CM साहब, ऐसे कैसे पढ़ेंगे बच्चे! विकास कब लौटेगा प्राथमिक विद्यालय?
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से पूछा जाना चाहिए कि क्या इसी तरह ‘विकास’ को बच्चों का ‘भविष्य’ बनाना है? क्या मकरौता जैसे गाँवों में शिक्षा सिर्फ दिखावे भर की चीज़ रह गई है? सरकार को चाहिए कि वह अपने घोषणाओं से आगे बढ़कर ज़मीनी स्तर पर शिक्षा की स्थिति को सुधारने की ईमानदार कोशिश करे...


हिलसा (नालंदा दर्पण)। ‘सबका साथ, सबका विकास’ का नारा ज़मीन पर कैसे चरमराता है, इसकी मिसाल है करायपरसुराय प्रखंड के मकरौता पंचायत स्थित प्राथमिक विद्यालय जलालपुर। यहां शिक्षक हों या छात्र- सब ‘विकास’ की बाट जोह रहे हैं, लेकिन विकास है कि नदारद है। तीन कमरों वाले इस विद्यालय में एक कमरा पूरी तरह जर्जर हो चुका है और बाकी दो कमरों में पहली से पाँचवीं तक की पढ़ाई, प्रधानाध्यापक का कार्यालय और शिक्षकों का साझा संघर्ष एक साथ चलता है।
स्थिति इतनी गंभीर है कि एक ही कमरे में अलग-अलग कक्षाओं के बच्चों को एक साथ पढ़ाया जाता है। पढ़ाई के दौरान ही प्रधानाध्यापक भी उसी कमरे में प्रशासनिक कार्य निपटाते हैं। इससे शिक्षण का माहौल पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो जाता है।
विद्यालय में बेंच-डेस्क जैसी बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं। लगभग 60 छात्र-छात्राएं ज़मीन पर दरी बिछाकर बैठने को मजबूर हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या शिक्षा का अधिकार सिर्फ कागज़ों तक सीमित है?
शौचालय की हालत और भी चिंताजनक है। अलग जगह के अभाव में इसे विद्यालय के बरामदे में ही बना दिया गया है, जो स्वच्छता और बालिकाओं की गरिमा दोनों के लिए गंभीर खतरा है। ऐसी व्यवस्था से बालिकाएं असहज महसूस करती हैं और कई बार स्कूल आना ही छोड़ देती हैं।
विद्यालय के प्रधानाध्यापक का कहना है कि उन्होंने कई बार विभाग को लिखित सूचना दी, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। वहीं जिला शिक्षा पदाधिकारी का जवाब बेहद गैर-जिम्मेदाराना है कि ई-शिक्षा कोष पोर्टल पर मांग दर्ज कराएं। क्या ज़मीनी हकीकत देखने विभागीय अधिकारी खुद कभी विद्यालय पहुंचे हैं?
क्योंकि शिक्षा सिर्फ पाठ्यक्रम और शिक्षक से नहीं, बल्कि एक सुरक्षित और सम्मानजनक वातावरण से मिलती है। लेकिन जलालपुर विद्यालय की यह हालत हमारे सिस्टम की बेरुखी और ग्रामीण शिक्षा की हकीकत को उजागर करती है।
मुख्यमंत्री से पूछा जाना चाहिए कि क्या इसी तरह ‘विकास’ को बच्चों का ‘भविष्य’ बनाना है? क्या मकरौता जैसे गाँवों में शिक्षा सिर्फ दिखावे भर की चीज़ रह गई है? सरकार को चाहिए कि वह अपने घोषणाओं से आगे बढ़कर ज़मीनी स्तर पर शिक्षा की स्थिति को सुधारने की ईमानदार कोशिश करे।
यदि अब भी इस स्कूल की ओर ध्यान नहीं दिया गया तो यह एक अकेले विद्यालय की नहीं, बल्कि पूरे शिक्षा तंत्र की विफलता होगी। अब वक्त है, जब कागज़ों के विकास को हकीकत में बदला जाए। वरना हर गाँव से यही आवाज़ उठती रहेगी कि CM साहब, ऐसे कैसे पढ़ेंगे बच्चे?









