बिहारशरीफ मॉडल अस्पताल का आलम, बिना इलाज के 11 बच्चों को किया रेफर

बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। स्वास्थ्य विभाग मरीजों की सुविधा और बेहतर इलाज के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रहा है, लेकिन बिहारशरीफ मॉडल अस्पताल में कुछ चिकित्सकों की लापरवाही रुकने का नाम नहीं ले रही। ताजा मामला है कि बेन प्रखंड के नोहसा गांव के 11 बच्चों की तबीयत जंगली फल खाने से बिगड़ गई। इन बच्चों को इलाज के लिए मॉडल अस्पताल लाया गया, लेकिन वहां से बिना समुचित इलाज के ही उन्हें विम्स (वर्धमान इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज) रेफर कर दिया गया। इस घटना ने अस्पताल के सिस्टम और कुछ चिकित्सकों की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
दरअसल नोहसा गांव में जंगली फल खाने से 11 बच्चों की तबीयत बिगड़ने पर उन्हें तुरंत मॉडल अस्पताल लाया गया। इनमें से सात बच्चों को शिशु गहन चिकित्सा इकाई (एसएनसीयू) में भर्ती किया गया। जबकि चार बच्चे, जिनकी उम्र 12 साल से अधिक थी, इमरजेंसी वार्ड में भर्ती हुए।
आरोप है कि शिशु चिकित्सा इकाई में तैनात चिकित्सक ने बिना मरीजों की नब्ज जांचे या उचित इलाज किए उन्हें विम्स रेफर कर दिया। इतना ही नहीं इमरजेंसी वार्ड में भर्ती चार बच्चों ने कथित तौर पर डॉक्टर पर दबाव बनाकर खुद को रेफर करवाया।
यह मामला इसलिए भी गंभीर है, क्योंकि प्रारंभिक जांच में बच्चों की स्थिति फूड प्वाइजनिंग की थी, जो सामान्यतः मॉडल अस्पताल में ही इलाज योग्य है। फिर भी इन बच्चों को बिना किसी प्राथमिक उपचार के रेफर करना स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के बीच चर्चा का विषय बन गया है।
इस पूरे मामले में सबसे ज्यादा सवाल सदर अस्पताल में तैनात डॉ. अंजय की कार्यशैली और उनकी नियुक्ति को लेकर उठ रहे हैं। जानकारी के अनुसार डॉ. अंजय पर पहले भी गंभीर आरोप लग चुके हैं। पूर्व में एक बच्चे को एसएनसीयू से अपने निजी क्लिनिक ले जाने का मामला सामने आया था, जहां बच्चे की मृत्यु हो गई थी। इस घटना के बाद डॉ. अंजय को निलंबित किया गया था।
आश्चर्य की बात है कि निलंबन रद्द होने के बाद उनकी नियुक्ति फिर से उसी सदर अस्पताल में कर दी गई, जहां उन्होंने पहले गलती की थी।
स्वास्थ्य विभाग के जानकारों का कहना है कि सामान्यतः निलंबन रद्द होने पर किसी चिकित्सक को दूसरे जिले या अस्पताल में तैनात होनी थी। ऐसी स्थिति में डॉ. अंजय की पुराने अस्पताल में नियुक्ति हैरान करने वाली है।
इस संबंध में सिविल सर्जन (सीएस) डॉ. जितेन्द्र कुमार सिंह ने बताया कि घटना की रात डॉ. अंजय की ड्यूटी एसएनसीयू में थी, लेकिन वह ड्यूटी पर मौजूद नहीं थे। उन्होंने अपनी जिम्मेदारी एक डीएनबी छात्र को सौंप दी थी और खुद वहां से चले गए। फूड प्वाइजनिंग का मामला सामने आने पर डीएनबी छात्र ने डॉ. अंजय को सूचित किया, जिनके निर्देश पर बच्चों को बिना इलाज के विम्स रेफर कर दिया गया। इस मामले में डॉ. अंजय से स्पष्टीकरण मांगा गया है।
वहीं विम्स के चिकित्सकों ने बताया कि यह फूड प्वाइजनिंग का सामान्य मामला था। इसका इलाज बिहारशरीफ मॉडल अस्पताल में आसानी से हो सकता था। छोटी-मोटी बीमारियों के लिए मरीजों को विम्स रेफर करने की प्रवृत्ति पर विम्स के चिकित्सकों ने भी चिंता जताई है।
बहरहाल, सदर अस्पताल की इस लापरवाही ने स्वास्थ्य विभाग के सिस्टम पर कई सवाल खड़े किए हैं। मॉडल अस्पताल में पर्याप्त सुविधाएं होने के बावजूद सामान्य मामलों को रेफर करना और चिकित्सकों की अनुपस्थिति न केवल मरीजों की जान जोखिम में डाल रही है, बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठा रही है।









