160 साल पहले बेले सराय था बिहारशरीफ एसडीओ कार्यालय भवन

नालंदा दर्पण डेस्क। बिहारशरीफ नालंदा जिले का एक ऐसा मुख्यालय शहर है, जो न केवल ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों का खजाना है, बल्कि प्रशासनिक गौरव का भी प्रतीक है। आज का आधुनिक बिहारशरीफ एसडीओ कार्यालय एक ऐसी कहानी बयाँ करता है, जो 160 साल पहले की है।
यह कहानी है वर्ष 1865 की, जब बिहारशरीफ को अनुमंडल का दर्जा मिला और इसके पहले अधिकारी के रूप में ए.एम. ब्राडले ने कार्यभार संभाला। उस समय के पटना के कमिश्नर स्टुअर्ट कॉल्विन बेले ने बिहार नगर में एक भव्य बेले सराय के उद्घाटन समारोह में अपनी पत्नी के साथ शिरकत की थी। उसी ऐतिहासिक भवन में आज हमारा एसडीओ कार्यालय संचालित हो रहा है।
आइए, इस रोचक सफर को विस्तार से जानें।
वर्ष 1865 में जब बिहारशरीफ को अनुमंडल का दर्जा दिया गया, तब यह क्षेत्र ब्रिटिश शासन के अधीन था। उस समय भारत में ब्रिटिश प्रशासन अपने पैर पसार रहा था और बिहारशरीफ जैसे क्षेत्रों को प्रशासनिक केंद्रों के रूप में विकसित किया जा रहा था।
ए.एम. ब्राडले इस अनुमंडल के पहले अधिकारी बने। जिन्होंने न केवल प्रशासनिक ढाँचे को मजबूत किया, बल्कि इस क्षेत्र की सामाजिक और आर्थिक प्रगति में भी योगदान दिया। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि उस समय के प्रशासनिक अधिकारी कैसे काम करते थे? उस दौर में संचार के साधन सीमित थे। फिर भी ब्राडले जैसे अधिकारियों ने स्थानीय लोगों के साथ मिलकर क्षेत्र के विकास की नींव रखी।
उस समय के पटना के कमिश्नर स्टुअर्ट कॉल्विन बेले ने बिहारशरीफ में एक शानदार सराय के निर्माण का आदेश दिया था, जिसे आज हम बेले सराय के नाम से जानते हैं। यह सराय केवल एक इमारत नहीं थी, बल्कि उस समय के ब्रिटिश वास्तुकला और प्रशासनिक वैभव का प्रतीक थी।
इसका उद्घाटन समारोह अपने आप में एक भव्य आयोजन था, जिसमें कमिश्नर बेले अपनी पत्नी के साथ शामिल हुए थे। यह कम आश्चर्यजनक नहीं है कि एक ऐसा भवन, जो उस समय यात्रियों और अधिकारियों के ठहरने के लिए बनाया गया था, आज भी प्रशासनिक कार्यों का केंद्र बना हुआ है।
आज जब हम बिहारशरीफ के एसडीओ कार्यालय को देखते हैं तो यह भवन हमें उस दौर की याद दिलाता है। इसकी दीवारें न केवल इतिहास की गवाह हैं, बल्कि उन अनगिनत कहानियों को भी समेटे हुए हैं, जो इस क्षेत्र के उत्थान और परिवर्तन से जुड़ी हैं। क्या आपने कभी इस भवन के भीतर कदम रखकर इसके ऐतिहासिक महत्व को महसूस करने की कोशिश की है?
आज बेले सराय का वह भवन, जो कभी ब्रिटिश अधिकारियों की शान था, बिहारशरीफ के प्रशासनिक केंद्र के रूप में कार्य कर रहा है। यहाँ बैठकर अनुमंडल अधिकारी क्षेत्र की समस्याओं का समाधान करते हैं, विकास योजनाओं को मूर्त रूप देते हैं और जनता की सेवा में तत्पर रहते हैं।
लेकिन क्या यह केवल एक प्रशासनिक भवन है, या इसमें कुछ और भी है? स्थानीय लोगों का मानना है कि यह भवन नालंदा की समृद्ध ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। यहाँ के बुजुर्ग अक्सर उस दौर की कहानियाँ सुनाते हैं, जब बेले सराय में ऊँटों और घोड़ों की आवाजाही हुआ करती थी और ब्रिटिश अधिकारी अपने कारिंदों के साथ यहाँ रणनीतियाँ बनाया करते थे।
वेशक बिहारशरीफ का यह ऐतिहासिक भवन हमें यह सिखाता है कि अतीत और वर्तमान का मेल कितना सुंदर हो सकता है। बेले सराय से एसडीओ कार्यालय तक का यह सफर न केवल प्रशासनिक विकास की कहानी है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कैसे एक छोटा सा शहर अपनी पहचान बनाए रखते हुए आधुनिकता की ओर बढ़ रहा है। इस धरोहर को संरक्षित रखते हुए इसके ऐतिहासिक महत्व को और अधिक लोगों तक पहुँचाया जा सकता है।
क्योंकि बिहारशरीफ का बेले सराय और आज का एसडीओ कार्यालय नालंदा के इतिहास का एक जीवंत दस्तावेज है। यह हमें उस समय की याद दिलाता है जब ब्रिटिश प्रशासन ने इस क्षेत्र को एक नई पहचान दी और साथ ही यह आज के आधुनिक भारत में अपनी प्रासंगिकता को बनाए रखे हुए है।









