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अस्थावां विधानसभा में होगा बड़ा उलटफेर? समझें क्या कहते हैं अबतक के आकड़ें!

नालंदा दर्पण न्यूज डेस्क | मुकेश भारतीय | 1 नवंबर 2025 | नालंदा जिले के हृदय स्थल अस्थावां विधानसभा क्षेत्र में बिहार विधानसभा चुनाव-2025 का बिगुल बज चुका है। यह सीट न केवल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के राजनीतिक साम्राज्य का मजबूत स्तंभ रही है, बल्कि पिछले दो दशकों में जनता दल (यूनाइटेड) यानी JD(U) का अभेद्य किला साबित हुई है।

1951 से अब तक 18 चुनावों (उपचुनाव सहित) में यहां की राजनीति ने कांग्रेस के प्रारंभिक वर्चस्व से लेकर निर्दलीय उम्मीदवारों के अप्रत्याशित उभार तक कई मोड़ देखे हैं। लेकिन 2001 के बाद से यह क्षेत्र पूरी तरह नीतीश कुमार के प्रभाव में आ गया, जहां उनके विश्वसनीय सिपाही जितेंद्र कुमार ने लगातार चार बार (2005, 2010, 2015 और 2020) जीत दर्ज कर इतिहास रच दिया।

अभी हाल ही में 6 और 11 नवंबर को हुए दो चरणों के मतदान के बाद 14 नवंबर को घोषित होने वाले परिणामों से पहले हम अस्थावां के चुनावी इतिहास को खंगालते हैं। यहां के आंकड़े न केवल पार्टियों के उतार-चढ़ाव बयां करते हैं, बल्कि जातिगत समीकरण, विकास के मुद्दों और स्थानीय प्रभावशाली चेहरों की भूमिका को भी उजागर करते हैं।

कुल 2.91 लाख से अधिक मतदाताओं वाले इस सामान्य श्रेणी के क्षेत्र में अस्थावां, बिंद, सरमेरा प्रखंड और बरबीघा का कुछ हिस्सा शामिल है। आइए डेटा के आईने में देखें कि कैसे यह सीट बिहार की सियासत का आईना बनी हुई है।

प्रारंभिक दौर: कांग्रेस का जलवा और निर्दलीयों का दबदबा (1951-1995)

अस्थावां की चुनावी यात्रा की शुरुआत 1951 से हुई, जब यह नालंदा लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा बना। शुरुआती चुनावों में कांग्रेस का दबदबा रहा, लेकिन धीरे-धीरे निर्दलीय और क्षेत्रीय दल उभरे।

वर्षविजेतापार्टीवोटउपविजेतापार्टीवोटअंतर
1951ताजुद्दीनINC5,602हर सहाय मेहताIND4,2201,382
1957नंद किशोर प्रसाद सिंहCNPSPJP13,228कौशलेन्द्र प्रसाद नारायण सिंहPSP13,21018 (सबसे कम अंतर!)
1962कौशलेन्द्र प्रसाद नारायण सिंहPSP21,749श्याम नारायण सिंहINC18,3403,409
1967बी.पी. जावहरINC19,651एन.के.पी. सिंहIND10,4809,171
1969नंद किशोर प्रसाद सिंहJAP10,636भगवती देवीINC9,681955
1972अयोध्या प्रसादNCO18,285अंद किशोर प्रसाद सिंहHSD16,5901,695
1977इंद्रदेव चौधरीIND40,935रामा सिन्हाJNP26,37214,563
1980अयोध्या प्रसादINC(I)51,363अर्जुन प्रसाद सिंहCPI35,01016,353
1985रघुनाथ प्रसाद शर्माIND36,472अयोध्या प्रसादINC30,6875,785
1990रघुनाथ प्रसाद शर्माIND60,031विष्णु दास चौधरीJD22,58737,444 (सबसे बड़ा अंतर!)
1995सतीश कुमारIND35,161प्रमोद नारायण सिन्हाJD26,9678,194

इस दौर में अयोध्या प्रसाद (कांग्रेस) और रघुनाथ प्रसाद शर्मा (निर्दलीय) जैसे उम्मीदवार प्रभावशाली रहे। 1957 का चुनाव यादगार है, जहां मात्र 18 वोटों से जीत हुई। तब यह बिहार के इतिहास की सबसे कांटे की टक्कर थी। निर्दलीयों का दबदबा 1990 के दशक में चरम पर था, जब जातिगत समीकरणों ने पार्टियों को पीछे धकेल दिया।

उपचुनाव से नीतीश युग का आगमन (2000-2020): जितेंद्र कुमार का प्रभुत्व

2000 के दशक से सियासत का रंग बदल गया। 2001 के उपचुनाव में सतीश कुमार (समता पार्टी, JDU की पूर्ववर्ती) ने RJD के कुमार पुष्पांजय को 10,697 वोटों से हराया। इसके बाद नीतीश कुमार की लहर चली। जितेंद्र कुमार ने 2005 (फरवरी और अक्टूबर), 2010, 2015 और 2020 में लगातार जीत हासिल की, जो नालंदा में नीतीश के मजबूत आधार को दर्शाता है।

वर्षविजेतापार्टीवोटउपविजेतापार्टीवोटअंतर
2000रघुनाथ प्रसाद शर्माIND40,175सतीश कुमारNCP26,76113,414
2001 (उप)सतीश कुमारSAP58,999कुमार पुष्पांजयRJD48,30210,697
2005 (फेब)जितेंद्र कुमारJD(U)31,387डॉ. कुमार पुष्पांजयRJD28,1763,211
2005 (अक्ट)जितेंद्र कुमारJD(U)40,474डॉ. पुष्पांजयIND24,98815,486
2010जितेंद्र कुमारJD(U)54,176कपिलदेव प्रसाद सिंहLJP34,60619,570
2015जितेंद्र कुमारJD(U)58,908छोटे लाल यादवLJP48,46410,444
2020जितेंद्र कुमारJD(U)51,525अनिल कुमारRJD39,92511,600 (या कुछ स्रोतों में 1,512)*

2020 के अंतर पर स्रोतों में मामूली भिन्नता (1,512 या 11,600) है, लेकिन JDU की जीत पक्की। वोट शेयर: JDU 35.75%, RJD 27.7%, LJP (रामेश कुमार) तीसरे स्थान पर 15.16% के साथ।

जितेंद्र कुमार निस्संदेह सबसे प्रभावशाली चेहरा हैं – चार लगातार जीतों के साथ। वहीं, अनिल कुमार (RJD) और डॉ. पुष्पांजय (RJD/IND) जैसे उम्मीदवारों ने कड़ी चुनौती दी। LJP के छोटे लाल यादव और कपिलदेव प्रसाद सिंह भी यादगार रहे, जो यादव और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) वोटों पर केंद्रित थे।

2025 चुनाव: ताजा अपडेट और संभावित उलटफेर

2025 के चुनाव में अस्थावां फिर सुर्खियों में है। नामांकन के बाद प्रमुख उम्मीदवार हैं: जितेंद्र कुमार (JDU, NDA), रवि रंजन कुमार (RJD, महागठबंधन) और लता सिंह (जन सुराज पार्टी के प्रशांत किशोर की नई ताकत)। कुल वोटिंग प्रतिशत 2020 के 50.8% से ऊपर रहने की उम्मीद है, लेकिन मतदान के दौरान हुई मामूली हिंसा (जैसे जन सुराज समर्थक की हत्या का आरोप) ने ‘जंगलराज’ की बहस छेड़ दी है।

नीतीश कुमार का गढ़ होने से JDU को फायदा है, लेकिन RJD की युवा ब्रिगेड और जन सुराज की नई हवा बदलाव ला सकती है। जातिगत समीकरण (यादव, कुशवाहा, कोइरी) और मुद्दे जैसे रोजगार, बाढ़ राहत, शिक्षा-स्वास्थ्य पर नजरें टिकी हैं। यदि रवि रंजन या लता सिंह मजबूत प्रदर्शन करते हैं तो जितेंद्र की स्ट्रीक टूट सकती है।

अस्थावां सिर्फ आंकड़ों का खेल नहीं, बल्कि बिहार की सियासी धड़कन है। 14 नवंबर के परिणाम बताएंगे कि क्या नीतीश का किला अटल रहेगा या विपक्ष नया इतिहास लिखेगा। नालंदा दर्पण की टीम लगातार अपडेट लाती रहेगी। आपको क्या लगता है। कौन जीतेगा? कमेंट में जरुर बताएं!

(डेटा स्रोत: चुनाव आयोग, विकिपीडिया और विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स। सभी आंकड़े ऐतिहासिक हैं 2025 परिणाम लाइव अपडेट के अधीन।)

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