Home नालंदा चीन की दीवार से भी प्राचीन है राजगीर का साइक्‍लोपियन वाल

चीन की दीवार से भी प्राचीन है राजगीर का साइक्‍लोपियन वाल

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राजगीर (नालंदा दर्पण)। हमारे भारत में चीन की दीवार से भी पुरानी एक दीवार है। यह दीवार बिहार के नालंदा जिला अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल राजगीर में अवस्थित है। जिसे साइक्‍लोपियन वाल के नाम से जानते हैं।

करीब ढाई हजार साल पुरानी इस दीवार में पत्‍थरों की जोड़ाई इतनी मजबूत है कि आज भी यह जरा सा नहीं सरकती है। इसे इतिहास का एक बेजोड़ अंग माना जाता है। इसे यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट का दर्जा प्राप्त है।

कहते हैं कि बिहार के नालंदा जिला अंतर्गत राजगीर की पहाड़ियों पर स्थित इस दीवार को मौर्य साम्राज्य ने 322 ईस्वी पूर्व अपनी सुरक्षा के लिए बनवाया था। यानि यह दीवार 18 शताब्दी पुरानी है।

वेशक राजगीर की साइक्लोपियन वाल दुनिया की नजरों से ओझल ढाई हजार पुरानी इंजीनियरिंग का नायाब नमूना है। यह दीवार राजगीर की पंच पहाडिय़ों को जोड़ती है। इसका रख-रखाव आर्किलाजिकल सर्वे आफ इंडिया (एएसआई) करती है। इसे राष्ट्रीय धरोहर का दर्जा प्राप्त है।

कहा जाता है कि इस महान दीवार की नींव पूर्व महाभारत काल में बृहद्रथपुरी (वर्तमान राजगीर) के राजा बृहद्रथ ने राज्य की सुरक्षा के लिए रखी थी। बाद में उनके पुत्र सम्राट जरासंध ने इसे पूरा किया।

चीन की दीवार दुनिया के सात अजूबों में शामिल है। इसे अंतरिक्ष से भी देखा जा सकता है। राजगीर का साइक्लोपियन वाल इससे भी पुराना है। इसे भी नगर की सुरक्षा के लिहाज से बनाया गया था। यह दुनिया की सबसे प्राचीन दीवार माना जाता हैं।

साइक्लोपियन वाल का विस्तार नालंदा, गया और नवादा जिले की सीमा पर वनगंगा के दोनों ओर सोनागिरि और उदयगिरी पर्वत पर 40 किलोमीटर तक है। गया की ओर से राजगीर में प्रवेश करने के पहले दूर से ही यह दीवार सुरक्षा प्रहरी के रूप में तैनात नजर आता है। रत्नागिरी, वैभारगिरी से लेकर विपुलांचलगिरी तक इसकेअवशेष दिखते हैं। इसकी ऊंचाई चार मीटर तथा चौड़ाई लगभग 22 फीट है।

इतिहासकारों के अनुसार इस दीवार के 40 किमी दायरे में 32 विशाल तथा 64 छोटे प्रवेश द्वार थे। इनके जरिए ही शहर में प्रवेश किया जा सकता था। दीवार के हर 50 मीटर पर एक विशेष सुरक्षा चौकी तथा हर पांच गज पर सशस्त्र सैनिक तैनात रहा करते थे।

यह दीवार भारी पत्थरों से सूखी चिनाई पर बनी हुई है। इसकी जमावट ऐसी है कि आज तक टस से मस नहीं हुई है। वर्तमान में यह दीवार भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के संरक्षण में है।

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