नालंदाः मतदान के दौरान भी दिखा कड़ा मुकाबला, मंत्री की राह आसान नहीं

बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। ज्ञान की प्राचीन धरती नालंदा इस बार चुनावी रणभूमि में तब्दील हो गई है। नालंदा विधानसभा सीट कभी विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालय की वजह से दुनियाभर में मशहूर थी, आज राजनीतिक हॉट सीट बन चुकी है। यहां एनडीए समर्थित जदयू के दिग्गज नेता और वरिष्ठ मंत्री श्रवण कुमार की साख दांव पर लगी है तो महागठबंधन की ओर से कांग्रेस के कौशलेन्द्र कुमार उर्फ छोटे मुखिया मजबूत दावेदार बनकर उभरे हैं। लेकिन जन सुराज पार्टी की प्रत्याशी कुमारी पूनम सिन्हा की एंट्री ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया, जिससे चुनावी समीकरण पूरी तरह उलट-पुलट हो गए।
नालंदा विधानसभा सीट पर कुल 10 प्रत्याशी मैदान में हैं, लेकिन असली जंग तीन प्रमुख चेहरों के बीच मानी जा रही है। मतदान के दिन भी कड़ा मुकाबला देखने को मिला, जहां विकास बनाम भ्रष्टाचार का मुद्दा छाया रहा। मंत्री श्रवण कुमार की राह आसान नहीं दिखी, क्योंकि मतदाताओं में उनके प्रति नाराजगी का अंडरकरंट साफ झलका।
नालंदा विधानसभा क्षेत्र में मतदान शांतिपूर्ण और उत्साहपूर्ण रहा। सुबह से ही मतदान केंद्रों पर महिलाओं और पुरुषों की लंबी कतारें लग गईं। कुल 389 मतदान केंद्र बनाए गए थे, जहां हर बूथ पर अर्द्धसैनिक बलों की तैनाती की गई थी। प्रशासन ने किसी भी तरह की अनहोनी को रोकने के लिए पुलिस और प्रशासनिक वाहनों की सघन निगरानी रखी।
मतदाता निर्भय होकर अपने मताधिकार का प्रयोग करते नजर आए। क्षेत्र में कुल 3 लाख 25 हजार 148 मतदाता हैं, जिनमें 1 लाख 71 हजार 660 पुरुष, 1 लाख 53 हजार 479 महिलाएं और 9 थर्ड जेंडर शामिल हैं। महिलाओं ने मतदान में खासा उत्साह दिखाया, जो लोकतंत्र के इस महापर्व की खूबसूरती को और बढ़ा रहा था।
विशेष रूप से पिलखी, अंडवस, बरनौसा, मेयार, मंजैठा, मोबारकपुर और देवरिया जैसे बूथों पर मतदान का माहौल उत्सव जैसा था। मतदाता कतारबद्ध होकर वोट डाल रहे थे और हर बूथ पर एनडीए तथा महागठबंधन के समर्थक मौजूद थे। लेकिन मतदाताओं की चुप्पी और मिजाज से साफ था कि अंतिम क्षणों में वोटों का बिखराव रोकने की कोशिश हो रही है। नीतीश कुमार के विकास मॉडल में विश्वास जताने का अभास भी लोगों ने दिया।
इस बार नालंदा का चुनाव पूरी तरह विकास और भ्रष्टाचार के इर्द-गिर्द घूमता नजर आया। जनता के बीच मुख्य चर्चा क्षेत्रीय विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर केंद्रित रही। एनडीए सरकार की उपलब्धियों की तारीफ तो हुई, लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपों ने भी जोर पकड़ा। जदयू प्रत्याशी श्रवण कुमार को लेकर मतदाताओं में नाराजगी साफ दिखी।
स्थानीय लोग कहते हैं कि वरिष्ठ मंत्री होने के बावजूद क्षेत्र में अपेक्षित विकास नहीं हुआ, जिससे उनकी इज्जत और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विश्वास को बनाए रखने का दबाव बढ़ गया है। कई बूथों पर परंपरागत वोट बैंक में दरार देखी गई और विधायक से नाराजगी का अंडरकरंट उभरा। लोग उनके प्रति कम विश्वास जता रहे थे।
दूसरी ओर कांग्रेस के कौशलेन्द्र कुमार उर्फ छोटे मुखिया ने स्थानीय मुद्दों को जोरदार तरीके से उठाया। दोनों प्रमुख प्रत्याशी श्रवण कुमार और कौशलेन्द्र कुमार कुर्मी समुदाय से आते हैं, जो क्षेत्र के सामाजिक समीकरण को और जटिल बनाता है। श्रवण कुमार बेन गांव के रहने वाले हैं, जबकि कौशलेन्द्र कुमार अजनौरा के। जन सुराज की कुमारी पूनम सिन्हा छोटी आट गांव की निवासी हैं। उनकी एंट्री ने समीकरणों को पेचीदा बना दिया है।
यहां मुकाबला सीधा जदयू और कांग्रेस के बीच माना जा रहा है, लेकिन जन सुराज की कुमारी पूनम सिन्हा ने बड़ा उलटफेर करने की क्षमता दिखाई। कई ग्रामीणों का मानना है कि इस बार सामाजिक समीकरण दलगत निष्ठा से ऊपर उठ गए हैं। जातीय संतुलन और व्यक्तिगत छवि मतदान का प्रमुख आधार बनी। परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगी, और मतदाता व्यक्तिगत नाराजगी को प्राथमिकता देते नजर आए।
ज्ञान की धरती नालंदा में अब सवाल यह है कि विकास का तीर चलेगा, पंजा फिर धमाका करेगा या जन सुराज बड़ा उलटफेर कर देगी? या फिर वह सिर्फ वोट काटने की भूमिका निभाएगी? यह रहस्य मतगणना के दिन ही खुलेगा। लेकिन एक बात स्पष्ट है कि जदयू मंत्री श्रवण कुमार की राह इस बार आसान नहीं दिख रही। यहां की जनता ने लोकतंत्र को मजबूत किया, अब नतीजे बताएंगे कि किसकी किस्मत चमकी।
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