Home खोज-खबर मंगोलियाई और रूसी प्रवासी पक्षियों की चहचहाहट से महरुम हुआ गिद्धि पोखर

मंगोलियाई और रूसी प्रवासी पक्षियों की चहचहाहट से महरुम हुआ गिद्धि पोखर

“बिहार में 2022 से पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, बिहार सरकार पक्षी विशेषज्ञ और बड़े बाँचर की मदद से जलीय पक्षियों की गणना कार्य का संचालन किया जा रहा है…

नालंदा दर्पण डेस्क। पक्षी प्रकृति का हिस्सा हैं। पारिस्थितिकी तंत्र और पर्यावरण में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। ऐसे में पक्षियों के संरक्षण की आवश्यकता है। परंतु आज स्थित यह है कि इन बेजुबानों की आश्रयस्थली को ही मिटाया जा रहा है।

Vulture pond deprived of chirping of Mongolian and Russian migratory birds 2नालंदा स्थित गिद्धि पोखर न केवल बेजुबान पक्षियों का आश्रयस्थली रहा है बल्कि मंगोलिया व रूसी प्रवासी पक्षियों का क्रीड़ास्थली भी रहा है। लेकिन पक्षियों के इस बसेरे को उजाड़ दिया गया है। मछली पालन के लिए इस तालाब की बंदोबस्ती कर पक्षियों के घर को उजाड़ दिया गया है।

कभी यहां रूसी व मंगोलिया पक्षियों का जमावड़ा हुआ करता था है। लेकिन आज ये पक्षी कहीं नहीं दिखते। इन सभी प्रवासी पक्षियों ने गिद्ध पोखर की बजाय पाळपुरी व पंचाने नदी के जलाशय में डेरा जमा लिया है। इसका खुलासा बिहार पर्यावरण संरक्षण अभियान टीम ने किया है।

यह जलाशय लगभग सूख चुका है, जंगली घास से यह पूरी तरह भर चुका है। पानी भी करीब घुटने तक है। बताया गया कि यहां मछली पकड़ने के लिए स्थानीय लोग जलाशय को सूखा देते हैं, ताकि कीचड़ से मछली को पकड़ सके। नतीजतन प्रवासी पक्षियां इस जलाशय में आने से कतराने लगे हैं।

पानी को जलाशय से बाहर निकाल दिया जाता है और मछली पकड़ने के बाद वैसे ही छोड़ दिया जाता है। यह तक तब होता है जब तक कि इसका पट्टा सरकार फिर से जारी न करें। इन आर्द्रभूमियों में मछली का पट्टा आवास को नुकसान और पक्षियों का शिकार से ख़तरा है। जो इन्हें पक्षी विहीन बनाता जा रहा है। इन दोनों जलाशय का

स्थानीय लोग बताते हैं कि विश्व को कई सौ वर्षों तक ज्ञान का उजियारा फैलाने वाले इस नालंदा विश्वविद्यालय के निर्माण में मिट्टी के लिए खुदाई के कारण इसका निर्माण हुआ था। स्थानीय बुद्धिजीवी ने इनके शिकार पर अंकुश लगाने की मांग की है।

लोगों का कहना है कि सरकार मछली का पट्टा देना बंद करे तभी इन जलाशयों का भविष्य सुरक्षित हो सकता है। बिहार पर्यावरण संरक्षण अभियान की और से पक्षियों की स्थिति का जायजा ले रही टीम के अनुसार इन दिनों पावपुरी जल मंदिर के जलाशय और पंचाने नदी में प्रवासी गडबल (मैल), नॉर्दन शेवलर (साखर), कामन कूट (सरार), एक रेड क्रेस्टेड पोचार्ड (लालसर), कॉटन टील (गिरी), ग्रीनिश वार्बलर, टैगा फ्लाईकैंचर जैसे विदेशी पक्षी दिखने लगी है। इन पक्षियों का प्रवास मंगोलिया और रूस क्षेत्र से होता है।

नूरसराय प्रखंड के बेगमपुर में गिद्धि जलाशय जंगली घास और पौधों से ग्रसित हो जाने और जलस्तर की कमी के चलते स्थानीय पक्षी भी कम दिख रहे हैं। पुष्पकर्णी जलाशय में तीन सौ छोटा सिल्ही और कुछ खैरा बगुला और अंधा बगुले पक्षी देखने को मिल रहे हैं।

दोनों जलाशय में अभी तक प्रवासी पक्षियों का आगमन नही हुआ है, जबकि पावापुरी जल मंदिर और पंचाने नदी में प्रवासी पक्षी दिख रहे हैं। स्थानीय जलीय पक्षी में जामुनी जलमुर्गी, जल, पीपी, जलमौर, सामान्य जलमुर्गी, सफ़ेद धौं खंजन आदि शामिल हैं।

सर्वेक्षण के दौरान मिला सबसे अधिक संख्या में पक्षी छोटा सिल्ही जो कि एक स्थानीय बारहमासी छोटी बतख की प्रजाति है। यह पावापुरी में 400 और पुष्पकर्णी में 300 की संख्या में अभी मौजूद है।

Vulture pond deprived of chirping of Mongolian and Russian migratory birds 2मालूम हो टीम ने अपने जिले भर के जलाशय और नदी के परिभ्रमण के दौरान स्थानीय लोगों को जुटा कर आर्द्रभूमि और पक्षी के महत्व को बताया और पक्षियों के बारे में उनसे जानकारी ली। टीम के सदस्य अपने साध पोस्टर और पक्षी पर पुस्तक के माध्यम से जागरूकता फैलाने का कार्य कर रहे हैं।

एशियाई जलीय पक्षी गणना का समय आ रहा निकट जानकारी हो कि एशियाई जलीय पक्षी गणना भी आगामी महीने में होने वाले हैं। उम्मीद है कि यह गणना फरवरी के आसपास हो। इसका मुख्य उद्देश्य अधिकांश प्रजातियों की गैर-प्रजनन अवधि (जनवरी) के दौरान आर्द्रभूमि और नदी क्षेत्र में जलपक्षी आबादी की वार्षिक आधार पर साइटों के मूल्यांकन और पक्षियों की आबादी का अनुश्रवण करना है।

इस गणना में संपूर्ण पूर्वी एशियाई-आस्ट्रेलियाई फ्लाई-वे और मध्य एशियाई फ्लाईवे का एक बड़ा हिस्सा शामिल हैं। यह पक्षियों की गणना के साथ पर याबस की स्थिति की वार्षिक आधार पर निगरानी करने और नागरिकों के बीच जलपक्षियों और उनके आवास के प्रति रुचि को प्रोत्साहित करने में मदद करता है।

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