Home धरोहर गौरव का प्रतीक हैं महाभारत कालीन महान योद्धा मगध सम्राट जरासंध

गौरव का प्रतीक हैं महाभारत कालीन महान योद्धा मगध सम्राट जरासंध

The great warrior of Mahabharata era, Magadh emperor Jarasandh is a symbol of pride
The great warrior of Mahabharata era, Magadh emperor Jarasandh is a symbol of pride

राजगीर (नालंदा दर्पण)। पर्यटन और आध्यात्मिक महत्व के लिए विश्व विख्यात राजगीर में मगध सम्राट जरासंध स्मारक का निर्माण कराया गया है। मगध सम्राट जरासंध की आदमकद प्रतिमा ऐतिहासिक तथ्यों का काल्पनिक चित्रण है, जो उनकी वीरता एवं गौरव का प्रतीक है।

मगध के राजा बृहद्रथ को कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति की कामना लेकर वे ऋषि चंडकौशिक के पास गए। उनकी सेवा-भाव से प्रसन्न होकर ऋषि ने उन्हें एक फल दिया और कहा कि अपनी पत्नी को इसे खिला दें, जिससे उन्हें संतान प्राप्त होगी।

राजा बृहद्रथ की दो पत्नियाँ थीं। उन्होंने फल को आधा-आधा काटकर दोनों को खिला दिया। फल खाने के बाद दोनों पत्नियाँ गर्भवती हो गईं और समय आने पर उन्होंने आधे-आधे शरीर वाले दो बालकों को जन्म दिया। यह देखकर सभी भयभीत हो गए और राजा ने उन शिशुओं को जंगल में फेंकवा दिया।

कहा जाता है कि उसी समय जंगल से एक जरा नामक राक्षसी गुजरी। उसने दोनों हिस्सों को जोड़ दिया, जिससे एक पूर्ण शिशु का निर्माण हुआ। तभी वह बालक जोर-जोर से रोने लगा। यह सूचना राजा बृहद्रथ तक पहुँची तो वे अपनी रानियों के साथ अपने पुत्र को लेने वहाँ पहुँचे। चूँकि यह बालक जरा राक्षसी द्वारा संधित किया गया था। इसलिए उसका नाम ‘जरासंध’ रखा गया।

जरासंध बचपन से ही अत्यंत शक्तिशाली थे। वे मल्लयुद्ध में निपुण थे और शीघ्र ही एक उत्कृष्ट राजकुमार के रूप में स्थापित हुए। उनकी अद्भुत शक्ति एवं युद्ध कौशल को देखते हुए राजा बृहद्रथ ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में उन्हें घोषित किया। जरासंध ने मगध साम्राज्य का विस्तार करने हेतु निरंतर युद्ध किए और कई राज्यों को अपने अधीन कर लिया।

सम्राट जरासंध की शक्ति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने कई राजाओं को बंदी बना लिया था, जिन्हें वे भगवान शिव के लिए नरबलि के रूप में अर्पित करना चाहते थे।

यह भी उल्लेखनीय है कि जरासंध ने कंस की दो पुत्रियों- अस्ति और प्राप्ति का विवाह अपने मित्र कंस से करवाया था। जब भगवान श्रीकृष्ण ने कंस का वध किया तो जरासंध ने कृष्ण को अपना शत्रु मान लिया और मथुरा पर 17 बार आक्रमण किया। हालांकि हर बार श्रीकृष्ण ने अपनी चतुराई से युद्ध को टाल दिया। अंततः श्रीकृष्ण, भीम और अर्जुन ने मिलकर जरासंध का वध करने की योजना बनाई।

कहा जाता है कि जब श्रीकृष्ण, भीम और अर्जुन ब्राह्मण वेश में मगध पहुँचे तो उन्होंने जरासंध को द्वंद्व युद्ध के लिए ललकारा। जरासंध ने भीम के साथ मल्लयुद्ध किया, जो 23 दिनों तक चला। अंततः श्रीकृष्ण के परामर्श पर भीम ने जरासंध को बीच से फाड़कर समाप्त कर दिया। उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र सहदेव को मगध का राजा बनाया गया।

वेशक जरासंध महाभारत काल के महानतम योद्धाओं में से एक थे। उनकी शक्ति और पराक्रम की गाथाएँ आज भी इतिहास और लोककथाओं में जीवंत हैं। मगध सम्राट जरासंध की स्मृति में राजगीर में स्थापित स्मारक उनकी वीरता का प्रतीक है, जो उनके गौरवशाली इतिहास की याद दिलाता है।

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