
बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। नालंदा जिले के हरनौत प्रखंड अंतर्गत बराह गांव में स्थित गढ़पर एक ऐसी ऐतिहासिक धरोहर (Heritage) है, जो अपने गौरवशाली अतीत को समेटे हुए है, लेकिन आज अतिक्रमण और उपेक्षा की मार झेल रही है। ऊंची सीढ़ियां, पीपल वृक्ष के पास स्तूप के अवशेष और पाली भाषा में लिखा एक शिलापट्ट इस स्थान को बौद्ध धर्म की प्राचीन विरासत से जोड़ता है। लेकिन क्या यह धरोहर केवल कहानियों तक सिमट कर रह जाएगी?
गढ़पर की ऊंची सतह और चौड़ी सीढ़ियां इस स्थान को नालंदा की प्राचीन बौद्ध विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाती हैं। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि प्राचीन काल में यहां चार कुएं थे, जिनमें से एक में पाली भाषा में लिखा शिलापट्ट मिला था।
यह शिलापट्ट इस क्षेत्र में बौद्ध विहार की मौजूदगी का पुख्ता प्रमाण है। लेकिन मुगल काल के आगमन के साथ इस विरासत का संरक्षण नहीं हो सका। गढ़पर पर एक मुगल शासक की हवेली बनाई गई, जहां गायघाट (पटना) से नवाब और उनकी बेगम कुछ महीनों के लिए ठहरने आया करते थे।
स्थानीय निवासी बताते हैं कि यहां के जमींदार, जिन्हें बराहिल कहा जाता था, बहुत अत्याचारी थे। उनका भोजन मिट्टी के बर्तनों में बनता था और एक बार उपयोग के बाद बर्तनों को तोड़ दिया जाता था। हवेली के भग्नावस्था में पहुंचने के बाद इसके सामानों की सरकारी नीलामी भी हुई, लेकिन गढ़पर की ऐतिहासिकता धीरे-धीरे लुप्त होती चली गई।
आज गढ़पर का वह गौरवशाली अतीत अतिक्रमण की भेंट चढ़ रहा है। ग्रामीणों के अनुसार गढ़पर की सीढ़ियां पहले वर्तमान से दोगुनी लंबी थीं, लेकिन अब उन्हें तोड़कर समतल कर दिया गया है। पहले यहां अस्पताल बनाने की चर्चा थी, अब जिम बनाने की बात हो रही है।
पड़ोसी सिरसी गांव में हाल ही में टेंट के आकार की एक शिला मिली, जिस पर पाली भाषा में कुछ लिखा था। इसे पटना संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है, लेकिन गढ़पर की स्थिति पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा।
ग्रामीणों का कहना है कि अगर पुरातत्व विभाग इस क्षेत्र में खुदाई और शोध करे तो बौद्ध और मुगल काल के और भी प्रमाण मिल सकते हैं।
स्थानीय शिक्षक अनिल कुमार कहते हैं कि यहां की कहानियां हमारे बुजुर्गों से हमें मिली हैं, लेकिन अगर इस धरोहर को नहीं बचाया गया तो यह सिर्फ कहानियों तक सिमट जाएगी ।
बहरहाल, गढ़पर न केवल नालंदा की ऐतिहासिक धरोहर है, बल्कि यह बिहार के गौरवशाली अतीत का प्रतीक भी है। पुरातत्व विभाग और स्थानीय प्रशासन से ग्रामीणों की मांग है कि इस स्थल का सर्वेक्षण कर इसे संरक्षित किया जाए।
क्या गढ़पर की ये सीढ़ियां और अवशेष फिर से इतिहास के पन्नों में अपनी जगह बना पाएंगे या यह धरोहर हमेशा के लिए अतिक्रमण की भेंट चढ़ जाएगी? यह सवाल न केवल बराह गांव, बल्कि पूरे नालंदा के लिए महत्वपूर्ण है।









