
राजगीर (नालंदा दर्पण)। नालंदा जिले की ऐतिहासिक नगरी राजगीर विधानसभा सीट एक बार फिर सुर्खियों में है। बिहार के सियासी मानचित्र पर यह सीट न केवल अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होने के कारण विशेष महत्व रखती है, बल्कि अपने धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक वैभव की वजह से भी पूरे प्रदेश में चर्चा का केंद्र बनी रहती है। इस बार मुकाबला और भी दिलचस्प होने जा रहा है, क्योंकि जदयू के कौशल किशोर अपनी जीत की हैट्रिक लगाने के लिए मैदान में हैं।
राजगीर विधानसभा सीट पर अब तक 16 बार चुनाव हो चुके हैं। इनमें से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 9 बार जीत दर्ज की है। जिसमें दो बार जनसंघ के नाम से जीत शामिल है। कांग्रेस, सीपीआई और जदयू को दो-दो बार सफलता मिली है, जबकि जनता पार्टी एक बार विजेता रही है।
2015 में जदयू के रवि ज्योति कुमार ने भाजपा को पराजित कर यह सीट जीती थी, लेकिन 2020 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने पर उन्हें हार का सामना करना पड़ा। अब 2025 के रण में जदयू ने कौशल किशोर पर भरोसा जताया है।
राजगीर में कुर्मी और यादव मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इनके साथ-साथ राजपूत, भूमिहार और मुस्लिम समुदायों की भी मजबूत भागीदारी है। यही वजह है कि हर दल अपने उम्मीदवार चयन से लेकर प्रचार रणनीति तक जातीय संतुलन को ध्यान में रखकर कदम उठाता है। इस बार भी चुनाव का गणित इसी सामाजिक ताने-बाने पर निर्भर करता दिख रहा है।
राजगीर का इतिहास करीब 4000 वर्ष पुराना माना जाता है। प्राचीन काल में इसे ‘राजगृह’ कहा जाता था। यह हर्यंक, प्रद्योत, बृहद्रथ और मगध जैसे महान राजवंशों की राजधानी रही। महाभारत में इसका उल्लेख जरासंध के साम्राज्य के रूप में मिलता है और आज भी ‘जरासंध अखाड़ा’ इसकी ऐतिहासिक स्मृति को जीवंत रखे हुए है।
राजगीर हिंदू, बौद्ध और जैन धर्मों का प्रमुख तीर्थस्थल है। यहां के ब्रह्मकुंड के सात गर्म जलस्रोत, विश्व शांति स्तूप, वेनुवन, गृद्धकूट पर्वत, सप्तपर्णी गुफा, सोन भंडार गुफाएं, पांडू पोखर, आकाशीय रज्जू मार्ग और जापानी मंदिर जैसे स्थल इसे धार्मिक और पर्यटन दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण बनाते हैं।
इस बार राजगीर विधानसभा सीट पर मुख्य रूप से तीन उम्मीदवारों के बीच मुकाबला तय माना जा रहा है। जिनमें जदयू के कौशल किशोर, महागठबंधन समर्थित भाकपा-माले के विश्वनाथ चौधरी और जन स्वराज पार्टी के सत्येंद्र कुमार माने जा रहे हैं।
हालांकि 2-3 अन्य प्रत्याशी भी उलट-फेर की भूमिका में दिख रहे हैं। क्योंकि यह मुकाबला न केवल जातीय समीकरणों पर निर्भर करेगा, बल्कि स्थानीय मुद्दे, विकास की रफ्तार और प्रशासनिक उपेक्षा जैसे विषय भी इसमें अहम भूमिका निभाएंगे।
राजगीर में लंबे समय से पर्यटन और आधारभूत ढांचे के विकास को लेकर आवाजें उठती रही हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि अगर राजगीर को उसके ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के अनुरूप विकसित किया जाए, तो यह बिहार का एक वैश्विक पर्यटन केंद्र बन सकता है। युवा मतदाता अब जातीय समीकरणों से इतर, रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर अपना निर्णय दे सकते हैं।
बहरहाल, राजगीर का यह चुनाव सिर्फ राजनीतिक दलों की शक्ति-परीक्षा नहीं, बल्कि संस्कृति, आस्था और सामाजिक चेतना के बीच संतुलन साधने की चुनौती भी है। अब देखना यह होगा कि क्या जदयू की हैट्रिक पूरी होती है या कोई नया समीकरण इस प्राचीन धरती की सियासी दिशा को नया मोड़ देता है।









