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बेहाल राजगीर: सूखते गर्मजल कुंडों के साथ बुझ रही आस्था की लौ

राजगीर की गर्मजल परंपरा केवल धार्मिकता नहीं, बल्कि भारत की जीवंत सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है। यदि इसे नहीं बचाया गया तो यह केवल जलकुंडों का सूखना नहीं होगा। बल्कि आस्था, इतिहास और हमारी सांस्कृतिक चेतना का एक अहम अध्याय सदा के लिए खो जाएगा...

राजगीर (नालंदा दर्पण)। राजगीर वह पवित्र भूमि हैं, जहाँ कभी तपस्वियों की साधना गूंजती थी। जहाँ गर्मजल के झरने आस्था और आरोग्यता के प्रतीक थे, आज एक मौन त्रासदी का साक्षी बनता जा रहा है। यहां के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व से परिपूर्ण गर्मजल कुंड कभी तीर्थयात्रियों के श्रद्धा-स्थल और पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हुआ करते थे, आज सूखने के कगार पर हैं। यह केवल जल संकट नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक पतन की चेतावनी है।

राजगीर के प्रमुख कुंड जैसे गंगा-यमुना, अनन्त ऋषि कुण्ड, व्यास कुंड, मार्कण्डेय कुंड, राम-लक्ष्मण कुंड और अहिल्या कुंड अब केवल नाम मात्र बचे हैं। जलस्तर घटता गया और अब इनमें से कई पूरी तरह से सूख चुके हैं। करीब आधा दर्जन कुंड इतिहास के पन्नों में खो चुके हैं। कभी जिन झरनों की कलकल ध्वनि राजगीर की घाटियों में गूंजती थी, अब वहां सन्नाटा पसरा हुआ है।

बता दें कि राजगीर न केवल हिंदू धर्म, बल्कि बौद्ध, जैन और सिख समुदायों के लिए भी एक तीर्थस्थल रहा है। ब्रह्मकुंड और सप्तधारा जैसे कुंडों में स्नान करना पुण्य माना जाता रहा है। श्रद्धालु मानते हैं कि यहां का जल गंगाजल से भी अधिक शुद्ध और औषधीय गुणों से युक्त है। कैलाश पीठ के स्वामी विद्यानंद गिरी जी महाराज भी इन जल स्रोतों को प्राकृतिक आरोग्य का स्रोत मानते थे।

विशेषज्ञों के अनुसार इन गर्म जलकुंडों के सूखने के पीछे कई गंभीर कारण हैं। जैसे- अंधाधुंध बोरिंग, बढ़ता शहरीकरण, भेलवाडोभ जलाशय का सूखना और समग्र पर्यावरणीय असंतुलन। विडंबना यह है कि सरकार जहां एक ओर इन स्थलों के सौंदर्यीकरण और पर्यटन विकास की योजनाएं बना रही है, वहीं जल स्रोतों के मूल संकट को अनदेखा किया जा रहा है।

वार्ड पार्षद डॉ. अनिल कुमार, महेन्द्र यादव और पर्यावरणविद नवेन्दु झा जैसे स्थानीय प्रतिनिधि खुलकर कहते हैं कि अब तक न तो प्रशासन ने कोई ठोस कदम उठाया और न ही कोई सतत रणनीति अपनाई गई है। उनका कहना है कि यह क्षेत्र केवल पर्यटन केंद्र नहीं, बल्कि सांस्कृतिक विरासत है जिसे बचाना हम सभी की जिम्मेदारी है।

वहीं राजगीर-तपोवन तीर्थ रक्षार्थ पंडा कमेटी के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अवधेश उपाध्याय, डॉ. धीरेन्द्र उपाध्याय और प्रो. निर्मल द्विवेदी ने स्पष्ट कहा कि यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो राजगीर की यह अमूल्य प्राकृतिक और आध्यात्मिक संपदा सदा के लिए खो जाएगी। उन्होंने सरकार से वैज्ञानिक तरीकों से जल स्रोतों के पुनर्जीवन, अवैध बोरिंग पर रोक और सतत पर्यावरणीय प्रबंधन की दिशा में शीघ्र कार्रवाई की मांग की है।

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