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    Sunday, March 23, 2025
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      मघड़ा शीतलाष्टमी मेला शुरू, उमड़ा श्रद्धालुओं का जनसैलाब, यहां गिरा था माता सती का अंग

      बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। नालंदा जिले के प्रसिद्ध तीर्थस्थल मघड़ा में तीन दिवसीय शीतलाष्टमी मेला की शुरुआत हो चुकी है। पंचाने नदी के किनारे बसे इस पावन स्थल पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ रही है। विशेष रूप से शनिवार को यहां श्रद्धालुओं का जनसैलाब देखने को मिलेगा।

      धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां शीतला की उत्पत्ति इसी स्थान पर घड़े से हुई थी। जिसके कारण इस जगह का नाम मघड़ा पड़ा। यह स्थान सिद्धपीठ के रूप में प्रसिद्ध है और चेचक जैसी बीमारियों से मुक्ति के लिए श्रद्धालु यहां मां शीतला की पूजा-अर्चना करते हैं।

      शीतलाष्टमी पर्व के दौरान शनिवार को किसी घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता। शुक्रवार को ही सभी भक्त तरह-तरह के पकवान बनाकर रख लेंगे। जिन्हें शनिवार को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाएगा। इस दौरान लोग बासी भात, कढ़ी, पुआ, पुड़ी, फुलौड़ी, सब्जी सहित अन्य पारंपरिक व्यंजन खाते हैं।

      पौराणिक कथाओं के अनुसार, दक्ष प्रजापति द्वारा आयोजित महायज्ञ में भगवान शिव का अपमान किए जाने पर माता सती ने यज्ञ कुंड में आत्मदाह कर लिया। जब भगवान शिव सती के पार्थिव शरीर को लेकर तांडव करने लगे। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के अंगों को 51 भागों में विभाजित कर दिया। मान्यता है कि मघड़ा में भी माता सती का एक अंग गिरा। जिससे यह स्थान सिद्धपीठ के रूप में प्रतिष्ठित हुआ।

      मां शीतला आग और गर्म चीजों से दूर रहती हैं। इसलिए मंदिर में धूप, दीप और अग्नि से जुड़े किसी भी प्रकार के कर्मकांड वर्जित हैं। यहां केवल ठंडे जल और फूलों से मां का पूजन किया जाता है।

      शीतलाष्टमी मेले में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को देखते हुए प्रशासन द्वारा सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं। मजिस्ट्रेट, पुलिस पदाधिकारियों के साथ पर्याप्त संख्या में महिला एवं पुरुष जवानों की तैनाती की गई है। वहीं पंडा कमेटी ने भी स्वयंसेवकों की नियुक्ति की है, जो भक्तों को दर्शन कराने में सहायता करेंगे।

      तीन दिनों तक चलने वाले इस मेले में भक्तों की आस्था, परंपरा और श्रद्धा का अनूठा संगम देखने को मिलेगा। मां शीतला की कृपा प्राप्त करने के लिए देशभर से हजारों श्रद्धालु यहां पहुंच रहे हैं और उनकी भक्ति से यह स्थल एक बार फिर दिव्यता और पवित्रता से आलोकित हो उठा है।

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