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अब ASI के उत्खनन से खुलेगा राज़ः राजगीर रुक्मिणी स्थान या ज्ञाननाथ मंदिर

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Now the secret will be revealed by ASI's excavation Rajgir Rukmini Sthan or Gyannath Temple
Now the secret will be revealed by ASI's excavation Rajgir Rukmini Sthan or Gyannath Temple

यह स्थल न केवल प्राचीन भारत की स्थापत्य कला और धार्मिक परंपराओं का जीवंत प्रतीक है, बल्कि यह ऐतिहासिक शोध और सांस्कृतिक गौरव का केंद्र भी बन रहा है। खुदाई के माध्यम से यहां छिपे रहस्यों और अतीत की कहानियों को नई पहचान मिलेगी

राजगीर (नालंदा दर्पण)। नालंदा श्रीमहाविहार के गौरवशाली इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहे राजगीर रुक्मिणी स्थान अब अपने अतीत की कहानियों को उजागर करने के लिए तैयार है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने इस प्राचीन स्थल की खुदाई और संरक्षण कार्य की शुरुआत की है।

बता दें कि राजगीर से लगभग दो किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित रुक्मिणी स्थान के प्राचीन टीले का क्षेत्रफल लगभग 200×175 मीटर है। टीले के शीर्ष पर भूमिस्पर्श मुद्रा में बुद्ध की एक काली बेसाल्ट प्रतिमा स्थापित है। इसे ग्रामीण मां रुक्मिणी मानकर पूजा करते हैं। पाल काल की यह मूर्ति मूर्तिकला की उत्कृष्टता का अद्भुत उदाहरण है।

प्रतिमा के स्तंभों पर बुद्ध के जीवन की प्रमुख घटनाओं को उकेरा गया है, जिनमें उनके जन्म से लेकर महापरिनिर्वाण तक के दृश्य सम्मिलित हैं। यह स्थल पहली बार फ्रांसिसी अन्वेषक फ्रांसिस बुकानन द्वारा 1811-12 में दर्ज किया गया था। बाद में कनिंघम, ब्रॉडले और जेडी बेगलर जैसे पुरातत्वविदों ने भी यहां का दौरा किया और इस स्थल की ऐतिहासिक महत्ता को रेखांकित किया।

2014-16 के दौरान टीले की खुदाई में तीन-कोशिका वाला मठ, ईंटों की दीवारें और गलियारे, छह छल्लों वाला वलय-कुआं, टेराकोटा ड्रेन पाइप के अवशेष, 13 मन्नत स्तूपों की पंक्तियां शामिल हैं।

नए उत्खनन कार्य में इन संरचनाओं के और विस्तार से अध्ययन की उम्मीद है। इससे प्राचीन भारतीय स्थापत्य और धार्मिक परंपराओं के बारे में नई जानकारियां मिल सकती हैं।

तिब्बती भिक्षु धर्मस्वामिन के वृत्तांत के अनुसार यह स्थल ज्ञाननाथ मंदिर के नाम से भी प्रसिद्ध था। उन्होंने नालंदा के अंतिम मठाधीश राहुल श्रीभद्र के साथ ओदंतपुरी से भागकर यहां शरण ली थी। धर्मस्वामिन के विवरण ज्ञाननाथ मंदिर के अंतिम विनाश की कहानी को उजागर करते हैं।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को इस स्थल के उत्खनन से बहुमूल्य और दुर्लभ पुरावशेष मिलने की संभावना है। यह कार्य न केवल क्षेत्र की प्राचीन महत्ता को संरक्षित करेगा, बल्कि इतिहास के उन अध्यायों को भी उजागर करेगा जो अब तक अनकहे हैं।

बता दें कि 1923 में रुक्मिणी स्थान को केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय महत्त्व का संरक्षित पुरातात्विक स्थल घोषित किया गया था। आज यह स्थल न केवल भारत की समृद्ध विरासत का प्रतीक है, बल्कि इतिहास और संस्कृति के शोधकर्ताओं के लिए एक अनमोल धरोहर भी है।

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