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मुख्यमंत्री पोशाक योजनाः अब यूं ड्रेस में बच्चे स्कूल नहीं आए तो नपेंगे हेडमास्टर

Chief Minister's dress scheme: Now if children do not come to school in this dress, the headmaster will be punished
Chief Minister's dress scheme: Now if children do not come to school in this dress, the headmaster will be punished

बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। बिहार शिक्षा विभाग ने सभी सरकारी स्कूलों में छात्रों की पोशाक में एकरूपता लाने के लिए मुख्यमंत्री पोशाक योजना के तहत नई ड्रेस कोड नीति लागू करने का निर्णय लिया है। इस नीति के तहत अब सभी छात्रों और छात्राओं को निर्धारित रंग के पोशाक पहनकर स्कूल आना अनिवार्य होगा। यदि कोई छात्र-छात्रा इस नियम का पालन नहीं करता है तो स्कूल के हेडमास्टर पर कार्रवाई की जाएगी।

बता दें कि मुख्यमंत्री पोशाक योजना का उद्देश्य सरकारी स्कूलों में अध्ययनरत छात्रों को आर्थिक सहायता प्रदान करना और स्कूल में अनुशासन एवं समानता बनाए रखना है। हालांकि अब तक इस योजना के अंतर्गत छात्रों को पोशाक खरीदने के लिए राशि दी जाती थी। लेकिन ड्रेस का रंग तय नहीं होने के कारण स्कूलों में एकरूपता का अभाव देखा गया। अलग-अलग जिलों के छात्र-छात्राएं भिन्न-भिन्न रंग के कपड़े पहनकर विद्यालय आते थे। इसे देखते हुए शिक्षा विभाग ने पहली बार पोशाक के रंगों का मानकीकरण किया है।

बकौल जिला शिक्षा पदाधिकारी नए ड्रेस कोड के अनुसार कक्षा 1 से 8 तक के छात्रों के लिए आसमानी नीला शर्ट और गहरा नीला पैंट, कक्षा 1 से 8 तक की छात्राओं के लिए आसमानी रंग की समीज या शर्ट, गहरे नीले रंग का सलवार या स्कर्ट, गहरे नीले रंग का दुपट्टा और समीज के आगे के हिस्से में सिला हाफ जैकेट होगा। वहीं  कक्षा 9 से 12 तक की छात्राओं के लिए आसमानी नीले रंग की समीज, गहरे नीले रंग का दुपट्टा और समीज के आगे के हिस्से में सिला हाफ जैकेट होगा।

शिक्षा विभाग ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यह ड्रेस कोड अगले शैक्षणिक सत्र से लागू होगा। स्कूल में अगर कोई छात्र-छात्रा निर्धारित पोशाक में उपस्थित नहीं होता है तो इसके लिए संबंधित विद्यालय के हेडमास्टर को जवाबदेह ठहराया जाएगा।

यह कदम स्कूलों में अनुशासन और समानता को बढ़ावा देगा। इसके अलावा यह सुनिश्चित करेगा कि मुख्यमंत्री पोशाक योजना के तहत दी जाने वाली राशि का सही उपयोग हो। सरकार का मानना है कि ड्रेस कोड से छात्रों में एकरूपता का भाव पैदा होगा।  जिससे उनका मनोबल बढ़ेगा और स्कूलों की पहचान भी सुदृढ़ होगी।

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