राजगीर (नालंदा दर्पण)। नालंदा नगर पंचायत अवस्थित बड़गांव सूर्यपीठ अपने अद्वितीय ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के लिए देश-विदेश में विख्यात हैं। लेकिन आज प्रशासनिक उपेक्षा और अतिक्रमण की मार झेल रहा हैं।
सूर्यपीठ के समीप स्थित पवित्र सूर्य तालाब, जहां हर वर्ष लाखों श्रद्धालु छठ पूजा के दौरान स्नान करते हैं। जीर्ण-शीर्ण स्थिति में पहुंच चुका हैं। तालाब के पानी से दुर्गंध उठ रही हैं। बावजूद इसके स्थानीय प्रशासन ने अब तक इसके पुनरुद्धार को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं।
सिर्फ छठ पूजा के दौरान कुछ दिन पहले अधिकारी यहां का दौरा करते हैं, लेकिन विकास कार्य कागजों तक सीमित रह जाते हैं। तालाब के चारों ओर अतिक्रमणकारियों द्वारा जमीन पर अवैध कब्जा लगातार बढ़ रहा हैं। इससे पीठ का क्षेत्रफल भी सिमटता जा रहा हैं।
यह स्थिति तब और गंभीर हो जाती हैं, जब लाखों की भीड़ मेले में उमड़ती हैं। श्रद्धालुओं को ठहरने और शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव झेलना पड़ता हैं।
स्थानीय प्रशासन की लापरवाहीः बड़गांव का छठ मेला राजकीय मेला घोषित हो चुका हैं, लेकिन प्रशासन की निष्क्रियता के कारण यह क्षेत्र विकास से कोसों दूर हैं।
बड़गांव सूर्यपीठ में वर्ष में दो बार छठ मेला आयोजित होता हैं, जिसमें देश के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु पहुंचते हैं। किंतु नियमित दिनों में भी यहां आने वाली महिलाओं को खुले में शौच की समस्या का सामना करना पड़ता हैं। क्योंकि प्रशासन ने अभी तक स्थायी शौचालय की व्यवस्था नहीं की हैं।
अतिक्रमण और अव्यवस्थाओं का बोलबालाः बड़गांव मेला के लिए 9 एकड़ 55 डिसमिल सैरात भूमि निर्धारित हैं। लेकिन फिलहाल 90 प्रतिशत भूमि पर दबंगों का अवैध कब्जा हैं। पिछले वर्षों में अतिक्रमण को लेकर सिलाव अंचल में कई बार शिकायतें दर्ज कराई गईं, परंतु अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई।
छठ मेला के लिए अस्थायी प्रबंधः कार्यपालक पदाधिकारी का कहना है कि छठ पूजा के पहले तालाब की सफाई कर वहां स्वच्छ पानी भरा जाएगा। वहीं स्थानीय नगर प्रशासन द्वारा तालाब के पश्चिमी भाग में कचरे का भंडारण भी किया जा रहा हैं, जिससे समस्या और गंभीर हो रही हैं।
यह विडंबना ही हैं कि जहां एक ओर सूर्यपीठ का धार्मिक महत्व अनमोल हैं, वहीं दूसरी ओर प्रशासन की अनदेखी और अव्यवस्था इस आस्था स्थल को संकट में डाल रही हैं। यदि समय रहते प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया तो इस ऐतिहासिक स्थल का महत्व और श्रद्धालुओं की संख्या दोनों ही क्षीण हो सकते हैं।
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