SPO की तेजस्वी से गुहार: जान जोखिम में डालक की सेवा, अब भूखमरी की शिकार
नालंदा दर्पण संवाददाता। बिहार के नक्सल प्रभावित जिलों में वर्षों तक अपनी जान जोखिम में डालकर सेवा देने वाले विशेष पुलिस पदाधिकारी (SPO) आज बेरोजगारी और आर्थिक तंगी की मार झेल रहे हैं। वर्ष 2011, 2012 और 2013 में नियुक्त इन एसपीओ की सेवा 2018 में अचानक समाप्त कर दी गई, जिसके बाद से ये लोग और उनके परिवार भूखमरी के कगार पर पहुंच गए हैं।
अब इन पूर्व एसपीओ ने बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और राजद नेता तेजस्वी यादव से गुहार लगाई है कि पुरानी मार्गदर्शिका के तहत उनकी सेवा बहाल की जाए।
मुकेश पासवान नामक एक पूर्व एसपीओ ने तेजस्वी यादव को लिखे पत्र में अपनी व्यथा सुनाई है। जिसमें बताया है कि कैसे वे मात्र 3000 रुपये मासिक मानदेय पर नक्सलियों से लड़ते रहे, लेकिन नई नीति के नाम पर उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
दरअसल यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि हजारों एसपीओ का है, जो बिहार के नक्सल प्रभावित इलाकों जैसे औरंगाबाद, भोजपुर, कैमूर, रोहतास और गया जैसे जिलों में तैनात थे।
भारत सरकार की सिक्योरिटी रिलेटेड एक्सपेंडिचर (एसआरई) योजना के तहत इनकी नियुक्ति हुई थी, जिसका मकसद नक्सलवाद से प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा मजबूत करना था। वर्ष 2018 में बिहार पुलिस मुख्यालय के एक पत्र (ज्ञापन संख्या 942/अभियान दिनांक 18.05.2018) के आधार पर नई मार्गदर्शिका लागू की गई, जिसमें एसपीओ की नियुक्ति केवल पूर्व सैनिकों या पूर्व पुलिसकर्मियों से करने का प्रावधान था। नतीजतन पुरानी व्यवस्था के तहत चुने गए हजारों एसपीओ की सेवा समाप्त कर दी गई।
औरंगाबाद जिले के महमदपुर गांव के निवासी मुकेश पासवान ओंगारी थाना में तैनात थे। उन्होंने अपने पत्र में लिखा है कि वे गृह मंत्रालय भारत सरकार के एसआरई योजना से बिहार राज्य के नक्सल प्रभावित जिलों के थानों में मार्गदर्शिका, आरक्षण, रोस्टर से वर्ष 2011, 12, 13 से कार्यरत एसपीओ (विशेष पुलिस पदाधिकारी) को वर्ष 2018 में नवीन मार्गदर्शिका के आधार पर सेवा समाप्त किया गया।
उन्होंने आगे कहा कि वे अपनी बहुमूल्य उम्र विभाग में जान जोखिम में डालकर देते रहे और काफी आशान्वित थे कि भविष्य में सरकार द्वारा हमलोगों को भी मानदेय बढ़ाते हुए नियमित किया जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अन्य राज्यों में एसपीओ को मानदेय बढ़ाकर सेवा विस्तार दिया गया है और बिहार में भी अन्य विभागों के कर्मियों को ऐसा लाभ मिला है, लेकिन हमलोगों को नजरअंदाज कर दिया गया।
हालांकि यह मुद्दा नया नहीं है। वर्ष 2018 में भोजपुर जिले में ही 118 एसपीओ की सेवा समाप्त की गई थी, जो 2011 में 13 नक्सल प्रभावित थानों में नियुक्त हुए थे। इसी तरह कैमूर जिले में भी एसपीओ को पुनर्बहाल करने की बात उठी, लेकिन कई मामलों में यह सिर्फ कागजों तक सीमित रह गया।
हाल के वर्षों में जैसे 2024 में पूर्व एसपीओ पटना के गर्दनीबाग में धरना-प्रदर्शन कर चुके हैं, जहां हजारों एसपीओ ने अपनी मांगें रखीं। विशेष पुलिस पदाधिकारी यूनियन ऑफ बिहार के फेसबुक पेज पर भी इस मुद्दे पर लगातार चर्चा होती रही है, जहां एसपीओ परिवारों की आर्थिक दुर्दशा को उजागर किया गया।
एक वीडियो के जरिए पूर्व एसपीओ ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी गुहार लगाई थी, लेकिन अब तेजस्वी यादव की ओर रुख किया गया है, जो विपक्ष के नेता के रूप में बेरोजगारी और सरकारी नीतियों पर लगातार सवाल उठाते रहे हैं।
बता दें कि नक्सल अपराध प्रभावित क्षेत्रों में एसपीओ की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण रही है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वे स्थानीय स्तर पर खुफिया जानकारी जुटाने, गश्त करने और नक्सलियों के खिलाफ अभियानों में पुलिस का साथ देते थे। मात्र 3000 रुपये मासिक पर काम करना आसान नहीं था, लेकिन देश सेवा की भावना से वे डटे रहे। अब सेवा समाप्ति के बाद कई एसपीओ परिवार भुखमरी की स्थिति में हैं।
मुकेश पासवान ने पत्र में लिखा कि वे सपरिवार परिवार सहित भूखमरी के कगार पर है। सरकार से निवेदन है कि मार्गदर्शिका आरक्षण रोस्टर से वर्ष 2011, 12, 13 से कार्यरत एसपीओ पर नवीन मार्गदर्शिका का मापदंड को नहीं लागू करने का आदेश निर्गत कर हमलोग हजारो एसपीओ को बेरोजगार होने से बचाने की कृपा की जाए।
बहरहाल, तेजस्वी यादव बिहार में युवाओं और बेरोजगारों के मुद्दे पर हमेशा मुखर रहे हैं। अब इस पत्र पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं, यह देखना बाकी है। लेकिन यह मामला बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ ला सकता है, खासकर जब राज्य में नक्सलवाद अब भी एक चुनौती बना हुआ है।









