इस्लामपुर में पान कृषि अनुदान घोटाला, कार्रवाई की जद में प्रखंड बागवानी पदाधिकारी

बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। नालंदा जिले के इस्लामपुर प्रखंड के पान कृषकों के लिए शुरू की गई सरकारी अनुदान योजना में अनियमितताओं की शिकायतों ने प्रशासन को त्वरित कार्रवाई के लिए मजबूर कर दिया है। पान कृषि उत्थान योजना के तहत किसानों को अनुदान के लिए ऑनलाइन आवेदन की व्यवस्था की गई थी, लेकिन हाल ही में सामने आए दुरुपयोग और लापरवाही के मामलों ने इस योजना की पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। नालंदा के जिला पदाधिकारी कुंदन कुमार ने इन शिकायतों के बाद जांच के आदेश दिए, जिसके परिणाम चौंकाने वाले रहे।
जांच प्रतिवेदन के अनुसार इस्लामपुर प्रखंड में पान कृषकों द्वारा अनुदान के लिए किए गए आवेदनों में कई अनियमितताएं पाई गईं। स्वीकृत और अस्वीकृत आवेदनों की रैंडम जांच में यह सामने आया कि कुछ आवेदकों ने अन्य किसानों की रसीदों को हटाकर अपने नाम पर आवेदन जमा किए। इसके अलावा कुछ स्वीकृत आवेदनों के साथ संलग्न रसीदें और एकरारनामे धुंधले और अपठनीय थे। फिर भी उन्हें स्वीकृति दे दी गई।
जांच में यह भी पाया गया कि कई आवेदनों में अद्यतन रसीद या सत्यापित एकरारनामा नहीं था। योजना के प्रावधानों के अनुसार भूमि स्वामित्व प्रमाण पत्र और राजस्व रसीद को हाल के वर्षों का होना अनिवार्य है, जबकि एकरारनामा चालू वित्तीय वर्ष का होना चाहिए। इन मानकों का पालन न होने के बावजूद आवेदनों को स्वीकृति दी गई, जो प्रखंड बागवानी पदाधिकारी की लापरवाही को दर्शाता है।
जिलाधिकारी कुंदन कुमार ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए प्रखंड बागवानी पदाधिकारी-सह-सहायक तकनीकी प्रबंधक इस्लामपुर से स्पष्टीकरण मांगा है। जांच प्रतिवेदन में उजागर हुई खामियों ने न केवल अनुदान प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं, बल्कि पान कृषकों के बीच असंतोष को भी बढ़ाया है।
इस्लामपुर में पान की खेती न केवल आजीविका का प्रमुख साधन है, बल्कि यह क्षेत्र की सांस्कृतिक और आर्थिक पहचान का भी हिस्सा है। अनुदान योजना का उद्देश्य इन किसानों को आर्थिक सहायता प्रदान करना था, लेकिन प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी ने कई मेहनती किसानों को लाभ से वंचित कर दिया।
यह घटना प्रशासन के लिए एक सबक है कि योजनाओं के कार्यान्वयन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना कितना आवश्यक है। पान कृषकों को सही लाभ दिलाने के लिए प्रक्रिया को और सुदृढ़ करने की आवश्यकता है। क्या यह जांच अन्य योजनाओं में भी सुधार की दिशा में कदम बढ़ाएगी या यह केवल एक अस्थायी कार्रवाई बनकर रह जाएगी? यह सवाल हर उस किसान के मन में है, जो अपने श्रम और मेहनत का उचित फल चाहता है।









