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बेंच-डेस्क घोटालाः बिना आपूर्ति हो गया लाखों भुगतान, जांच के आदेश

बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण डेस्क)। नालंदा जिले में सरकारी स्कूलों के लिए खरीदे जाने वाले एक ऐसा बेंच-डेस्क घोटाला सामने आया है, जिसमें न तो बच्चों को बेंच-डेस्क मिले और न ही सप्लाई करने वाली एजेंसी ने सामान पहुंचाया, फिर भी पूरा पैसा निकाल लिया गया। मामला रहुई प्रखंड के उत्क्रमित मध्य विद्यालय देकपुरा का है, जहां छात्र आज भी फर्श पर बैठकर पढ़ने को मजबूर हैं, लेकिन खाते में 5 लाख 83 हजार 830 रुपये का भुगतान हो चुका है।

जानकारी के अनुसार वर्ष 2022-23 में मेसर्स लता इंटरप्राइजेज, हेरिटेज सिटी (नालंदा) को इस स्कूल के लिए 117 जोड़ी बेंच-डेस्क की सप्लाई का ऑर्डर दिया गया था। ठेका राशि थी 5,83,830 रुपये। लेकिन न तो एजेंसी ने सामान सप्लाई किया और न ही स्कूल को कोई बेंच-डेस्क प्राप्त हुआ। फिर भी तत्कालीन लिपिक अजय कुमार ने बिल पास कर पूरा पैसा एजेंसी के खाते में ट्रांसफर कर दिया।

जब यह मामला ऊपरी स्तर पर पकड़ा गया तो विभाग ने इसे घोर अनियमितता माना और लिपिक अजय कुमार के खिलाफ तुरंत विभागीय कार्रवाई शुरू कर दी। जिला शिक्षा पदाधिकारी नालंदा ने आरोप-पत्र जारी करते हुए अजय कुमार को बिहार सरकारी सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियमावली के तहत दोषी पाया। उनके खिलाफ प्रपत्र ‘क’ के तहत विभागीय कार्यवाही शुरू की गई।

कार्रवाई के लिए जांच समिति भी गठित की गई थी। इसमें डीईओ रोहतास को संचालन पदाधिकारी और जिला कार्यक्रम पदाधिकारी (माध्यमिक शिक्षा) नालंदा नेहा रानी को प्रस्तुतीकरण पदाधिकारी बनाया गया। दोनों अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिया गया था कि 45 दिनों के अंदर जांच पूरी कर रिपोर्ट सौंपें। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से दो वर्ष बीत जाने के बाद भी यह रिपोर्ट जमा नहीं हुई है।

मामला लंबा खिंचता देख क्षेत्रीय शिक्षा उपनिदेशक पटना ने कड़ा संदेश भेजा है। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि शीघ्र जांच रिपोर्ट नहीं सौंपी गई तो विलंब के लिए दोनों जांच पदाधिकारी स्वयं जिम्मेदार होंगे और उनके खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी।

बहरहाल यह मामला एक बार फिर बिहार शिक्षा विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार और जांच प्रक्रिया की सुस्ती पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है। सवाल यह भी है कि जब सप्लाई ही नहीं हुई तो बिल कैसे पास हुआ? लिपिक ने अकेले यह खेल किया या इसके पीछे कोई बड़ा रैकेट काम कर रहा है? अब देखना यह है कि लंबित जांच कब पूरी होती है और दोषियों पर कब कार्रवाई होती है।

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