नालंदा दर्पण डेस्क। बिहार के सीएम नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा के गांवों में रोजगार सृजन करने वाली योजनाओं का बड़ा बुरा हाल है। यही कारण है कि गांवों से मजदूरों का तेजी से पलायन हो रहा है। जिन्हें रोजगार की जरुरत है, साधन सम्पन्न लोग उनकी हकमारी कर रहे हैं। मनरेगा से जुड़ी योजनाओं में एक लूट तंत्र विकसित हो चुका है, जो कागज पर रोजाना लाखों का बारा न्यारा कर रहे हैं।
नालंदा दर्पण की पड़ताल के दौरान नगरनौसा प्रखंड क्षेत्र के प्रायः सभी पंचायतों में कई सनसनीखेज तथ्य उभरकर सामने आए हैं। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि यहां मनरेगा के तहत सिर्फ फर्जी भुगतान हो रहा है।
यहां करीब 90 फीसदी जॉब कार्डधारी फर्जी हैं। वे किसी योजना में शारीरिक कार्य नहीं करते हैं और साधन सम्पन्न हैं। लेकिन मुखिया, रोजगार सेवक और बिचौलिया की सांठगाठ से उनके खाते में नियमित राशि का भुगतान हो आ रहा है।
इस भुगतान में फर्जी जॉब कार्डधारी का हिस्सा कुल भुगतान का 10 फीसदी बंधा हुआ है। शेष 90 फीसदी राशि का बंटबारा मुखिया, रोजगार सेवक और बिचौलिया आपस में कर रहे हैं। इसमें प्रखंड स्तर के विभागीय अधिकारियों-कर्मियों की भी मिलीभगत होती है और उन्हें भी सरकारी खजाना की लूट का बंधा-बंधाया एक हिस्सा मिल जाता है।
दूसरी तरफ जिन गरीब मजदूर को असल में रोजगार और जीवन यापन के लिए कमाई की जरुरत है, वैसे दबे-कुचले लोगों के पास जॉब कार्ड नहीं है। उनका जॉब कार्ड या तो डिलिट कर दिया गया है या फिर उन्हें काम ही नहीं दिया जाता है। मजबूरन वे गांव से या तो पलायन कर रहे हैं, या फिर महुआ-मीठ्ठा शराब चुलाई जैसे बुरे काम कर रहे हैं और पुलिस की गिरफ्त में आ रहे हैं।
नालंदा जिला का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि इन ज्वलंत गंभीर समस्या पर मुख्यालय बिहारशरीफ के वातानुकूलित कार्यालय आवास में बैठे आला अधिकारी कोई ध्यान नहीं देते। उप विकास आयुक्त ने कभी भी किसी एक गांव का दौरा कर स्थिति को समझने का प्रयास नहीं किया है। जिलाधिकारी भी पास पहुंचे तमाम शिकायतों को नीचे उसी तंत्र पर फेंक देते हैं, जो सरकारी योजनाओं की शत प्रतिशत लूट तंत्र में शामिल होते हैं। आगे जारी…..
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