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CO’s negligence: दाखिल-खारिज बना कागजी खेल, 40% आवेदन रद्द

बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। नालंदा जिले के अंचल कार्यालयों (CO’s negligence) में दाखिल-खारिज (जमीन के दस्तावेजों का पंजीकरण और स्वामित्व हस्तांतरण) के मामलों को निपटाने में भारी लापरवाही बरती जा रही है। इसका नतीजा यह है कि जिले में 4,287 मामले लंबित पड़े हैं। जिनमें से 1,592 आवेदन पिछले 35 दिनों से और 472 आवेदन 75 दिनों से अनसुलझे हैं। इतना ही नहीं 2,069 मामले तो निर्धारित समय सीमा में निपटाए न जाने के कारण एक्सपायर हो चुके हैं। इस सुस्ती का सबसे ज्यादा खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है, जो अंचल कार्यालयों के चक्कर काटने को मजबूर हैं।

अंचल स्तर पर देखें तो राजगीर में 729 और बिहारशरीफ में 746 दाखिल-खारिज के आवेदन फाइलों में धूल खा रहे हैं। ये आंकड़े जिले के 20 अंचलों में ऑनलाइन दाखिल-खारिज प्रणाली शुरू होने के बाद की स्थिति को दर्शाते हैं। अब तक कुल 3,85,942 आवेदन जमा किए गए हैं। जिनमें से मात्र 60.77 प्रतिशत (2,31,916) को ही स्वीकृति मिली है। वहीं 39.23 प्रतिशत (1,49,739) आवेदन अस्वीकृत कर दिए गए हैं। अस्वीकृति की इतनी बड़ी संख्या ने सवाल खड़े कर दिए हैं कि क्या प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही का अभाव है।

जिला प्रशासन ने अंचल अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए हैं कि दाखिल-खारिज के आवेदनों को रिजेक्ट करने से पहले आवेदकों को सूचित किया जाए और उन्हें दस्तावेजों में त्रुटियां सुधारने का मौका दिया जाए। लेकिन धरातल पर यह व्यवस्था नदारद दिखाई देती है। कई आवेदकों का कहना है कि उन्हें बिना किसी पूर्व सूचना के आवेदन अस्वीकृत होने की जानकारी मिलती है। जिसके बाद उन्हें दोबारा प्रक्रिया शुरू करनी पड़ती है। इस अनियमितता के चलते लोग बार-बार कार्यालयों के चक्कर लगाने को मजबूर हैं।

तीन साल पहले शुरू की गई स्वतः म्यूटेशन (सुओ मोटो) सुविधा भी जिले में केवल कागजी घोषणा बनकर रह गई है। इस सेवा का मकसद था कि जमीन खरीद के बाद स्वामित्व हस्तांतरण की प्रक्रिया स्वचालित रूप से पूरी हो जाए। ताकि खरीदारों को अंचल कार्यालयों के चक्कर न लगाने पड़ें। लेकिन हैरानी की बात यह है कि अब तक जिले में एक भी मामले में स्वतः म्यूटेशन लागू नहीं हुआ है। यह सुविधा शुरू होने के बाद भी प्रभावी साबित नहीं हुई। जिससे प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं।

जिला प्रशासन ने समय-समय पर अंचल अधिकारियों को दाखिल-खारिज के मामलों को समयबद्ध तरीके से निपटाने और आवेदकों को पारदर्शी जानकारी देने के निर्देश दिए हैं। इसके बावजूद अधिकारियों की उदासीनता और लापरवाही में कोई सुधार नहीं दिख रहा। लंबित मामलों की बढ़ती संख्या और प्रक्रिया की धीमी गति आम लोगों के लिए परेशानी का सबब बनती जा रही है। कई आवेदकों का कहना है कि दस्तावेज जमा करने के बाद भी महीनों तक कोई अपडेट नहीं मिलता है। जिससे उनकी जमीन संबंधी योजनाएं अटक रही हैं।

बहरहाल, दाखिल-खारिज में देरी का सबसे बड़ा असर उन लोगों पर पड़ रहा है, जो जमीन खरीद-बिक्री के बाद स्वामित्व हस्तांतरण का इंतजार कर रहे हैं। बिना म्यूटेशन के उनकी जमीन का रिकॉर्ड अपडेट नहीं हो पाता। जिससे बैंक लोन, सरकारी योजनाओं का लाभ या अन्य कानूनी प्रक्रियाएं प्रभावित हो रही हैं। खासकर ग्रामीण इलाकों में जहां लोग जमीन पर निर्भर हैं। यह समस्या और गंभीर हो जाती है।

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