी संरचना और इसके चारों ओर फैला शांत सरोवर इसे एक अनुपम स्थल बनाते हैं, जो न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।
बहरहाल इस जीर्णोद्धार परियोजना से न केवल मंदिर की सुंदरता और आध्यात्मिकता को नया जीवन मिलेगा, बल्कि यह पावापुरी को पर्यटन के नक्शे पर और अधिक प्रमुखता प्रदान करेगा। मंदिर की पुरानी चमक लौटने के साथ ही यह उम्मीद की जा रही है कि देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों की संख्या में वृद्धि होगी, जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार के नए अवसर भी प्राप्त होंगे।
मंदिर प्रबंधन समिति ने भविष्य में भी मंदिर के रखरखाव और संरक्षण के लिए नियमित योजनाओं की घोषणा की है। इसके तहत मंदिर परिसर में स्वच्छता, हरियाली और श्रद्धालुओं की सुविधाओं पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। साथ ही पर्यटकों के लिए डिजिटल गाइड और सूचना केंद्र स्थापित करने की योजना भी विचाराधीन है, ताकि वे मंदिर के इतिहास और महत्व को बेहतर ढंग से समझ सकें।









