
नालंदा दर्पण डेस्क। बिहार सरकार ने पंचायत चुनाव में महिलाओं को विशेष आरक्षण दे रखा है, ताकि वह भी अपने घरों से बाहर निकल सकें और समाज के सर्वांगिन विकास में अपनी अमिट छाप छोड़ सकें। लेकिन नालंदा जैसे जिले में प्रायः ऐसा कुछ होता नहीं दिख रहा है।
आज भी निर्वाचित प्रायः महिला जनप्रतिनिधि आज भी अपने घरों में कैद रहती है और उनका सारा कारोबार उनके पति संचलित करते हैं। आम मतदाता भी किसी महिला प्रत्याशी की योग्यता, सक्रियता से पहले उसके पति के रुतबे को ही बल देते हैं।
उनके दर्शन सिर्फ नामांकन के समय अफसरों तक को हो पाती है, चुनाव प्रचार या जीतने के बाद उनके पति ही या अन्य प्रभावशाली परिजन मुखिया प्रतिनिधि, पंसस प्रतिनिधि, सरपंच प्रतिनिधि के चेहरे लेकर खिसोड़ते रहते है।
सबसे रोचक सच तो यह है कि जो पुरुष पहले किसी पद के लिए निर्वाचित होते हैं, यदि वह सीट महिला के लिए आरक्षित कर दिया गया तो सब अपनी पत्नियों का नाम सामने ले आते हैं, चाहें उनकी पत्नियाँ कितना भी लिख लोढ़ा-पढ़ पत्थर छाप क्यों न हों !
नगरनौसा प्रखंड का कछियावां पंचायत में प्रमुख तीन पद मुखिया, सरपंच और पंचायत समिति सदस्य के पद महिलाओं के लिए सुरक्षित हैं। यहाँ भी कोई निर्वाचित महिला जनप्रतिधि कभी सक्रीय नहीं रहीं। उनका सारा कारोबार उनके पति ही संभालते रहे हैं।
कारोबार इसलिए कि वे चुने तो जाते हैं जन के प्रतिनिधि के रुप में, लेकिन उन्हें सिर्फ सरकारी योजना के प्रतिनिधि बनाकर छोड़ दिया जाता है। यहाँ योजना का मतलब ही सिर्फ काली कमाई करना, लूट-खसोंट मचाना होता है। जिसमें उनके प्रतिनिधि पति या परिजन माहिर होते हैं।
कछियावां पंचायत का भी वही हाल है। यहाँ भी काफी बेतरतीब तरीके से विकास योजनाओं का क्रियन्वयन किया गया है। बात चाहे सीएम सात निश्चय योजना के तहत जल नल योजना की हो या फिर नली गली योजना की।
सरकारी आकड़े कुछ और बताते हैं और जमीनी हकीकत कुछ और। मनरेगा से लेकर ओडीएफ तक। यहां सब फेल। जमीन पर कम। कागजो पर अधिक। आईए देखते हैं….
कछियावां पंचायत में सीएम सात निश्चय योजना के तहत क्रियान्वित जल नल योजना के सरकारी आकड़े…..
कछियावां पंचायत में सीएम सात निश्चय योजना के तहत क्रियान्वित नली गली योजना के सरकारी आकड़े…..
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