नालंदा दर्पण डेस्क। अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन नगर राजगीर (Rajgir Municipal Council) में जब सरकारी महकमा ही कानून की धज्जियां उड़ाने में मशगूल है तो आम जनता की बात क्या कहनी है। इस मामले में एक अंतर साफ दिखता है कि आम आदमी को ट्रैफिक कानून उल्लंघन मंहगा पड़ता है, वहीं सरकारी महकमा बेरोकटोक कानून का उल्लंघन करते रहता है। उसे देखने वाला कोई नहीं है।
राजगीर नगर परिषद में तरह तरह की करीब दो दर्जन वाहनें हैं। सभी गाड़ियां बिना रजिस्ट्रेशन व इंश्योरेंस के सड़कों पर लंबे अर्से से खर्राटे से दौड़ रही है। यह ट्रैफिक व परिवहन नियम का खुल्लम खुल्ला उल्लंघन है, लेकिन इस पर किसी का ध्यान नहीं है। अगर इन गाड़ियों से दुर्घटना हो जाती है। दुर्घटना के दौरान किसी की मौत हो जाती है, तो मरने वाले को इंश्योरेंस का एक भी पैसा नहीं मिलेगा।
इसके अलावा अगर इन वाहनों की चोरी आदि हो जाती है तो भी इंश्योरेंस के अभाव में कोई लाभ नहीं मिल पाएगा। वैसी परिस्थितियों में नगर परिषद के साथ पब्लिक फंड का भारी नुकसान होगा। कुल मिलाकर दोनों स्थितियों में नुकसान आम जनता का ही है। आम जनता के टैक्स के पैसे से सरकारी कार्यालयों में वाहन की खरीदारी तो होती है। लेकिन इसमें साफ-साफ लापरवाही देखने को मिल रही है।
एक तरफ तो सड़क पर आम आदमी का बिना नंबर लिखी गाड़ियां और बिना हेलमेट कहीं दिखती है, तो उसकी जांच पड़ताल में परिवहन विभाग और ट्रैफिक पुलिस और स्थानीय पुलिस काफी तत्परता दिखाती है। बिना नंबर की गाड़ियां और हेलमेट वाले वाहन मालिक से जुर्माना वसूल की जाती है। इसके कारण आम लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
वहीं दूसरी तरफ नगर परिषद द्वारा किए जा रहे परिवहन नियमों के उल्लंघन पर किसी का ध्यान नहीं है। सभी लोग अनजान बनकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं। कहा जाता है कि कानून की नजर में सभी समान हैं। लेकिन राजगीर में ऐसा नहीं देखा जाता है। खरीददारी की करीब पांच-सात साल के बाद भी वाहनों के रजिस्ट्रेशन और बीमा नहीं कराने पर नगर परिषद के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।
जानकार बताते हैं कि लम्बे अर्से बाद रजिस्ट्रेशन कराने पर नगर परिषद को जुर्माना भी भरना पड़ सकता है। यदि ऐसा होता है तो जनता की राशि का ही दुरुपयोग होगा।
वाहनों का नहीं कराया गया रजिस्ट्रेशनः राजगीर नगर परिषद द्वारा शहर की सफाई व्यवस्था एवं अन्य कार्यों के लिए करीब दो दर्जन वाहन करोड़ों की लागत से खरीदी गयी है। नगर परिषद की उन गाड़ियों का अबतक रजिस्ट्रेशन और बीमा नहीं कराया गया है। बिना रजिस्ट्रेशन और बीमा की ही गाड़ियां सड़कों पर पूरे दिन दौड़ती रहती है।
फर्राटा भर रहे वाहनों का बीमा तक नहीः परिवहन विभाग द्वारा इंश्योरेंस फेल होने पर आम पब्लिक पर कार्रवाई करते हुए उनसे फाइन वसूला जाता है। इस दौरान वाहन मालिक से तरह-तरह के सवाल पूछे जाते हैं। गाड़ी का इंश्योरेंस फेल है। गाड़ी में नम्बर नहीं है। आगे है तो पीछे क्यों नहीं है। इसके लिए जुर्माना भरना पड़ेगा। लेकिन जब सरकारी महकमा की बात आती है, तो वही जिम्मेदार प्रशासनिक पदाधिकारी नजरअंदाज करने में जरा भी संकोच नहीं करते हैं।
दुर्घटना होने पर कौन होगा जिम्मेदारः यक्ष प्रश्न है कि बिना रजिस्ट्रेशन और बीमा के शहर में दौड़ रही नगर परिषद के वाहनों से अगर किसी की दुर्घटना हो जाती है, तो उसका देनदार कौन होगा। दुर्घटना में मौत या घायल होने से थर्ड पार्टी क्लेम पीड़ित परिवार को मिल पायेगा। यदि कोई क्लेम नहीं मिलेगा तो इसका जिम्मेदार कौन होगा।
वहीं वाहन चलाने वाले चालक और वाहन पर भी कोई क्लेम लागू नहीं हो सकेगा। वहीं यही बात नगर पार्षद पर भी लागू होती है। अगर बगैर इंश्योरेंस के चलने वाले नगर परिषद के वाहनों से किसी की मौत या दुर्घटना होती है तो ऐसी स्थिति में अस्वाभाविक हादसे का जिम्मेदार कौन होगा।
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