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पिछले पांच सालों में लूटकांड का पर्याय बना रहा राजगीर नगर परिषद !

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नालंदा दर्पण डेस्क। राजगीर नगर परिषद बोर्ड का गठन वर्ष 2017 के 9 जून को हुआ था। बोर्ड के पूरे पांच साल बीत जाने पर जब पूरे कार्यकाल का मूल्यांकन किया जाय तो पता चलता है कि पूरे पांच साल के काले कारनामों से लगातार बदनामी का दंश ही इस नगर परिषद कार्यालय को देखना पड़ा है।

Rajgir Municipal Council remained synonymous with loot in the last five years 1जून 2017 के बोर्ड गठन के साथ ही नगर परिषद के बोर्ड बैठक में अलोकतांत्रिक फैसला लेते हुए महत्त्वपूर्ण संचिका को  नगर परिषद उपाध्यक्ष के पास पहले भेजने का प्रस्ताव पारित किया गया।

जाहिर है कि ऐसा करके अध्यक्ष को पूरे पांच साल के लिए रिमोट से कंट्रोल करने का प्रयास किया गया। बोर्ड की अध्यक्ष बनी उर्मिला चौधरी को लॉकडाउन की अवधि में ही पद से हटा दिया गया, जिसपर अध्यक्ष ने विभागों में शिकायत दर्ज कराई की उन पर अवैध निकासी का दबाव बनाया जा रहा था।

इन पांच सालों के कार्यकाल में सबसे बड़ा लूटकांड का आरोप मलमास मेला 2018 के आयोजन पर लगा, जिसमे टेंट पंडाल के नाम पर कुल 3,23,341,96 (तीन करोड़ तेईस लाख चौंतीस हजार एक सौ छियानवे) लाख रुपए की निकासी की गई, जबकि बाढ़ डेकोरेटर नाम की यही कंपनी वर्ष 2015 में लगभग पचास साठ लाख में ही टेंट पंडाल का पूरा काम किया था।ऐसे में मेला के नाम पर अवैध निकासी ने नगर परिषद के काले कारनामों पर जनता की नजरो में मुहर लगा दी।

खरीददारी के मामले में तो नगर परिषद की सशक्त कमिटी ने जमकर खरीदारी की।लगभग छः करोड़ से अधिक के वाहन, जेटिंग मशीन, सुपर शकर मशीन, लोडर,हैंड कार्ट, ट्रैक्टर, ट्राई साइकिल आदि की खरीददारी बाजार मूल्य से अधिक कीमत पर खरीदे गए।

पांच सालों के कार्यकाल में नगर परिषद ने कई लोगो को जलापूर्ति योजना में बिना कार्य किए वेतन भी देकर काफी लोकप्रियता हासिल की है। सूत्रों के अनुसार जनप्रतिनिधियों के खासम खास समर्थको को ही इसका लाभ मिलता है।

राजगीर सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट में अयोग्य लोगो को बहाली से यह प्लांट अब गंदगी बदबू देने लगा है। जनप्रतिनिधि और नगर परिषद में कार्यरत कर्मियों के द्वारा अपने परिवार की बहाली कर सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट को बर्बाद होने के लिए छोड़ दिया गया है। अतिक्रमण के नाम पर गरीबों को हमेशा उजाड़ने वाली नगर परिषद बड़े बड़े अतिक्रमण को संरक्षण भी देने का कार्य की है।

यही नहीं भले ही लॉक डाउन में किसी की होल्डिंग टैक्स माफ नही हुई हो, लेकिन नगर परिषद अपने खास लोगो के एक साल का वाहन पार्किंग जरूर माफ कर देती हैं।ऐसा पहली बार हुआ है कि नगर परिषद द्वारा जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र बनाने पर होल्डिंग टैक्स की वसूली करती है।

इन पांच सालों के कार्यकाल ने नगर परिषद क्षेत्र में निर्माण कार्य में भी अभी तक का सबसे खराब कार्य देखा है। शहर में नाली,सड़क आदि की योजना बंदरबाट की भेंट चढ़ कर बर्बाद दिखती नजर आती है। शहर के संवेदकों पर कमीशन लेने का दबाव ही शहर की योजनाओं को बर्बाद कर डाला है।

इन सबके बीच नगर परिषद की लापरवाह व्यवस्था से नागरिक सुविधाएं शून्य के बराबर हैं।जल संकट से जूझ रहे राजगीर के लोग त्राहिमाम कर रहे लेकिन नगर परिषद का भ्रष्ट सिस्टम कान में रुई डालकर सोया हुआ है।

जल जीवन हरियाली के नाम पर मृत कुंए को डेटिंग पेंटिंग कर पैसे की निकासी हुई लेकिन वैतरणी नदी की सुध लेने को कोई तैयार नहीं हुआ। वोट बैंक की राजनीति के तहत लेदुआ पुल के पास तो नदी में ही मकान और नदी में ही रास्ता बनवा दिया गया, जिससे भविष्य में वैतरणी नदी की जलधारा अनेकों स्थान पर पहुंचने से वंचित रहेगी। पंडितपुर तालाब और लेनीन नगर तालाब का जिर्णोदार कराने में भी नगर परिषद लापरवाह साबित हुई।

पांच साल के कार्यकाल ने ऐसे अनेकानेक कुकृत्यो की वजह से ही नगर परिषद काफी बदनाम हो गई है। बिना कार्य किए राशि की निकासी, अवैध निकासी, टेंडर घोटाला, विभागीय कार्य में अनियमित्तता आदि ने नगर परिषद को लूटकांड का पर्याय बना दिया है।

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