नालंदा दर्पण डेस्क / मुकेश भारतीय। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सबसे रोमांचक और ऐतिहासिक लड़ाई राजगीर (अनुसूचित जाति) सीट पर देखने को मिल रही है। 1957 के पहले चुनाव के बाद से यानी 68 वर्षों में पहली बार, यहां का चुनावी मैदान पूरी तरह से सत्ता पक्ष, विपक्ष और एक नई तीसरी ताकत के बीच त्रिकोणीय मुकाबले में तब्दील हो गया है।
यहा चुनावी मैदान में कुल सात उम्मीदवार हैं, लेकिन असली संघर्ष तीन प्रमुख दावेदारों के बीच है। पहला जदयू के निवर्तमान विधायक कौशल किशोर, जो लगातार दूसरी जीत दर्ज करने को बेताब हैं। दूसरा महागठबंधन के तहत भाकपा (माले) लिबरेशन के विश्वनाथ चौधरी, जो इस सीट पर पार्टी का पहला विधायक दिलाने का सपना संजोए हैं। और तीसरा जन सुराज पार्टी (जेएसपी) के सत्येंद्र कुमार, जो पारंपरिक दलों के लिए एक नई और ताज़ा चुनौती बनकर उभरे हैं। अन्य उम्मीदवारों में मनो देवी (मूल निवासी समाज पार्टी), अंजलि रॉय (निर्दलीय), उग्रसेन पासवान (निर्दलीय) और विजय पासवान (निर्दलीय) शामिल हैं।
राजगीर सीट का इतिहास इस चुनाव को और भी दिलचस्प बना देता है। यह अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित सीट भाजपा गठबंधन का पारंपरिक गढ़ रही है, जहां से भाजपा ने अब तक 9 बार जीत हासिल की है। वहीं भाकपा (माले) को इस सीट पर कभी सफलता नहीं मिली।
कुल 2.98 लाख वोटरों की ताकत वाले इस क्षेत्र में 6 नवंबर को मतदान होगा, जहां युवा और महिला मतदाता (पुरुष: 1,57,194; महिला: 1,41,768) निर्णायक भूमिका निभाएंगे। जातिगत समीकरण में SC (25%, दुसाध, रविदास, पासी निर्णायक), OBC/EBC (40%+, यादव, कुर्मी प्रमुख) और सवर्ण (15-18%, राजपूत, भूमिहार, ब्राह्मण संकटमोचक) की गणित तीनों दलों के लिए चुनौतीपूर्ण है।
स्थानीय मुद्दे जैसे भ्रष्टाचार, अतिक्रमण, पुलिस लापरवाही, सरकारी जमीनों पर कब्जे, नल-जल योजना की खामियां, ग्रामीण पर्यटन, स्वास्थ्य, शिक्षा और सिंचाई परियोजनाओं का अभाव चर्चा का केंद्र बने हैं। इस बार का चुनाव परिणाम विकास और भविष्य की दिशा तय करेगा।
68 वर्षों का चुनावी इतिहास: BJP की बादशाही, लेकिन बदलते रंग
राजगीर विधानसभा का चुनावी सफर 1957 से शुरू होता है, जब यह सीट स्वतंत्र भारत के पहले विधानसभा चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) के कब्जे में आई। तब से अब तक 16 चुनाव हुए हैं (1957, 1962, 1967, 1969, 1972, 1977, 1980, 1985, 1990, 1995, 2000, 2005 फरवरी, 2005 अक्टूबर, 2010, 2015, 2020)।
इस दौरान भाजपा (और उसके पूर्ववर्ती जनता पार्टी) ने दबदबा बनाए रखा, लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI) और जनता दल (यूनाइटेड) जैसे दलों ने भी कुछ मौकों पर सेंध लगाई। कुल मिलाकर भाजपा को 9 जीतें मिलीं। CPI को 2, INC को 2, जबकि अन्य दलों को शेष। यहां वोट प्रतिशत और मार्जिन के आंकड़े बताते हैं कि यह सीट काफी दिलचस्प रही है। कभी मामूली अंतर से, कभी भारी बहुमत से।
| वर्ष | विजेता | पार्टी | वोट | उपविजेता | पार्टी | वोट | मार्जिन |
| 1957 | बलदेव प्रसाद | INC | (डेटा उपलब्ध नहीं) | श्याम सुंदर प्रसाद | जनता पार्टी | (डेटा उपलब्ध नहीं) | – |
| 1962 | बलदेव प्रसाद | INC | (डेटा उपलब्ध नहीं) | – | – | – | – |
| 1967 | जगदीश प्रसाद | BJS | (डेटा उपलब्ध नहीं) | – | – | – | – |
| 1969 | यादुनंदन प्रसाद | (अज्ञात) | (डेटा उपलब्ध नहीं) | – | – | – | – |
| 1972 | चंद्रदेव प्रसाद हिमांशु | CPI | 29,423 | यादुनंदन प्रसाद | NCO | 24,539 | 4,884 |
| 1977 | सत्यदेव नारायण आर्य | JNP | 48,254 | चंद्रदेव प्रसाद हिमांशु | CPI | 25,097 | 23,157 |
| 1980 | सत्यदेव नारायण आर्य | BJP | 36,142 | चंद्रदेव प्रसाद हिमांशु | CPI | 28,571 | 7,571 |
| 1985 | सत्यदेव नारायण आर्य | BJP | 38,568 | चंद्रदेव प्रसाद हिमांशु | CPI | 28,788 | 9,780 |
| 1990 | चंद्रदेव प्रसाद हिमांशु | CPI | 50,116 | सत्यदेव नारायण आर्य | BJP | 41,205 | 8,911 |
| 1995 | सत्यदेव नारायण आर्य | BJP | 45,548 | चंद्रदेव प्रसाद हिमांशु | CPI | 40,715 | 4,833 |
| 2000 | सत्यदेव नारायण आर्य | BJP | 60,068 | चंद्रदेव प्रसाद हिमांशु | RJD | 46,097 | 13,971 |
| 2005 (फ़ेब) | सत्यदेव नारायण आर्य | BJP | 29,324 | अनिल राय | LJP | 12,155 | 17,169 |
| 2005 (अक्टूबर) | सत्यदेव | BJP | 36,344 | परमेश्वर प्रसाद | CPM | 9,858 | 26,486 |
| 2010 | सत्यदेव नारायण आर्य | BJP | 50,648 | धनंजय कुमार | LJP | 23,697 | 26,951 |
| 2015 | रवि ज्योति कुमार | JD(U) | 62,009 | सत्यदेव नारायण आर्य | BJP | 56,619 | 5,390 |
| 2020 | कौशल किशोर | JD(U) | 67,191 | रवि ज्योति कुमार | INC | 51,143 | 16,048 |
ये आंकड़े दर्शाते हैं कि 1980 के दशक से भाजपा का दबदबा रहा, जहां सत्यदेव नारायण आर्य जैसे नेता छह बार (1977, 1980, 1985, 1995, 2000, 2010) विजयी रहे। 2015 में JD(U) ने पहली बार सेंध लगाई, जब रवि ज्योति कुमार ने मात्र 5,390 वोटों के मामूली अंतर से भाजपा को हराया। लेकिन 2020 में कौशल किशोर ने इसे मजबूत किया। कुल वोटिंग प्रतिशत में भी उतार-चढ़ाव देखा गया। 2010 में 44.47% से बढ़कर 2020 में 53.66% हो गया, जो मतदाता जागरूकता को इंगित करता है।
2025: तीसरी ताकत की एंट्री से बदल गया समीकरण
इस बार का चुनाव पारंपरिक NDA (JDU-BJP) बनाम महागठबंधन (RJD-Congress-MALE) की जंग से आगे निकल गया है। प्रशांत किशोर उर्फ PK की जनसुराज (JSP) की एंट्री ने इसे त्रिकोणीय बना दिया है।
एनडीए विकास और स्थिरता का दावा कर रहा है, विश्वशांति स्तूप, वेणुवन, घोड़ाकटोरा झील और सोन भंडार जैसे पर्यटन स्थलों का प्रचार कर रही है।
वहीं महागठबंधन SC समुदाय के प्रतिनिधित्व पर जोर देते हुए परिवर्तन और सम्मान का नारा दे रहा है। उधर शिक्षा रोजगार, उद्योग जैसे मांग उठाते हुए JSP युवाओं को ललकार रही है, ।
फिलहाल चुनावी सरगर्मी चरम पर है। शहर से गांव तक चौपालों, गलियों में चर्चाएं गूंज रही हैं। युवा रोजगार की कमी से नाराज, बुजुर्ग शांति और सौहार्द चाहते हैं। राजगीर महात्मा बुद्ध और तीर्थंकर महावीर की तपोभूमि अब सियासी ताप की चपेट में है। यहां की पहाड़ियां, गुफाएं अब विकास के वादों की गवाह बनेंगी।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं, यह जंग सिर्फ सीट की नहीं, बल्कि नालंदा जिले की राजनीति के आईने की है। क्या BJP का किला टूटेगा? या नई हवा चलेगी? यहां हर वोट किंगमेकर साबित होगा। मुकाबला काफी रोचक और त्रिकोणीय कांटे का दिख रहा है। वोटर 6 नवंबर को सभी प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला मत पेटियों में बंद करेंगे।
