राजगीर (नालंदा दर्पण)। कभी अपनी दुर्लभ औषधीय वनस्पतियों के खजाने के लिए विश्व प्रसिद्ध रहे राजगीर के जंगल आज संकट में हैं। यहां के प्राचीन और समृद्ध जंगलों पर अवैध कटाई का साया मंडरा रहा हैं। वहीं प्रशासन की उदासीनता इस समस्या को और गंभीर बना रही हैं। वन विभाग के तमाम दावों के बावजूद इन जंगलों में बिना रोक-टोक के पेड़ों को काटा जा रहा हैं।
हर दिन की कहानी: स्थानीय ग्रामीणों में से कई महिलाएं और पुरुष हर रोज इन जंगलों से लकड़ियां काट रहे हैं। कटाई से प्राप्त लकड़ियों का उपयोग पिकनिक स्पॉट्स पर खाना पकाने में किया जा रहा हैं। विशेषकर सूर्य कुंड के पास के इलाकों में।
इसके अलावा इन लकड़ियों की आपूर्ति राजगीर शहर और आस-पास के क्षेत्रों में भी की जा रही हैं। यह जंगलों के संरक्षण के सभी दावों पर सवाल खड़ा करता हैं।
विफलता का नमूना: वर्ष 2008 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निर्देश पर एक महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत हेलीकॉप्टर से बीज छिड़काव किया गया था। आलावे शीशम, सागवान, पीपल, बरगद, अर्जुन, वकैन, अमलतास जैसे कई पेड़ लगाए गए थे।
इस योजना का उद्देश्य जंगलों का पुनरोद्धार था। लेकिन मौजूदा हालात इस प्रयास की असफलता को दर्शा रहे हैं। क्योंकि अवैध कटाई और वनस्पतियों के बचे रह पाना असंभव होता जा रहा हैं।
दुर्लभ औषधीय संपदा: राजगीर के जंगल जड़ी-बूटियों का एक अनमोल भंडार हैं। यहां जंगली प्याज, सतमूली और हरमदा जैसी दुर्लभ औषधीय वनस्पतियां पाई जाती हैं। जिनका पौराणिक ग्रंथों में भी उल्लेख मिलता हैं। इन वनस्पतियों के गुण कई रोगों के इलाज में सहायक हैं और इनका वैज्ञानिक महत्व भी हैं।
जमीनी हकीकत: वन विभाग का दावा हैं कि अवैध कटाई पर पूरी तरह से रोक लगाई गई हैं। लेकिन वास्तविकता में स्थिति अलग ही हैं। कई रिपोर्टों के अनुसार कटाई की गतिविधियां दिन-प्रतिदिन बढ़ रही हैं।
यदि समय रहते इस पर अंकुश नहीं लगाया गया तो आने वाले समय में इन दुर्लभ वनस्पतियों और जड़ी-बूटियों का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता हैं। इसके साथ ही क्षेत्र की पारिस्थितिकी को भी अपूरणीय क्षति हो सकती हैं।
बहरहाल राजगीर के जंगलों का यह संकट राज्य सरकार और वन विभाग के लिए चेतावनी हैं कि यदि इन जंगलों को संरक्षित करने की दिशा में प्रभावी कदम नहीं उठाए गए तो यह ऐतिहासिक धरोहर और प्राकृतिक संपदा हमेशा के लिए समाप्त हो सकती हैं।
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