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    Monday, October 14, 2024
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      नालंदा दर्पण की पहलः पंचायत चुनाव में सही को चुनें, दलालों-ठेकेदारों को नहीं

      "शनिवार की रात चंडी प्रखंड के विभिन्न पंचायतों में वोटरों और वोट के ठेकेदारों के बीच लगभग चार करोड़ रुपए बांटें गये। जबकि रविवार रात को महाखेला बाक़ी है...

      “चंडी प्रखंड के विभिन्न पंचायतों में वोटरों और वोट के ठेकेदारों के बीच लगभग चार करोड़ रुपए बांटें गये। जबकि रविवार रात को महाखेला बाक़ी है। प्रखंड के 13 पंचायतों में 76 मुखिया प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं, जिनमें से लगभग आधे से ज्यादा चुनाव जीतने के लिए औसतन 15-20 लाख रुपए खर्च कर रहे हैं….

      नालंदा दर्पण डेस्क। नालंदा जिले में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के सातवें चरण में मतदान सोमवार को है। गांव और पंचायत सरकार बदलने का मौका हर पांच साल में एक बार ही आता है। सातवें चरण में चंडी और नूरसराय प्रखंड में चुनाव होगा। पिछले छह चरण के चुनाव परिणाम ने सभी को चौंकाया है।

      वार्ड,पंच सदस्य से लेकर जिला परिषद सदस्य के आए परिणाम ने साबित कर दिया है कि कहीं जाति का फैक्टर काम किया है तो कहीं काम की प्रधानता मिली है। कहीं धनबल हावी रहा।Initiative of Nalanda Darpan Choose the right one in Panchayat elections not the brokers contractors 2

      वोट खरीदने की परंपरा आज भी देखी जा रही है। वोटरों को पैसे का प्रलोभन और विकास का सब्जबाग दिखाकर लुभाने की योजना खूब फल फूल रहीं है। जबकि गांव-जेवार में सरल स्वभाव, ईमानदार प्रवृत्ति के जनप्रतिनिधि औसतन कम मिल पाते हैं।

      कहा जाता है कि लोकसभा और विधानसभा के मुकाबले लोगों की राजनीतिक सक्रियता इस चुनाव में ज्यादा होती है। मतदाताओं की सक्रिय भागीदारी होती है।

      पंचायत चुनाव में हर टोले -मुहल्ले यहां तक कि घरों से लोग चुनाव लड़ते आ रहें हैं। यहां हर वोटर रणनीतिकार होता है।

      इन चुनावों का प्रतिनिधि उनका अपना परिचित व्यक्ति होता है।देखा परखा,जाना पहचाना। इसलिए मतदाता इसमें अधिक दिलचस्पी भी लेता है।

      लेकिन देखा जाता है कि चुनाव के बाद प्रतिनिधि ही बदलता है या पंचायतों की तस्वीर भी। लेकिन यह एक स्याह पक्ष है कि प्रतिनिधि तो बदल जाते हैं, लेकिन पंचायतों की तस्वीर, हालात वहीं रहता है जो पांच साल पहले था।

      पंचायती राज विभाग द्वारा ग्राम पंचायत स्तर पर लुटाये जा योजनाओं का सीधा लाभ आम लोगों तक न पहुंच कर आधे से ज्यादा राशि बंदरबाट हो जाती है।

      नल जल‌ योजना ताजा उदाहरण है। सात निश्चय योजना पंचायत प्रतिनिधियों के लिए दुधारू गाय समान है, जिसमें हर जगह कमीशन बंधा है।

      पंचायतें स्वतंत्रत और आत्मनिर्भर बनने के बदले सरकारी योजनाओं भी इम्लीमेंटिंग एजेंसी बनकर रह गई है। जिस मुखिया को गांव का अभिभावक बनना चाहिए था वह ठेकेदार बनकर रह गया है।Initiative of Nalanda Darpan Choose the right one in Panchayat elections not the brokers contractors 3

      वहीं हाल वार्ड सदस्यों का भी है। पिछले कार्यकाल तक पैसे के लिए तरसने वाले वार्ड सदस्यों को नल जल‌ योजना और नाली गली बनबाने का काम मिला। जिससे उन्हें भी कमाई का चस्का लग गया है। उन्हें भ्रष्टाचार की बुरी आदतों ने जकड़ लिया है।

      पिछले साल आए एक सर्वे ने उस कटू हकीकत को उजागर किया है जिसमें कहा गया है कि लगभग हर पंचायत के मुखिया से लेकर अन्य पंचायत जनप्रतिनिधि कम से कम एक स्कार्पियो तो जरूर रखता है। लेकिन अब सफारी और एसयूवी लक्जरी वाहन तक उनके पास आ गया है।

      चंडी प्रखंड में ऐसे पंचायत प्रतिनिधियों की भरमार है। लेकिन उनकी सफाई होती है कि वे पैतृक संपत्ति बेचकर वाहन खरीदते हैं। यहां तक कि मुखिया प्रत्याशी अपने हलफनामे में भी धन संपत्ति छिपाते रहें हैं। शायद ही कोई है जो अपनी आय, संपत्ति सही दर्शातें है।

      जब संविधान के 73 वें संशोधन के जरिए पंचायतों को सशक्त करने और त्रिस्तरीय शासन पद्धति को नये सिरे से लागू करने की सिफारिश हुई थी तो उसका मकसद यह था कि महात्मा गांधी के इस विचार को जमीन पर लागू किया जाएं, जिसके तहत वे चाहते थे कि भारत पांच लाख से अधिक गांवों का गणराज्य हो।

      गांवों को अपनी मर्जी से अपने गांव का अपनी परिस्थितियों का हिसाब से बेहतरी का हक मिले। गांव के लोग एक साथ बैठे और मिलजुलकर अपने गांव के लिए योजनाएं बनाये और उसे लागू करें।

      वर्ष 2006 में बिहार सरकार ने इसी सोच के साथ नयी पंचायती राज व्यवस्था लागू की। मगर पिछले 15 साल में न पंचायतों की तस्वीर बदली, न उनका भाग्य बदला ।

      पंचायती राज व्यवस्था में वोटरों को सक्रिय भूमिका में लाने की कोशिश भी थी।इसके तहत यह सोचा गया कि काम वोट डालने के बाद भी खत्म न हो। ग्रामसभा में उसकी मौजूदगी वैसी ही हो, जैसे विधानसभा-लोकसभा प्रतिनिधि की होती है। लेकिन पिछले 15 साल में ऐसा कुछ नहीं हुआ।

      खुद चंडी प्रखंड में पिछले पांच वर्षों में उनपर लूट खसोट का आरोप लगता रहा है। वार्ड सदस्यों से झगड़े,राशि निकालने का दबाव मुखिया बनाते रहे हैं, जिसकी दर्जनों शिकायतें प्रखंड विकास पदाधिकारी के पास धूल फांकती रही।Initiative of Nalanda Darpan Choose the right one in Panchayat elections not the brokers contractors 1

      जिले में कई मुखियो को पदच्युत करने का भी मामला आया, लेकिन भ्रष्ट तंत्र व्यवस्था में मुखियों का कोई बाल बांका नहीं हुआ। वह फिर से  सारे शर्म घोलकर चुनाव मैदान में हैं। कहीं कहीं जनता भी ऐसे जनप्रतिनिधि को हाथों हाथ ले रहीं है।

      शनिवार की रात चंडी प्रखंड के विभिन्न पंचायतों में वोटरों और वोट के ठेकेदारों के बीच लगभग चार करोड़ रुपए बांटें गये। जबकि रविवार रात को महाखेला बाक़ी है।

      प्रखंड के 13 पंचायतों में 76 मुखिया प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं, जिनमें से लगभग आधे से ज्यादा चुनाव जीतने के लिए औसतन 15-20 लाख रुपए खर्च कर रहे हैं।

      जबकि जिला परिषद पूर्वी में तो कम लेकिन पश्चिमी में दिग्गजों और धनासेठों की भरमार है। यहां कम से कम तीन प्रत्याशी के द्वारा 50 लाख से डेढ़ करोड़ रुपए खर्च किए जाने की चर्चा है।

      नालंदा दर्पण मतदाताओं से आह्वान करती है कि वे अपने अमूल्य वोट का इस्तेमाल गांव-जेवार की तस्वीर बदलने के लिए करें। बिना किसी लोभ के अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए शिक्षित, ईमानदार और नेक उम्मीदवार को ही चुने।

      अपने बीच एक समाजसेवी, सुख दुःख में साथ देने वाले उम्मीदवार को ही चुनें। किसी पंचायत के ठेकेदार को नहीं, जो हर योजनाओं में अपना कमीशन खोजें, पंचायतों में विकास की जगह लूट खसोट करें।

       

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