चंडी (नालंदा दर्पण)। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा में कीचड़मय शिक्षा की राह कितनी कठिन है, इसका जीता-जागता प्रमाण दो तस्वीरों में कैद है। चंडी प्रखंड अंतर्गत मध्य विद्यालय रूखाई और प्राथमिक विद्यालय ब्रह्मस्थान के बच्चे हर रोज खेतों की आरी और कीचड़ से भरे रास्तों से गुजरते हुए स्कूल पहुंचते हैं। गिरते-पड़ते जान जोखिम में डालकर वे अपनी पढ़ाई जारी रखते हैं, लेकिन स्थानीय प्रशासन और सरकार की उदासीनता से कोई बदलाव नहीं आ रहा। क्या शिक्षा का अधिकार सिर्फ कागजों तक सीमित है?
तस्वीरों में साफ दिख रहा है कि कैसे ये मासूम बच्चे नीली स्कूल यूनिफॉर्म पहने, हरे-भरे धान के खेतों के बीच बने संकरे पगडंडी पर लाइन लगाकर चल रहे हैं। पहली तस्वीर में दर्जनों बच्चे एक के पीछे एक चलते नजर आ रहे हैं, जहां दूर तक फैले खेतों के किनारे पर पाम के पेड़ और गांव की झोपड़ियां दिखाई दे रही हैं।
पृष्ठभूमि में एक नीली इमारत और दूर संचार टावर भी है, जो ग्रामीण इलाके की सच्चाई बयां करता है। लेकिन यह सुंदर दृश्य छुपा रहा है एक बड़ा खतरा और वह है बारिश के दिनों में ये रास्ते फिसलन भरे हो जाते हैं। बच्चे अक्सर गिरकर चोटिल होते हैं।
दूसरी तस्वीर और भी दिल दहला देने वाली है। कीचड़ से लथपथ रास्ते पर दो बच्चे मुश्किल से संतुलन बनाते हुए आगे बढ़ रहे हैं। एक बच्चा किताबें हाथ में थामे नंगे पैर चल रहा है। जबकि दूसरा गुलाबी बैग कंधे पर टांगे, पानी और गारे में पैर फंसाते हुए। चारों तरफ घास, झाड़ियां और पीले फूल बिखरे हैं, जो मानसून की बारिश के बाद की स्थिति दर्शाते हैं। ये बच्चे स्कूल बैग और किताबों के साथ संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन उनके चेहरों पर शिक्षा की ललक साफ झलकती है।
चंडी प्रखंड के इन गांवों में स्कूल तक सड़कें न के बराबर हैं। स्थानीय निवासियों का कहना है कि स्कूल पहुंचने के लिए बच्चों को लंबी दूरी तय करना पड़ता है, जो ज्यादातर खेतों और झाड़ियों से होकर गुजरता है। बारिश के मौसम में स्थिति और बदतर हो जाती है।
ब्रह्मस्थान गांव के एक अभिभावक का कहना है कि हमारे बच्चे हर रोज जान हथेली पर रखकर स्कूल जाते हैं। कभी सांप-बिच्छू का डर तो कभी कीचड़ में गिरने का। लेकिन क्या करें, पढ़ाई छोड़वा दें?
उन्होंने बताया कि कई बार बच्चे स्कूल पहुंचते-पहुंचते थक जाते हैं, जिससे उनकी पढ़ाई प्रभावित होती है। मध्य विद्यालय रूखाई की प्रधानाध्यापिका ने भी माना कि रास्तों की खराब हालत के कारण अनुपस्थिति बढ़ जाती है, खासकर लड़कियों की।
यह विडंबना है कि यह सब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले में हो रहा है, जहां शिक्षा और ग्रामीण विकास पर करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं। बिहार सरकार की ‘सात निश्चय’ योजना में सड़कों का निर्माण शामिल है, लेकिन चंडी जैसे दूरदराज के इलाकों में यह सिर्फ वादा बनकर रह गया।
स्थानीय पंचायत प्रतिनिधि का कहना है कि कई बार शिकायत की गई, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। सवाल उठाते हुए वे कहते हैं कि मुख्यमंत्री जी का जिला होने के बावजूद यहां की सड़कें दशकों से जस की तस हैं। क्या बच्चों की जान की कीमत नहीं है?
नालंदा जिला ऐतिहासिक रूप से शिक्षा का केंद्र रहा है, आज अपने ही बच्चों को बुनियादी सुविधाएं नहीं दे पा रहा। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी स्थिति न सिर्फ शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित करती है, बल्कि बच्चों के स्वास्थ्य और सुरक्षा पर भी असर डालती है। ग्रामीण विकास विभाग के आंकड़ों के मुताबिक जिले में हजारों किलोमीटर ग्रामीण सड़कें अभी भी कच्ची हैं और मानसून में ये कीचड़ के दलदल में बदल जाती हैं।
समय आ गया है कि सरकार जागे और इन बच्चों की आवाज सुने। क्या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने गृह जिले के इन मासूमों की सुध लेंगे? नालंदा दर्पण की टीम ने इस मुद्दे को उठाया है। ताकि बदलाव की उम्मीद जगे। अभिभावक और स्थानीय लोग मांग कर रहे हैं कि जल्द से जल्द पक्की सड़कें बनाई जाएं। ताकि शिक्षा का सफर सुरक्षित हो सके।









