
नालंदा दर्पण डेस्क। कांग्रेस ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सुशासन और विकास के दावों पर तीखा हमला बोला है। पार्टी ने शिक्षा, बुनियादी ढांचे और भर्ती प्रक्रिया में व्याप्त खामियों को उजागर करते हुए नीतीश सरकार को कठघरे में खड़ा किया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने अपने आधिकारिक @INCIndia X हैंडल पर लगातार तीन पोस्ट किए। जिसमें बिहार की शिक्षा व्यवस्था और प्रशासनिक विफलताओं पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं।
दिग्विजय सिंह ने अपने पोस्ट में बिहार की शिक्षा व्यवस्था की बदहाली को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि एक समय नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों के लिए प्रसिद्ध बिहार आज शिक्षा के मामले में सबसे निचले पायदान पर खड़ा है। केंद्र सरकार के UDISE डेटा के आधार पर उन्होंने कई चौंकाने वाले तथ्य सामने रखे-
निम्न GER (Gross Enrollment Rate): बिहार में प्राइमरी स्तर पर 100 में से केवल 30 बच्चे ही स्कूल जा रहे हैं, यानी 70% बच्चे शिक्षा से वंचित हैं। राष्ट्रीय औसत की तुलना में यह आंकड़ा बहुत कम है।
अपर प्राइमरी स्तर: यहां 100 में से केवल 68 बच्चे स्कूल जा रहे हैं, जबकि राष्ट्रीय औसत 89.9% है।
सेकंडरी स्तर: 9वीं कक्षा में केवल 45% बच्चे भर्ती होते हैं, जबकि राष्ट्रीय औसत 77.4% है।
हायर सेकंडरी स्तर: 10वीं पास करने वाले बच्चों में से केवल 30% ही 11वीं कक्षा में भर्ती होते हैं, जबकि राष्ट्रीय औसत 56% है।
ड्रॉपआउट रेट: बिहार में ड्रॉपआउट रेट भी चिंताजनक है। कक्षा 1 से 5 के बीच 9% बच्चे पढ़ाई छोड़ देते हैं, और 5वीं कक्षा के बाद लगभग 25% बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं। 8वीं कक्षा के बाद भी एक चौथाई बच्चे 11वीं कक्षा तक नहीं पहुंच पाते।
कांग्रेस ने बिहार के स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की कमी पर भी सवाल उठाए। दिग्विजय सिंह ने बताया कि-
बिजली और कंप्यूटर की कमी: बिहार के 16,500 स्कूलों में बिजली नहीं है, जिसके कारण कंप्यूटर का उपयोग असंभव है। 78,000 सरकारी स्कूलों में से केवल 5,000 में ही कंप्यूटर उपलब्ध हैं।
शिक्षक और स्कूलों की स्थिति: 117 स्कूलों में एक भी छात्र नामांकित नहीं है, लेकिन इन स्कूलों में 544 शिक्षक कार्यरत हैं और वेतन ले रहे हैं।
उच्च शिक्षा की स्थिति: हायर सेकंडरी पास करने वालों में केवल 17% ही कॉलेज जा पाते हैं। प्रति एक लाख आबादी पर केवल 7 कॉलेज हैं, जो राष्ट्रीय औसत से काफी कम है।
शिक्षा बजट का दुरुपयोग: बिहार का शिक्षा बजट लगभग 61,000 करोड़ रुपये है। लेकिन इसका उपयोग कहां हो रहा है, यह स्पष्ट नहीं है।
कांग्रेस ने बिहार में चुनाव प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए। दिग्विजय सिंह ने कहा कि चुनाव आयोग एक पार्टी के पक्ष में निर्णय ले रहा है। साम से संबंधित निर्णयों के लिए सर्वदलीय बैठक की परंपरा को नजरअंदाज किया जा रहा है।
उन्होंने 2003 के Special Intensive Revision का जिक्र करते हुए कहा कि हाउस-टू-हाउस सर्वे के लिए दो साल लगे थे, लेकिन इस बार केवल एक महीने का समय दिया गया है। बारिश के मौसम में ग्रामीण क्षेत्रों में सर्वे करना व्यवहारिक नहीं है।
कांग्रेस ने बिहार में बार-बार होने वाले पेपर लीक को नीतीश सरकार की सबसे बड़ी विफलता बताया। दिग्विजय सिंह ने कहा कि पेपर लीक अब एक बड़ा व्यवसाय बन चुका है, जिसमें BJP-JDU सरकार की सरपरस्ती साफ दिखती है। पिछले सात वर्षों में 10 से अधिक भर्ती परीक्षाओं के पेपर लीक होने के मामले सामने आए हैं-
वर्ष 2017: सिपाही भर्ती परीक्षा रद्द, 21 FIR दर्ज।
वर्ष 2019-21: पुलिस भर्ती परीक्षा में सेंध।
वर्ष 2021-22: उत्पाद विभाग की परीक्षा का पेपर लीक।
वर्ष 2022: BPSC पेपर लीक, जांच जारी।
वर्ष 2023: सिपाही भर्ती परीक्षा रद्द।
अमीन भर्ती और NEET: पेपर लीक के कई मामले। पटना को केंद्र बताया गया।
पेपर माफिया का रेट कार्ड: NEET PG पेपर की कीमत 70-80 लाख, NEET UG की 30-40 लाख, बैंक और SSC परीक्षाओं की 15-20 लाख, पुलिस SI की 25 लाख, सिपाही की 10-15 लाख और पटवारी की 10 लाख रुपये।
कांग्रेस ने नीतीश कुमार के सुशासन और विकास के दावों को खोखला बताते हुए बिहार की जनता से जवाब मांगने की बात कही है। पार्टी ने शिक्षा, बुनियादी ढांचे और भर्ती प्रक्रिया में सुधार की मांग की है। दिग्विजय सिंह ने कहा कि बिहार के युवाओं का भविष्य अंधेरे में है और नीतीश सरकार की नीतियां इसके लिए जिम्मेदार हैं।









