Home नालंदा मध्यान्ह भोजन का चावल बेचकर शराब पी रहे थे शिक्षक और प्रधानाध्यापक

मध्यान्ह भोजन का चावल बेचकर शराब पी रहे थे शिक्षक और प्रधानाध्यापक

Teachers and headmaster were drinking alcohol after selling rice meant for mid-day meal
Teachers and headmaster were drinking alcohol after selling rice meant for mid-day meal

बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। नालंदा जिला मुख्यालय बिहारशरीफ प्रखंड अंतर्गत गुलनी माध्यमिक विद्यालय से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां प्रधानाध्यापक और शिक्षक पर बच्चों के मध्यान्ह भोजन का चावल बेचकर शराब पीने का आरोप लगा है। इस गंभीर घटना ने शिक्षा व्यवस्था की अनदेखी और भ्रष्टाचार की पोल खोल कर रख दी है।

ग्रामीणों के अनुसार विद्यालय के प्रधानाध्यापक और शिक्षक नियमित रूप से शराब के नशे में धुत होकर स्कूल आते थे। बीते दिनों ग्रामीणों ने अचानक स्कूल का निरीक्षण किया और पाया कि बच्चों को दिए जाने वाले मध्यान्ह भोजन के लिए सड़े-गले चावल का इस्तेमाल किया जा रहा था। जबकि ताजे और अच्छे चावल को एक कमरे में छिपाकर रखा गया था। उसे प्रधानाध्यापक और शिक्षक बाजार में बेचने की योजना बना रहे थे।

हालांकि, प्रधानाध्यापक और शिक्षक के शराब के नशे में धुत होकर विद्यालय आने का मामला जैसे ही उजागर हुआ, ग्रामीणों ने इसकी सूचना शिक्षा विभाग को दी। शिक्षा विभाग ने त्वरित कार्रवाई करते हुए प्रधानाध्यापक और शिक्षक को निलंबित कर दिया। लेकिन, यह घटना शिक्षा विभाग की निगरानी प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करती है।

ग्रामीणों ने इस घटना पर गहरा रोष व्यक्त किया है और शिक्षा विभाग से सख्त कदम उठाने की मांग की है। ग्रामीणों का कहना है कि स्कूल में बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा था। मध्यान्ह भोजन योजना का मुख्य उद्देश्य गरीब बच्चों को पौष्टिक आहार देना है। जबकि गुलनी माध्यमिक विद्यालय की घटना ने योजना के दुरुपयोग को उजागर कर दिया है। इसके साथ ही उन्होंने पूर्व अपर मुख्य सचिव केके पाठक का जिक्र किया। जिनके कार्यकाल में शिक्षकों पर कड़ी निगरानी और अनुशासन का माहौल था।

ग्रामीणों के अनुसार पाठक के समय में इस तरह की अनियमितताओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाती थी। लेकिन वर्तमान में शिक्षा विभाग की निष्क्रियता के कारण ऐसे मामलों में वृद्धि हो रही है। यह घटना शिक्षा विभाग की निगरानी प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करती है।

बहरहाल, इस घटना ने नालंदा जिले की शिक्षा व्यवस्था की गिरती साख को उजागर किया है। शिक्षक और प्रधानाध्यापक जैसे जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों का इस तरह से बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करना न केवल एक अपराध है, बल्कि यह समाज और शिक्षा व्यवस्था के लिए एक गंभीर खतरा भी है।

इस पूरे प्रकरण से यह स्पष्ट हो गया है कि शिक्षा विभाग में निगरानी का कोई पुख्ता तंत्र नहीं है। अगर ग्रामीण इस मामले को उजागर नहीं करते तो शायद यह भ्रष्टाचार और भी लंबे समय तक चलता रहता। मध्यान्ह भोजन योजना की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि स्थानीय प्रशासन और शिक्षा विभाग इस पर कड़ी निगरानी बनाए रखें और ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कड़े कदम उठाएं।

यह घटना शिक्षा विभाग और स्थानीय प्रशासन के लिए एक चेतावनी है। न केवल दोषी शिक्षकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए, बल्कि इस तरह की अनियमितताओं को रोकने के लिए एक मजबूत निगरानी प्रणाली की भी आवश्यकता है। साथ ही ग्रामीणों और अभिभावकों को भी जागरूक किया जाना चाहिए। ताकि वे बच्चों की शिक्षा और भोजन से जुड़े मुद्दों पर ध्यान दें और इस तरह की किसी भी गड़बड़ी की सूचना समय पर दें।

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