नालंदा दर्पण डेस्क। बिहार शिक्षा विभाग के मुख्य अपर सचिव (ACS) डॉ. एस सिद्धार्थ ने राज्य के सरकारी स्कूलों में हेडमास्टर्स की भूमिका और उनकी शक्तियों को लेकर एक महत्वपूर्ण बयान दिया।
डॉ. सिद्धार्थ ने दो टूक शब्दों में कहा कि यदि किसी स्कूल में टीचर पढ़ाई नहीं कर रहे हैं या यदि हेडमास्टर द्वारा दिए गए टॉपिक्स पर शिक्षण कार्य नहीं हो रहा है तो हेडमास्टर को कार्रवाई की अनुशंसा करने का पूरा अधिकार है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि हेडमास्टर्स को इस मामले में किसी प्रकार की रुकावट या दबाव का सामना नहीं करना पड़ेगा, और उन्हें पूरी ताकत दी गई है।
टीचर और स्टूडेंट्स पर सरकारी नियमों का पालन जरूरीः डॉ. सिद्धार्थ ने आगे कहा कि अगर किसी टीचर या छात्र ने सरकारी नियमों का पालन नहीं किया तो हेडमास्टर उनकी शिकायत करें और इसके बाद विभाग त्वरित कार्रवाई करेगा।
उनका यह भी कहना था कि यदि स्कूलों में गुटबाजी के चलते हेडमास्टर्स अपनी शिकायतें सही तरीके से नहीं उठाते हैं तो भी विभाग इसको गंभीरता से लेता है और संबंधित मामले में जांच के लिए एक टीम भेजता है।
उन्होंने यह भी बताया कि हेडमास्टर्स की मुख्य जिम्मेदारी स्कूल की गतिविधियों को सुव्यवस्थित तरीके से चलाना और यह सुनिश्चित करना है कि पढ़ाई समय पर हो रही है और सरकार के आदेशों का पालन किया जा रहा है।
हालांकि डॉ. सिद्धार्थ ने यह भी माना कि अब तक किसी हेडमास्टर ने यह शिकायत नहीं की है कि उनके स्कूलों में टीचर्स पढ़ाई में लापरवाही बरत रहे हैं।
गुटबाजी से निपटने की चेतावनीः अपर मुख्य सचिव ने यह भी स्पष्ट किया कि कई बार शिकायतों में गुटबाजी की समस्या सामने आती है। जिसमें शिक्षकों के बीच विवाद या स्कूल के अंदर विभिन्न गुटों के बीच लड़ाई की खबरें आती हैं। लेकिन ऐसी शिकायतें शैक्षणिक सुधार से संबंधित नहीं होतीं।
उनका कहना है कि यदि ऐसे मामलों में भी गड़बड़ी पाई जाती है तो हेडमास्टर्स को कार्रवाई के लिए पूरी तरह सक्षम किया गया है।
कड़े कदमों से शैक्षणिक सुधार की दिशाः बिहार सरकार द्वारा यह कदम शिक्षा के क्षेत्र में सुधार लाने और स्कूलों में गुणवत्ता वाली शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है।
डॉ. सिद्धार्थ का यह बयान स्पष्ट करता है कि शिक्षा विभाग अब स्कूलों में किसी भी प्रकार की शिथिलता को बर्दाश्त नहीं करेगा और हेडमास्टर्स को न केवल निगरानी का अधिकार दिया गया है, बल्कि उन्हें अपनी शिकायतों को प्रभावी ढंग से उठाने की पूरी आज़ादी भी दी गई है।
शिक्षा विभाग के इस सख्त रवैये से यह उम्मीद जताई जा रही है कि बिहार में सरकारी स्कूलों की शैक्षणिक स्थिति में सुधार होगा और विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलेगी।
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