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सूर्यपीठ बड़गांवः जहां राजा शाम्ब ने अपने पिता भगवान श्रीकृष्ण के श्राप से पाई थी मुक्ति

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Suryapeeth Badgaon Where King Shamb got freedom from the curse of his father Lord Krishna
Suryapeeth Badgaon Where King Shamb got freedom from the curse of his father Lord Krishna

राजगीर (नालंदा दर्पण)। नालंदा जिले का सूर्यपीठ बड़गांव भारत में सूर्योपासना का एक प्रमुख और पौराणिक केंद्र रहा है। यह स्थान देश के 12 प्रमुख सूर्य पीठों में से एक माना जाता है। यहां छठ पर्व के दौरान प्रकृति और संस्कृति का अनोखा संगम देखने को मिलता है। बड़गांव का यह सूर्य मंदिर सूर्योपासना की प्राचीन परंपराओं और मान्यताओं से जुड़ा हुआ है। इसकी जड़ें प्रागैतिहासिक काल तक जाती हैं।

राजा शाम्ब से जुड़ी मान्यताः बड़गांव में सूर्योपासना कब शुरू हुई। इसका कोई ठोस प्रमाण तो नहीं है। लेकिन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार श्रीकृष्ण के पुत्र राजा शाम्ब ने इस स्थान पर सूर्योपासना का प्रारंभ किया था।

पुराणों में उल्लेख मिलता है कि राजा शाम्ब को भगवान श्रीकृष्ण के शाप के कारण कुष्ठ रोग हो गया था। इस व्याधि से मुक्ति पाने के लिए उन्हें शाकद्वीपीय ब्राह्मणों द्वारा सूर्योपासना का सुझाव दिया गया था।

जनश्रुतियों के अनुसार राजा शाम्ब ने 49 दिनों तक यहां सूर्य की आराधना और अर्घदान किया। जिसके बाद उन्हें कुष्ठ रोग से मुक्ति मिली। माना जाता है कि इसी स्थान पर उन्होंने सूर्य तालाब के समीप एक भव्य सूर्य मंदिर का निर्माण कराया था। इस पौराणिक कथा के आधार पर बड़गांव को सूर्योपासना के महत्वपूर्ण स्थलों में से एक माना जाता है।

भगवान श्रीकृष्ण की उपासनाः बड़गांव का यह सूर्यपीठ केवल राजा शाम्ब से ही नहीं, बल्कि स्वयं भगवान श्रीकृष्ण से भी जुड़ा हुआ है। महाभारत के अनुसार जब श्रीकृष्ण अपने भाई भीम के साथ मगध सम्राट जरासंध से युद्ध के लिए राजगीर आए थे। तब उन्होंने भी बड़गांव पहुंच कर भगवान सूर्य की पूजा की थी। यह घटना सूर्य पुराण में भी उल्लिखित है।

1934 का भूकंप और मंदिर का पुनर्निर्माणः 1934 के विनाशकारी भूकंप ने इस ऐतिहासिक सूर्य मंदिर को ध्वस्त कर दिया था, लेकिन मंदिर की प्राचीन मूर्तियों को स्थानीय गांववासियों द्वारा संरक्षित किया गया। बाद में नालंदा के फतेहपुर निवासी पटना हाईकोर्ट के बैरिस्टर नवल प्रसाद सिन्हा ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया, जो आज भी सूर्योपासना का प्रमुख केंद्र बना हुआ है।

कुष्ठ रोग और सूर्योपासना का संबंधः आज भी यहां लाखों श्रद्धालु विशेषकर कुष्ठ रोग से पीड़ित लोग कार्तिक और चैत्र महीनों में छठ पूजा के दौरान बड़गांव आते हैं। मान्यता है कि सूर्य तालाब में स्नान करने और सूर्य उपासना करने से व्याधियों से मुक्ति मिलती है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यही कारण है कि देश के कोने-कोने से श्रद्धालु इस पवित्र स्थल पर अपनी आस्था व्यक्त करने पहुंचते हैं।

प्रकृति और संस्कृति का अद्भुत संगमः बड़गांव का सूर्यपीठ छठ पर्व के समय विशेष रूप से जीवंत हो उठता है। जब भक्तगण तालाब में स्नान कर सूर्य को अर्घ्य देते हैं। यहां की अनूठी परंपराएं, धार्मिक कथाएं और प्राचीन संस्कृति इसे न केवल नालंदा, बल्कि पूरे देश के सूर्योपासना स्थलों में एक विशिष्ट स्थान प्रदान करती हैं।

आज भी बड़गांव में छठ पर्व का आयोजन एक ऐसा अवसर होता है, जहां धार्मिक आस्था और प्राकृतिक सौंदर्य का अद्वितीय संगम देखने को मिलता है और यह स्थल आज भी लाखों श्रद्धालुओं के लिए सूर्योपासना का प्रधान केंद्र बना हुआ है।

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