नालंदा दर्पण डेस्क। समाज में एक ओर जहां विघटन और एकाकीपन के मामले अक्सर देखने और सुनने को मिल रहे हैं। ऐसे में समाज में अब भी कुछ अच्छे संवेदनशील लोग हैं, उनसे जुड़ी बातें खुद ही बयां करती हैं कि इंसानियत अब भी जिंदा है।
साथ ही समाज में अभी सबकुछ खराब नहीं हुआ है। लोग एक-दूसरे की मदद के लिए न सिर्फ आगे आ रहे हैं, बल्कि बिन मांगे तक मदद दे रहे हैं।कौन कहता है कि धरती पर भगवान नहीं हैं।
जब इंसानियत दुःख तकलीफ से गुजरती है,तब कोई समाजसेवी, कोई समूह, कोई उदारमना व्यक्ति मदद को भी आगे नहीं आते हैं। लेकिन समाज में आज भी कुछ ऐसे संवेदनशील लोग हैं जो इंसानियत को जिंदा रखे हुए हैं। ईश्वर के रूप में वे कहीं न कहीं आसपास होते हैं।
चंडी प्रखंड का एक गांव है। नाम है योगिया। कुछ लोग इसे जोगिया भी बोलते हैं। लिखते हैं। यह गांव अपने आप में एक नजीर है, जो लोगों को इंसानियत का पाठ पढ़ा रही है।
इस गांव के लोगों ने इसी साल एक घटना से प्रेरणा लेकर सोशल मीडिया पर ‘योगिया एसोसिएशन’ नाम का एक ग्रुप चलाते हैं। इस ग्रुप का उद्देश्य है गांव के लाचार, बेबस और अभावग्रस्त लोगों की मदद करना।
जो गांव से बाहर है, ऐसे लोग आर्थिक रूप से ग्रामीणों की मदद कर रहें हैं। कहते हैं जिसका कोई नहीं होता, उसका भगवान होता है।
चंडी क्षेत्र के योगिया ग्राम में विनय मोची हुआ करते थे। वे दोनों पैरो से अपंग थे और वे तीन पहिये साईकिल चलाकर रोज चंडी बस स्टैंड जाकर फुटपाथ पर लोगों के जूता, चप्पल की मरम्मत का काम करते थे।
उनकी पत्नी भी दिव्यांग थी। उनकी तीन बच्चियां थी। वक़्त की दोहरी मार ने उन बच्चियों से इनके पिता का साया छीन लिया और इनकी मां को भी उनके पति का साथ हमेशा के लिए छूट गया।
घटना दो वर्ष पुरानी है। अचानक से बीमार पड़ने के कारण विनय मोची का देहांत हो गया। पूरा योगिया ग्राम सन्नाटे मे समा गया। हर कोई बस उनके बच्चियों को देखकर और उनकी अर्धांगनी को देखर स्तब्ध था कि अब इनके आगे का सहारा कौन होगा।
बाप आखिर बाप होता है और पति आखिर उसकी पत्नी का सब कुछ। और अचानक से सब को छोड़ कर चला जाना वाकई मे सबको रुला देना वाला वो पल था। विनय मोची का पार्थिव शरीर उनके घर पर पड़ा था और उनके घर मे मातम पसरा हुआ था।
यह करीब शाम के 6-7 बजे की घटना रही होगी। नौबत तो यहाँ तक आन पड़ी थी कि विनय मोची के पार्थिव शरीर को अंतिम संस्कार के भी उनकी धर्मपत्नी के पास पैसे नहीं थे।
आखिर हो भी कैसे। उनके आगे पीछे कोई ऐसा ना था, जो काम आ सके। चार कंधों का जुटान भी मुश्किल था। विनय मोची की पत्नी लाचारगी को लेकर बेचारगी के भंवर में फंसा थी।
ऐसे में निराशा की लहरों में गोता खा रहे पत्नी के लिए दैव का हाथ और साथ हुए गांव के युवक। न कहने की जरूरत न ही आवश्यकता का मुंह जोहने की। उसके बाद पूरा योगिया ग्रामवासी ने एकजुटता दिखाई और सबने मिलकर यह फैसला किया की गांव के हर घर से चंदा इकट्ठा किया जाए।
गांव के लोगों ने भी भरपूर सहयोग दिया। उसके बाद विनय मोची का अंतिम संस्कार किया गया। सिर्फ इतना ही नहीं दो वर्ष बाद भी आज गांव के लोग विनय मोची की पत्नी और तीन बच्चियों को हरसंभव मदद पहुंच रहें हैं।
गांव के राकेश कुमार ने गांव के लाचार बेबस लोगों की मदद के लिए एक ग्रुप बनाया है जिसका नाम है “योगिया एसोसिएशन”। इसका उद्देश्य है अपने गांव के प्रति युवाओं में जागरूकता को बढ़ावा देना।
इस ग्रुप के प्रमुख राकेश कुमार ग्रुप में जुड़े लोगों से फंडिंग करवाकर विनय मोची के घर उनकी धर्मपत्नी को हर महीने “राशन” वितरण करके मदद का हर संभव प्रयास करते आ रहे हैँ और जरूरत पड़ने पर ‘योगिया एसोसिएशन’ के सदस्य मे से उनके यहाँ गैस सिलिंडर भी भरवा देते है।
हाल ही में दिवाली के शुभवसर पर उनके घर में राशन और मिठाई का वितरण किया। गया।
कहने को चंडी प्रखंड का योगिया गांव सिर्फ आदर्श गांव ही नहीं है, बल्कि यहां आदर्श लोग भी रहते हैं। जो सच में किसी ईश्वर से कम नहीं है। अगर हर गांव योगिया की तरह बन जाएं तो समाज से दुखों का अंत हो जाएं। योगिया गांव पूरे प्रखंड के लिए नजीर बना हुआ है।
‘यूं तो गांव के हर घर में रहते हैं अलग परिवार,पर फिर भी गांव खुद का एक सांझा परिवार होता है’। जिसे चरितार्थ कर रहा है योगिया।
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