Home शिक्षा विक्रमशिला विश्वविद्यालय ने प्राचीन गौरव की ओर बढ़या कदम

विक्रमशिला विश्वविद्यालय ने प्राचीन गौरव की ओर बढ़या कदम

Vikramshila University took a step towards its ancient glory
Vikramshila University took a step towards its ancient glory

बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। राजगीर की मनोरम वादियों में आधुनिक नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना को एक दशक बीत चुका है और अब बिहार के भागलपुर जिले में स्थित प्राचीन विक्रमशिला विश्वविद्यालय को पुनर्जनन की राह पर तेजी से कदम बढ़ते दिखाई दे रहे हैं।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने पिछले वर्ष दिसंबर से इस ऐतिहासिक स्थल के संरक्षण और विकास का कार्य शुरू किया है। जिसका उद्देश्य न केवल इसके प्राचीन वैभव को संजोना है, बल्कि इसे पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनाना भी है।

इसी बीच बिहार सरकार ने भागलपुर जिले के अंतीचक गांव में एक केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए 202.14 एकड़ भूमि चिह्नित की है। जिससे इस क्षेत्र में शैक्षिक और सांस्कृतिक पुनरुत्थान की उम्मीदें जगी हैं।

केंद्र सरकार ने वर्ष 2015 में विक्रमशिला विश्वविद्यालय के पुनर्जनन की योजना को मंजूरी दी थी और इसके लिए 500 करोड़ रुपये आवंटित किए थे। हालांकि उपयुक्त भूमि की पहचान न हो पाने के कारण यह परियोजना लंबे समय तक ठोस रूप नहीं ले सकी।

अब राज्य सरकार द्वारा भूमि चिह्नित किए जाने के बाद इस दिशा में प्रगति की संभावनाएं बढ़ गई हैं। यह कदम न केवल प्राचीन शिक्षा केंद्र को पुनर्जनन की ओर ले जाएगा, बल्कि क्षेत्रीय विकास को भी गति देगा।

24 फरवरी को भागलपुर में एक जनसभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस परियोजना की महत्ता पर प्रकाश डाला था। उन्होंने कहा था कि विक्रमशिला विश्वविद्यालय ज्ञान का वैश्विक केंद्र था। हमने प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के गौरव को नए नालंदा विश्वविद्यालय के माध्यम से पुनर्जनन किया है। अब बारी विक्रमशिला की है, जहां एक केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना की जा रही है।

इधर प्राचीन विक्रमशिला महाविहार के खंडहरों पर संरक्षण कार्य जोरों पर दिखाई दिया। श्रमिकों की टीमें स्थल से वनस्पतियों को हटाने और मिट्टी को सावधानीपूर्वक साफ करने में जुटी थीं। ताकि छिपी हुई संरचनाएं उजागर हो सके।

पूरे स्थल को संरक्षण और सुरक्षा प्रक्रिया के तहत ग्रिड में विभाजित किया गया है, जिससे कार्य व्यवस्थित रूप से आगे बढ़ रहा है। खंडहरों के बीच सबसे प्रमुख संरचना एक क्रूसिफॉर्म (क्रॉस-आकार) ईंट स्तूप है, जो विक्रमशिला का केंद्रबिंदु माना जाता था। इसके चारों ओर 208 छोटे-छोटे कक्ष बने थे। प्रत्येक ओर 52 कक्ष थे। जहां कभी विद्यार्थी और भिक्षु अध्ययन और साधना में लीन रहा करते थे।

बता दें कि विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना 8वीं-9वीं शताब्दी में पाल वंश के राजा धर्मपाल ने की थी। यह नालंदा विश्वविद्यालय का समकालीन था और पाल काल (8वीं से 12वीं शताब्दी) के दौरान अपनी शैक्षिक श्रेष्ठता के लिए विश्वविख्यात हुआ। यह विश्वविद्यालय विशेष रूप से तंत्रयान बौद्ध धर्म के अध्ययन और अनुसंधान का केंद्र था।

तंत्रयान, जो हीनयान और महायान के बाद भारतीय बौद्ध धर्म की तीसरी प्रमुख शाखा थी। तांत्रिक साधनाओं और गुप्त अनुष्ठानों पर केंद्रित थी। इसकी ख्याति इतनी थी कि यह नालंदा विश्वविद्यालय के प्रशासन को भी नियंत्रित करता था।

ASI के अधीक्षण पुरातत्वविद् के अनुसार जहां नालंदा विश्वविद्यालय गुप्त काल से लेकर 12वीं शताब्दी तक विभिन्न विषयों के अध्ययन का केंद्र रहा, वहीं विक्रमशिला पाल काल में अपने उत्कर्ष पर था और तांत्रिक विद्याओं में विशेषज्ञता रखता था। राजा धर्मपाल के शासनकाल में यह नालंदा से भी अधिक महत्वपूर्ण हो गया था। संरक्षण कार्य पूरा होने के बाद यह स्थल न केवल इतिहासकारों और पुरातत्वविदों के लिए बल्कि पर्यटकों और बौद्ध अनुयायियों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बनेगा।

अब विक्रमशिला विश्वविद्यालय के पुनर्जनन और केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना से बिहार में शिक्षा, पर्यटन और रोजगार के नए अवसर खुलेंगे। यह परियोजना प्राचीन भारत के गौरवशाली अतीत को आधुनिक संदर्भ में पुनर्जनन करने का एक अनूठा प्रयास है। जैसे-जैसे संरक्षण कार्य आगे बढ़ रहा है और नई योजनाएं मूर्त रूप ले रही हैं। विक्रमशिला एक बार फिर ज्ञान और संस्कृति के वैश्विक केंद्र के रूप में उभरने की ओर अग्रसर है।

 

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